भारत की नई आर्थिक नीति (NEP) 24 जुलाई, 1991 को तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने शुरू की थी. इस नीति का मुख्य उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था का भूमंडलीकरण करना था ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था में उपलब्ध अवसरों का लाभ मिल सके. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि अभी देश में केवल 5 क्षेत्र (सुरक्षा, रणनीतिक और पर्यावरणीय चिंताओं से संबंधित) ऐसे बचे हैं जिनमें घुसने के लिए निजी क्षेत्र को लाइसेंस लेने की जरुरत पड़ेगी.
उदारीकरण और वैश्वीकरण के लाभों को भुनाने के लिए; सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या कम कर दी है. वर्ष 2014 के दौरान; रेल बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को भी अनुमति दे दी गयी है. नतीजतन वर्तमान में केवल 2 औद्योगिक क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित हैं और बाकी सभी क्षेत्रों को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है.
सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित क्षेत्र हैं;
1. परमाणु ऊर्जा
भारत में प्रमुख वित्तीय संस्थानों की सूची
2. रेलवे परिचालन;
लेकिन रेलवे परिचालन के निम्नलिखित क्षेत्रों के निर्माण, संचालन और रखरखाव में प्राइवेट क्षेत्र शामिल हो सकता है;
(a). हाई स्पीड ट्रेन परियोजना
(b). डेडिकेटेड फ्रेट लाइन्स
(c). पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के माध्यम से उपनगरीय गलियारा परियोजनाएं
(d). रेलवे विद्युतीकरण
(e). सिग्नलिंग सिस्टम
(f). मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम
(g). भाड़ा टर्मिनल
(h). यात्री टर्मिनल
(i). ट्रेन सेट और लोकोमोटिव / कोच विनिर्माण और रखरखाव सुविधायें
(j). रेलवे लाइन से सम्बंधित औद्योगिक पार्क में इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण
मेरे दृष्टिकोण से सार्वजनिक क्षेत्र के लिए क्षेत्रों की संख्या में कमी बहुत आशावादी कदम है क्योंकि यह देखा गया है कि देश में बहुत कम सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम ऐसे हैं जो लाभ पैदा कर रहे हैं जबकि ज्यादातर निजी कंपनियां लाभ कमा रही हैं. साथ ही यह भी देखा गया ही कि जब कोई सरकारी कंपनी सरकार के नियंत्रण में होती है तो वह घाटे में रहती है यदि इस सरकारी कंपनी का निजीकरण कर दिया जाता है तो वह लाभ कमाने लगती है. इसलिए सरकार को सरकारी कंपनियों की कार्य प्रणाली सुधारने के लिए भी कुछ सुधारक कदम उठाने होंगे.
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