महाकुंभ 2025, 13 जनवरी से प्रयागराज में आरंभ हो गया है, और लाखों करोड़ों की संख्या में लोग संगमनगरी पहुंच रहे है. यह धार्मिक आयोजन गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर होता है. अब सवाल उठता है कि संगम में पहुंच रहे श्रद्धालुओं की गिनती कैसे की जा रही है. यहां हम इसी बात की चर्चा करने जा रहे है कि आयोजक कैसे श्रद्धालुओं की संख्या का पता लगा रहे है.
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पहले शाही स्नान में कितने लोग पहुंचे:
प्रयागराज महाकुंभ 2025 में पहले शाही स्नान (अमृत स्नान) के दिन प्रशासन ने दावा किया कि 3.5 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस आंकड़े को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर साझा किया.
45 करोड़ श्रद्धालुओं का अनुमान:
महाकुंभ के दौरान कुल 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान लगाया गया है। मकर संक्रांति और अन्य प्रमुख स्नान पर्वों पर भारी भीड़ की उम्मीद की जा रही है.
कैसे हो रही श्रद्धालुओं की गिनती:
महाकुंभ 2025 में स्नान करने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं की गिनती के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है. प्रशासन ने इस बार पहली बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित तकनीक का उपयोग किया है. मेले में 1107 अस्थाई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, जो हर मिनट डेटा अपडेट करते हैं. इनसे क्राउड डेंसिटी एल्गोरिदम की मदद से भीड़ की सटीक गणना की जा रही है. साथ ही, ट्रेनों, बसों, नावों और प्राइवेट वाहनों से आने वाले श्रद्धालुओं के आंकड़े भी जोड़े जा रहे हैं. हालांकि, विशेषज्ञ इसे पूर्णतः सटीक मानने के बजाय इसे एक अनुमानित प्रक्रिया बताते हैं.
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श्रद्धालुओं की गिनती के तरीके:
बता दें कि क्राउड डेंसिटी एल्गोरिदम की मदद से भीड़ की सटीक गणना की जा रही है. यहां आयोजकों द्वारा उपयोग किये जा रहे तरीके के बारें में बताया गया है.
एआई और सीसीटीवी का उपयोग:
पहली बार, एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) तकनीक का उपयोग कर श्रद्धालुओं की सटीक गिनती की जा रही है.
- 1107 सीसीटीवी कैमरे मेला क्षेत्र और प्रयागराज शहर में लगाए गए हैं.
- एआई लैस कैमरे हर मिनट डेटा अपडेट करते हैं और भीड़ के घनत्व को मापते हैं.
- क्राउड डेंसिटी एल्गोरिदम और रियल-टाइम अलर्ट से अधिकारियों को भीड़ का प्रबंधन और ट्रैकिंग में सहायता मिलती है.
परिवहन और अन्य माध्यम:
नावों, ट्रेनों, बसों, और निजी वाहनों से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को गिनती में शामिल किया जाता है. साधु-संतों के शिविरों में आने वाले श्रद्धालुओं को भी गिनती में जोड़ा जाता है.
साल 2013 में कैसे हुई थी काउंटिंग:
साल 2013 के कुंभ में पहली बार सांख्यिकीय विधि का उपयोग किया गया था. बता दें कि एक व्यक्ति को स्नान के लिए 0.25 मीटर जगह और 15 मिनट लगते हैं. 44 घाटों पर 18 घंटे स्नान के आंकड़ों को जोड़ने पर प्रशासन द्वारा बताए गए आंकड़ों से काफी कम संख्या निकलती है.
विवाद और वास्तविकता:
DW की एक रिपोर्ट के अनुसार, कई विशेषज्ञ प्रशासन के दावों पर सवाल भी उठाते हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ और वरिष्ठ फोटोग्राफर एसके यादव के अनुसार, "गिनती का कोई सटीक मैकेनिज्म नहीं है, आज भी अनुमान ही लगाया जाता है. उनके अनुसार, इस बार 2013 और 2019 के मुकाबले भीड़ अपेक्षाकृत कम थी.
श्रद्धालुओं की गिनती के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन यह पूरी तरह सटीक नहीं है. सांख्यिकीय विधि और अनुमान अभी भी बड़े पैमाने पर उपयोग में हैं.
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