जानें क्या है Dark Web, कैसे हुई इसकी शुरुआत और इसका इस्तेमाल कानूनी है या गैर-कानूनी ?

इंटरनेट की दुनिया तीन हिस्सों में बंटी हुई है-- सरफेस वेब (जिसकी मदद से आप गूगल सर्च करते हैं), डीप वेब (इसका इस्तेमाल करने के लिए पासवर्ड की ज़रूरत होती है), डार्क वेब (इसका इस्तेमाल वैध और अवैध कामों के लिए किया जाता है)।
21वीं सदी में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने डार्क वेब के बारे में नहीं सुना होगा। कोई यहां से ड्रग्स मंगवाता है, तो कोई नाबालिग बच्चों की पॉर्न बेचता है, तो कोई बैंकिंग डेटा और पासवर्ड। आए दिन साइबर क्राइम से जुड़ी ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती हैं, जो डार्क वेब से जुड़ी होती हैं। आइए इस लेख के माध्यम से इंटरनेट की दुनिया के तीसरे हिस्से यानि डार्क वेब के बारे में जानते हैं।
क्या है डार्क वेब (What is Dark Web)?
इंटरनेट का 96 फीसद हिस्सा डीप वेब और डार्क वेब के अंतर्गत आता है। हम इंटरनेट कंटेंट के केवल 4% हिस्से का इस्तेमाल करते है, जिसे सरफेस वेब कहा जाता है। डीप वेब पर मौजूद कंटेंट को एक्सेस करने के लिए पासवर्ड की जरूरत होती है जैसे ई-मेल, नेट बैंकिंग, आदि।
डार्क वेब इंटरनेट का वो हिस्सा है जहां वैध और अवैध दोनों तरीके के कामों को अंजाम दिया जाता है। यहां क्रोम, सफारी, ओपेरा जैसे नॉर्मल ब्राउजर की मदद से नहीं पहुंचा जा सकता है क्योंकि इन ब्राउजर्स द्वारा डार्क वेब पर मौजूद वेबसाइटों को इंडेक्स नहीं किया जाता है।
इस दुनिया को एक्सप्लोर करने के लिए टॉर ब्राउजर (Tor Browser) की जरूरत होती है और इस्तेमाल करने वाले शख्स की पहचान किसी के पास नहीं होती है। यहां पर मौजूद इंटरनेट कंटेंट का 5% हिस्सा किसी भी कानून के दायरे में नहीं आता है। डार्क वेब पर ड्रग्स, हथियार, पासवर्ड आदि सब मिलता है।
कैसे हुई डार्क वेब की शुरुआत (How Dark Web came into being)?
एडिनबरा यूनिवर्सिटी के छात्र इयान क्लार्क ने साल 200 में एक थीसिस प्रोजेक्ट पेश किया। इसमें उन्होंने ऐसी तरकीब का ज़िक्र किया जिसकी मदद से इंटरनेट पर गोपनियता बरकरार रखते हुए कम्युनिकेट किया जा सकता था।
क्लार्क की इस थीसिस के आधार पर दो साल बाद टॉर पर काम शुरू हुआ और साल 2008 में टॉर ब्राउजर लॉन्च हुआ। इस ब्राउजर के माध्यम से लोग बिना अपनी पहचान जाहिर किए बिना इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके जरिए एक डार्क वेब को एक्सेस किया जा सकता है।
शुरुआत में अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे ये ऐसे यूजर्स का गढ़ बन गया है जो इंटरनेट पर अपनी पहचान गोपनीय रखना चाहते हैं।
कैसे काम करते है डार्क वेब (How does Dark Web work)?
डार्क वेब ओनियन राउटिंग टेक्नोलॉजी पर काम करता है। ये यूजर्स को ट्रैकिंग और सरिवलांस से बचाती है और उनकी गोपनीयता बरकरार रखने के लिए सैकड़ों जगह रूट और री-रूट करती है। आसान शब्दों में कहा जाए तो प्याज की परतों की तरह डार्क वेब में भी कई परते होती हैं जहां यूजर की इन्फॉर्मेशन इंक्रिप्टेड होती है।
बता दें कि यहां पर वर्चुअल करेंसी जैसे बिटकॉइन का इस्तेमाल किया जाता है। इससे ट्रांजेक्शन को ट्रेस करना असंभव हो जाता है।
क्या डार्क वेब का इस्तेमाल करना गैर-कानूनी है (Is Dark Web illegal)?
डार्क वेब का इस्तेमाल करना जब तक गैर-कानूनी नहीं है जब तक आप कोई अवैध काम को अंजाम न दे रहे हों। बता दें कि टॉर का इस्तेमाल अमेरिकी रक्षा विभाग, मीडिया संगठन, व्हिसल ब्लोअर्स आदि के द्वारा किया जाता है। पिछले कुछ सालों में अवैध गतिविधियों को अंजाम देने के लिए डार्क वेब का इस्तेमाल होने लगा है क्योंकि यहां पर पकड़ा जाना मुश्किल है।
डार्क वेब पर कम से कम 160 से ज्यादा ऐसी वेबसाइट हैं जहां पर अवैध ड्रग्स, हथियार, चाइल्ड पॉर्न, फर्जी पासपोर्ट, पर्सनल पासवर्ड, हैकर्स आदि मिलते हैं। हाल ही में सरकारी एजेंसिों ने कई वेबसाइट को बंद करवाया है जिनमें सिल्क रोड, अल्फाबे और हंसा, प्रोजेक्ट ब्लैक फ्लैग, ब्लैक मार्केट रीलोडेड आदि शामिल हैं।
डार्क वेब एक्सेस करने के बाद आपका कंप्यूटर हैक हो सकता है, अवैध धंधे के चक्कर में आप गिरफ्तार हो सकते हैं, आपके दिमाग पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है आदि। इसलिए डार्क वेब का इस्तेमाल करने से बचें क्योंकि इस दुनिया में प्रवेश करना और बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है।
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