गुरु का हमारे जीवन में विशेष महत्व होता है। 'गु' का मतलब होता है अंधकार (अज्ञान) और 'रु' का अर्थ है प्रकाश ज्ञान। भारत में गुरुओं का दर्जा मां-बाप से भी ऊपर होता है। भारतीय इतिहास पर नज़र डाली जाए तो गुरु की भूमिका समाज को सुधारने का काम करने के साथ-साथ क्रान्ति को दिशा दिखाने वाली भी रही है। भारतीय संस्कृति में गुरु की भूमिका निम्न श्लोक से स्पष्ट है:
"गुरुब्रह्मा गुरुविष्णु गुरुदेवो महेश्वर: ।गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः"
इस शिक्षक दिवस के मौके पर नज़र डालते हैं एक ऐसे ही गुरु पर जिन्होंने एक साधारण से बालक को राज गद्दी पर बैठा दिया।
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चाणक्य और चद्रगुप्त मौर्य का नाम तो सभी ने सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कैसे चाणक्य ने अपनी नीतियों के बल पर चंद्रगुप्त को राजा बना दिया?
जब चाणक्य छोटे थे तो उनके घर एक ज्योतिषी आए। चाणक्य की मां ने उन्हें चाणक्य की जन्मपत्री दिखाई। जन्मपत्री देखकर ज्योतिषी तो बहुत खुश हुए लेकिन चाणक्य की मां दुखी हो गईं क्योंकि जन्मपत्री में राजयोग था। इसके बाद ज्योतिषी ने चाणक्य को बुलवाया और आगे के दांतों में नागराज का चिन्ह देखकर प्रसन्न हो उठे। नागराज का चिन्ह इस बात का सबूत था कि चाणक्य आने वाले दिनों में राज करेंगे।
ज्योतिषी के जाने के बाद चाणक्य की मां परेशान रहने लगीं। जब चाणक्य से अपनी परेशान मां को नहीं देखा गया तो उन्होंने जानने की कोशिश की। इस पर उनकी मां ने कहा कि राजा बनने के बाद वक्त की कमी के कारण मां-बेटे अलग हो जाएंगे। इतना सुनते ही चाणक्य ने अपने आगे के दांत निकाल दिए जिसमें नागराज का चिन्ह था। इसके बाद चाणक्य की मां के चेहरे खुशी की लहर दौड़ गई।
चाणक्य ने नागराज वाले चिन्ह के दांत ज़रूर उखाड़ दिए थे लेकिन राजा धनानंद के साथ-साथ पूरे राज्य में चाणक्य के बारे में पता चल चुका था।
कुछ सालों के बाद राजा धनानंद की ओर से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें भिक्षुओं को सम्मानित किया जाना था। उस कार्यक्रम में चाणक्य भी मौजूद थे। राजा धनानंद को जैसे ही इस बात का पता चला उन्होंने चाणक्य को देश से निकल जाने का आदेश दे दिया।
राजा की इस बात से चाणक्य आहत हो गए और उन्होंने राजा को बर्बाद करने की ठान ली। देश से निकालने के लिए सैनिक जब उन्हें लेकर जा रहे थे, तभी मौका पाकर चाणक्य वहां से भागकर जंगल में पहुंच गए। कुछ समय बाद चाणक्य ने बड़ी चालाकी के साथ राजा धनानंद के बेटे पाब्बता से दोस्ती कर ली।
जंगल से गुज़रते वक्त चाणक्य की नज़र एक बच्चे पर पड़ी जो राजा की नकल कर था। उसके कुछ दोस्त डाकू बने हुए थे और वे उन्हें पकड़ रहा था। उस बच्चे के चेहरे पर अजब सा तेज था। चाणक्य उस बच्चे से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस बच्चे को अपने साथ रखना शुरु कर दिया और उसे राजनीति, रणनीति और युद्धनीति की शिक्षा देने लगे। आपको जानकर हैरानी होगी कि ये बच्चा और कोई नहीं खुद चंद्रगुप्त मौर्य ही थे।
