हाल ही में, त्रिपुरा हाईकोर्ट ने पाया है कि नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS), 1985 में 2014 के संशोधनों का ड्राफ्ट तैयार करने में अनजाने में अधिनियम के एक प्रमुख प्रावधान (धारा 27A) को निष्क्रिय कर दिया था.
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने देखा कि NDPS एक्ट की धारा 27A के तहत धारा 2(viiiib)(i-v) को प्रतिस्थापित करने के लिए किसी प्रकार का कोई संशोधन नहीं किया गया है.
आखिर प्रावधान (Provision) क्या है?
NDPS अधिनियम, 1985 प्रमुख कानून है जिसके माध्यम से राज्य नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस के संचालन को नियंत्रित करता है.
यह नशीले पदार्थों और मन: प्रभावी पदार्थों के अवैध व्यापार से संबंधित अपराधों को कारावास और संपत्ति की जब्ती के माध्यम से दंडित करने के लिए एक कठोर ढांचा प्रदान करता है.
NDPS अधिनियम, 1985 की धारा 27A में ड्रग्स की तस्करी करनेवालों और अपराधियों को शरण देने वालों के लिए दंड का प्रावधान है.
प्रावधान यह कहता है कि:
"जो कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एनडीपीएस एक्ट की धारा 2 के खंड (viiia) के उप-खंड (i) से (v) में निर्दिष्ट किसी भी वित्तीय गतिविधि में शामिल है. इसमें अपराधी को कम से कम 10 साल और अधिक से अधिक 20 साल तक की सजा हो सकती है. वहीं एक लाख से दो लाख तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है. बशर्ते कि अदालत निर्णय में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए दो लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाएं."
आखिर यह प्रावधान निष्क्रिय क्यों है?
प्रावधान के अनुसार धारा 2 (viiia) उप-खंड i-v के तहत उल्लिखित अपराध धारा 27A के माध्यम से दंडनीय है.
हालांकि, धारा 2 (viiia) उप-खंड i-v, जिसे अपराधों की सूची माना जाता है, 2014 के संशोधन के बाद मौजूद नहीं है.
नतीजतन, धारा 27A अपनी स्पष्टता खोकर निष्क्रिय प्रावधान बन गया.
इसलिए, यदि धारा 27A किसी रिक्त सूची या गैर-मौजूद प्रावधान को दंडित करती है, तो यह तर्क दिया जा सकता है कि यह वस्तुतः निष्क्रिय है.
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कोर्ट ने इस विषय पर प्रासंगिक निर्णयों का विश्लेषण करते हुए कहा:
"हमने पूरे क़ानून को पढ़ने के बाद इस दृष्टिकोण को अपनाया है. हमने केवल हटाने और संयोजन का प्रभाव दिया है. साथ ही हम यह देखने के लिए विवश हैं कि केंद्र सरकार एनडीपीएस एक्ट के गलती को हटाने और एनडीपीएस अधिनियम की धारा -2 के खंड (viiib) के उप-खंड i से v द्वारा प्रतिस्थापन के उद्देश्य से किए गए संशोधन अधिनियम को पेश करने में विफल रही है. इस परिस्थिति में केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को बिना किसी देरी के नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act), 1985 की धारा 27A में संशोधन के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है."
"केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों इस आदेश की चीजों के बारे में संक्षेप में सार्वजनिक सूचना के लिए एक अधिसूचना प्रकाशित करेंगे ताकि लोगों को यह पता चले कि भारत के संविधान के अनुच्छेद -20 का महत्व कम नहीं हुआ है. ऐसी अधिसूचना आज से एक महीने के भीतर की जारी की जाएं."
2014 के संशोधन के बारे में
2014 में, नारकोटिक्स ड्रग्स के लिए बेहतर चिकित्सा पहुंच की अनुमति देने के लिए NDPS अधिनियम में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया था. चूंकि NDPS के तहत विनियमन बहुत सख्त था, मॉर्फिन का एक प्रमुख निर्माता होने के बावजूद, एक दर्द निवारक के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला एक ओपिओइड एनाल्जेसिक (Opioid analgesic), अस्पतालों के लिए भी दवा तक पहुंचना मुश्किल था.
2014 के संशोधन ने अनिवार्य रूप से "आवश्यक नारकोटिक्स ड्रग्स" के रूप में वर्गीकृत दवाओं के परिवहन, लाइसेंसिंग में राज्य-बाधाओं को हटा दिया और इसे केंद्रीकृत कर दिया.
यह पहले धारा 2 में एक प्रावधान पेश करके किया गया था जो आवश्यक नारकोटिक्स ड्रग्स को परिभाषित करता है, और बाद में धारा 9 में निर्माण, परिवहन, आयात अंतर-राज्य, निर्यात अंतर-राज्य, बिक्री, खरीद, खपत और आवश्यक नशीले पदार्थों के उपयोग की अनुमति देता है.
NDPS एक्ट की धारा 2(viiia) को संशोधित किया गया और खंड (viiiib) में स्थानांतरित किया गया जो 1 मार्च 2014 से प्रभावी हुआ. पुन: लिखे गए प्रावधान के अनुसार नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस के संबंध में अवैध गतिवधि का अर्थ परिभाषित किया गया, जिसमें अवैध गतिविधियों की एक सूची प्रदान की गई.
हालांकि, ड्राफ्टर्स धारा 2(viii)a को धारा 2(viii)b में बदलने के लिए धारा 27A में सक्षम प्रावधान में संशोधन करने से चूक गए.
आखिर इसके बारे में पता कैसे चला?
2016 में, एक आरोपी ने मसौदा तैयार करने में इस चूक का हवाला देते हुए अगरतला में पश्चिम त्रिपुरा में एक विशेष न्यायाधीश के समक्ष जमानत मांगी. आरोपी की दलील थी कि चूंकि धारा 27A एक खाली सूची को दंडित करती है, इसलिए उसे अपराध के तहत आरोपित नहीं किया जा सकता है. इसके बाद जिला न्यायाधीश ने मामले को त्रिपुरा उच्च न्यायालय में भेज दिया.
अंत में आइये जानते हैं नारकोटिक्स के बारे में
नारकोटिक्स दवाओं का एक वर्ग है जिसे आमतौर पर ओपिओइड (Opioids) भी कहा जाता है.
ओपिओइड प्रिस्क्रिप्शन दर्द की दवाएं हैं और वे मध्यम से लेकर बहुत पॉवर तक की हो सकती हैं.
अधिकांश नशीले पदार्थ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में समान रिसेप्टर्स से बंधे होते हैं, उन सभी में दर्द निवारक क्षमताएं होती हैं, और उन सभी में दुरुपयोग की संभावना भी होती है.
नारकोटिक्स मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और पूरे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में ओपिओइड रिसेप्टर्स से जुड़कर काम करते हैं.
ऐसा करने से, ओपिओइड मस्तिष्क को दर्द का संदेश कैसे भेजा जाता है और शरीर दर्द को कैसे महसूस करता है, को कम करता है.
वर्षों से, ओपिओइड अक्सर दर्द के उपचार में पहले इस्तेमाल होता आ रहा है. लेकिन अब ओपिओइड के इस्तेमाल को कम करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं.
ऐसा बताया जाता है कि ओपिओइड केवल उन केसेस में उपयोग किए जाते हैं जिनमें दर्द ने अन्य उपचार काम नहीं करते हैं.
Source:indianexpress
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