मेट्रो इस समय शहरों की जीवनरेखा बन गई है। प्रतिदिन लाखों यात्री मेट्रो से सफर कर अपनी मंजिलों तक पहुंचते हैं। इसके इतिहास की बात करें, तो भारत ने अपनी आधुनिक शहरी परिवहन यात्रा की शुरुआत 24 अक्टूबर 1984 को कोलकाता में देश की पहली मेट्रो ट्रेन के उद्घाटन के साथ की थी।
क्या है इतिहास
कोलकाता में मेट्रो की अवधारणा 1920 के दशक की है, लेकिन निर्माण कार्य 1970 के दशक में ही शुरू हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 29 दिसंबर 1972 को इसकी आधारशिला रखी, जिससे शहरी परिवहन में आमूलचूल परिवर्तन के युग की शुरुआत हुई।
यह परियोजना समस्याओं से भरी रही। क्योंकि, वित्तपोषण और लॉजिस्टिक्स की कमी के कारण अक्सर इसका निर्माण बाधित होता था, लेकिन मेट्रो चालू होने तक यह परियोजना चलती रही।
कब हुआ प्रारंभिक परिचालन
कोलकाता मेट्रो का पहला खंड एस्प्लेनेड से भवानीपुर (वर्तमान में नेताजी भवन) तक था, जिसकी दूरी लगभग 3.4 किलोमीटर थी। यह शहरी परिवहन के लिए भारत में पहली मेट्रो सेवा थी, जो कोलकाता के घनी आबादी वाले क्षेत्रों के लिए परिवहन का एक नया साधन उपलब्ध कराती थी।
मेट्रो की परिकल्पना यातायात की भीड़ को कम करने तथा दैनिक यात्रियों के लिए परिवहन का एक विश्वसनीय साधन उपलब्ध कराने के लिए की गई थी।
प्रारंभिक परिचालन छोटा था तथा इस खंड पर केवल पांच स्टेशन ही सेवाएं देते थे। हालांकि, जनता की प्रतिक्रिया अत्यधिक सकारात्मक थी और बाद के वर्षों में विस्तार बहुत तेजी से हुआ। इसके शुभारंभ के कुछ सप्ताह के भीतर ही शहर के और भीतर तक और अधिक सेवाएं शुरू कर दी गईं थी।
कैसे हुआ विस्तार
अपनी स्थापना के बाद से कोलकाता मेट्रो ने व्यापक विस्तार देखा है। इसकी लंबाई मूल 3.4 किमी से बढ़कर आज लगभग 60 किमी हो गई है, जिसमें कई लाइनें और स्टेशन शामिल हैं। यह हुगली नदी के नीचे भारत की पहली पानी के नीचे की मेट्रो लाइन है, जो हावड़ा और कोलकाता को जोड़ती है।
मेट्रो प्रणाली कोलकाता के शहरी परिदृश्य का एक अभिन्न अंग बन गई है, जो प्रतिदिन लाखों लोगों को यात्रा करने में सुविधा प्रदान करती है। वर्तमान में यह दिल्ली मेट्रो के बाद भारत में दूसरा सबसे व्यस्त मेट्रो नेटवर्क है और शहर भर में कनेक्टिविटी बढ़ाने के उद्देश्य से चल रही परियोजनाओं के साथ इसका विकास जारी है। आज कोलकाता के बाद आगरा, दिल्ली, बंगलुरू और लखनऊ आदि शहरों में मेट्रो चल रही हैं।
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