Baisakhi 2020: पर्व का इतिहास और महत्त्व

Apr 13, 2020, 12:05 IST

बैसाखी पर्व, कृषि का पर्व भी कहा जाता है. इसे विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा के किसान फसल कटाई के बाद मनाते हैं, क्योंकि इस माह के शुरू होने से पहले ही किसान अपना पूरा अनाज घर ले आते हैं. इसके अलावा सिख समुदाय इस पर्व को इसलिए धूमधाम से मनाता है क्योंकि 1699 में बैसाखी के दिन ही सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी.

Baisakhi Festival 2020
Baisakhi Festival 2020

अनेकता में एकता की मिशल पेश करने वाला भारत एक अनोखा देश है. यहाँ पर विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के लोगों के निवास के कारण लगभग हर महीने ही कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता है.

हिंदी/हिन्दू महीनों के नाम में पहला महीना चैत्र का और दूसरा बैसाख का आता है.चैत्र माह में फसल कटाई का काम शुरू होता है और बैशाख तक पूरा हो जाता है अर्थात बैशाख में फसल किसानों के घर आ जाती है. इसलिए बैसाखी, कृषि का पर्व भी कहा जाता है. 

इसे पंजाब और हरियाणा के किसान फसल कटाई के बाद मनाते हैं.हालाँकि इसे देश के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है.

बैसाखी पर्व का इतिहास (History of Bisakhi Festival)

औरंगजेब के शासन के दौरान सिख और अन्य समुदायों पर बहुत जुल्म हुए और उनको धर्म परिवर्तन के लिए बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया था. गुरु तेग बहादुर ने हिंदू कश्मीरी पंडितों और गैर-मुस्लिमों के जबरन धर्म परिवर्तन का विरोध किया और खुद इस्लाम ग्रहण करने से इंकार कर दिया था जिसके कारण 1675 में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर सार्वजनिक रूप से उनकी हत्या कर दी गई थी.

इसके बाद गुरु गोविन्द सिंह जी ने शिष्यों को एकत्र कर 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी के दिन ही श्री केसरगढ़ साहिब आनंदपुर में खालसा पंथ की स्थापना की जिसका मकसद था धर्म और भलाई के लिए सिख समुदाय को हमेशा तैयार रखना.

बैसाखी पर्व का महत्त्व (Importance of Baisakhi festival)

बैसाखी पर्व को मेष संक्राति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है. आम तौर पर बैसाखी पर्व 13 अप्रैल को मनाया जाता है लेकिन 36 सालों में एक बार ऐसा संयोग होता है जब यह पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाता है.

पहेला बैशाख या बंगला नोबोबोरशो बंगाली कैलेंडर का पहला दिन होता है.बंगाल में इस दिन से ही फसल की कटाई शुरू होती है. इस दिन नया काम करना शुभ मानकर नए धान के व्यंजन बनाए जाते हैं.

मलयाली न्यू ईयर विशु वैशाख की 13-14 अप्रैल से ही शुरू होता है.तमिल लोग 13 अप्रैल से नया साल ‘पुथांदू’ मनाते हैं. असम में लोग 13 अप्रैल को नया वर्ष बिहू मनाते हैं. केरल में इस दिन धान की बुबाई शुरू होती है इस दिन हल और बैलों को रंगोली से सजाया जाता है.

बैसाखी पर्व पंजाब में कैसे मनाया जाता है? (How is Baisakhi Festival Celebrated )

बैसाखी की रात में लोग आग जलाकर लोग उसके चारों तरफ एकत्र होते हैं और नए अन्न को अग्नि को समर्पित किया जाता है और पंजाब का परंपरागत नृत्य गिद्दा और भांगड़ा किया जाता है. 

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आनंदपुर साहिब में,(जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी) विशेष अरदास और पूजा होती है, पंच प्यारे 'पंचबानी' गायन करते हैं. गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहब को समारोह पूर्वक बाहर लाकर दूध और जल से प्रतीकात्मक रूप में स्नान कराकर गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर विराजमान किया जाता है. अरदास के बाद गुरु जी को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है. प्रसाद भोग लगने के बाद सब भक्त 'गुरु जी के लंगर' में भोजन करते हैं.

इस प्रकार स्पष्ट है कि बैसाखी का पर्व पूरे देश में विभिन्न रंगों और मान्यताओं के साथ मनाया जाता है.

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