चाणक्य के सामने एक बड़ी चुनौती थी। वे चंद्रगुप्त और पाब्बता में से किसी एक को ही राजा बना सकते थे। ऐसे में उन्होंने परीक्षा के तौर पर पाब्बता को बुलाया और कहा कि चंद्रगुप्त सो रहा है और उसे बिना जगाए उसके शरीर से धागा उतार लाए। अगर धागा निकालने में कोई मुश्किलात सामने आए तो वे चंद्रगुप्त की हत्या कर दे। पाब्बता अंदर गए लोकिन सोए हुए चंद्रगुप्त को देखकर उनका दिल पसीज गया और वे बाहर चले गए। बाहर जाकर उन्होंने चाणक्य से कहा कि सोए हुए व्यक्ति की हत्या करना अधर्म है और वे ये अधर्म नहीं कर सकते। इतना सुनकर चाणक्य ने पाब्बता से जाने को कहा।
अगले दिन चाणक्य ने पाब्बता को मारने का काम चंद्रगुप्त को सैंपा। चंद्रगुप्त जब पाब्बता के नज़दीक पहुंचे तो उन्होंने पाया कि ये काम इतना आसान नहीं है लेकिन गुरु की बात काटना अधर्म है। ऐसे में चंद्रगुप्त ने पाब्बता का सिर धड़ अलग कर दिया और चाणक्या को धागा सौंप दिया।
इसके बाद चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपना शिष्य बना लिया और आगे चलकर एक साधारण से लड़के को भारत का राजा बना दिया। इस घटना के कई वर्षों बाद एक सेना का निर्माण किया गया और राजा धनानंद के राज्य पर हमला कर सत्ता पर चंद्रगुप्त को काबिज किया। इस तरह चाणक्य ने न सिर्फ अपने अपमान का बदला लिया बल्कि सत्ता पर भी कब्ज़ा कर लिया।
चाणक्य नीतियां
चाणक्य ने अपनी बुद्धि और कौशल के बल पर एक साधारण से लड़के चंद्रगुप्त को राज गद्दी पर बैठा दिया। चाणक्य ने नीती ग्रंथ की रचना की थी जिसमें सत्ता पर काबिज़ होने और सत्ता संभालने से संबंधित कई नीतियों के बारे में जानकारी दी गई।
1- जो राजा धर्म में आस्था रखता है, वही देश के जन मानस को सुख पहुंचा सकता है। सद्विचार और सद् आचरण को धर्म माना जाता है। जिसमें ये दो गुण हैं वही राजा बनने योग्य है।
2- जो राजा प्रजा का पालन करने के लिए धन की समुचित व्यवस्था रखता है और राज्य संचालन के लिए यथोचित राज-कोष एकत्र रखता है, उसकी सुरक्षा को कभी भय नहीं हो रहता।
3- एक योग्य राजा को सदैव अपने पड़ोसी राजा के हितों का ध्यान रखना चाहिए और हमेशा सावधान रहना चाहिए। क्योंकि प्राय ये देखा जाता है कि सीमा के निकट वाले राज्य किसी न किसी बात पर आपस में लड़ पड़ते हैं और एक दूसरे के शत्रु बन जाते हैं। जिससे दोनों ही राज्यों का नुकसान होता है।
4- किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले तीन सवाल अपने आप से जरूर पूछें- मैं यह क्यूं कर रहा हूं. इसका परिणाम क्या होगा, क्या सफलता मिलेगी। अगर कोई भी राजा इन तीन सवालों को ध्यान में रखते हुए कोई भी कार्य करता है तो उसे सफलता जरूर मिलेगी। जो उसकी प्रजा के लिए भी अच्छा होगा।
5- राजनीति यही है कि किसी को भी अपनी गुप्त बाते नहीं बताओं नहीं तो आप तबाह हो सकते हैं।
6- हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि हर मित्रता में कोई न कोई स्वार्थ छिपा होता है।
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