भारत की सेना को पृथ्वी पर लड़ने वाली दुनिया की सबसे खतरनाक सेना माना जाता है. वर्ष 1962 में जब चीन ने बिना किसी सूचना के भारत पर हमला कर दिया तो भारत में जाबांज सैनिक बिना जूते पहने ही सीमा पर लड़ने चले गए और खाने की उचित व्यवस्था ना होने के कारण वे ‘पंजीरी’(एक प्रकार का भुना हुआ चीनी युक्त आटा) खाकर ही चीन के सैनिकों का सामना करते रहे. जब चीन के सैनिकों ने देखा कि भारत के सैनिक कोई सफ़ेद पाउडर खाकर ही मुकबला कर रहे हैं तो उन्होंने अपने अधिकारियों को बताया कि पता नहीं भारत के सैनिक कौन सा पाउडर खाकर हमें कांटे की टक्कर दे रहे हैं. युद्ध की समाप्ति के बाद चीन को सच का पता लगा था.
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तो यह था भारत के जाबांज सैनिकों का देश के प्रति समर्पण का एक उदाहरण, जिससे पता चलता है कि सैनिक अपने देश का कितना ख्याल रखते हैं. अब सवाल यह है कि क्या सरकारें भी सैनिकों का इतना ही ख्याल रखती है?
क्या आपने सोचा है कि जब कोई सैनिक शहीद हो जाता है या कोई वीरता पुरस्कार जीतता है तो उसके परिवार या खुद उसी को इस वीरता पुरस्कार के रूप में कितना रुपया मिलता है? वर्ष 2008 में देश के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ विजेता को हर महीने सिर्फ 1500 रुपये मिलते थे जो कि अब 2018 में 20000/माह हो गया है. हालाँकि आजकल की बढती महंगाई को देखते हुए यह भी ऊँट के मुंह में जीरा ही लगता है. आइये देखते हैं कि अन्य वीरता पुरस्कारों में कितनी राशि मिलती है?
वर्तमान में; मौद्रिक भत्ते की नई दर इस प्रकार है; (1 अगस्त, 2017 से प्रभावी);
वीरता पुरस्कार | मौद्रिक भत्ता की पिछली दर | मौद्रिक भत्ते की संशोधित दर |
परमवीर चक्र (PVC) | 10,000 | 20,000 |
अशोक चक्र (AC) | 6,000 | 12,000 |
महावीर चक्र (MVC) | 5,000 | 10,000 |
कीर्ति चक्र (KC) | 4,500 | 9,000 |
वीर चक्र (VrC) | 3,500 | 7,000 |
शौर्य चक्र (SC) | 3,000 | 6,000 |
सेना / नौ सेना / वायु सेना पदक (वीरता) | 1,000 | 2,000 |
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वीरता पुरस्कार विजेताओं को केंद्र सरकार द्वारा हर महीने दी जाने वाले मौद्रिक भत्ते के अतिरिक्त सम्बंधित राज्य सरकारों से एकमुश्त नकद पुरस्कार,पेट्रोल पंप या भूखंड भी मिलते हैं.
हालाँकि राज्यों द्वारा दी जाने वाली यह राशि हर राज्य में अलग अलग होती है. जैसे परमवीर चक्र पुरस्कार के लिए पंजाब और हरियाणा सरकार के द्वारा 2 करोड़ रुपये जबकि अशोक चक्र के लिए इन दोनों राज्यों में 1 करोड़ रुपये दिए जाते हैं.
केरल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, बिहार और मिजोरम में अशोक चक्र और परमवीर चक्र के लिए 8 लाख से 50 लाख रुपये के बीच दिए जाते हैं जबकि गुजरात जैसे धनी प्रदेश में परमवीर चक्र विजेता को सिर्फ 22,500 रुपये और अशोक चक्र के लिए 20,000 रुपये दिए जाते हैं.
निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि युद्ध के मैदान में मारे गये व्यक्ति की जिंदगी की कोई कीमत नहीं लगायी जा सकती है. हाँ उस जाबांज के मरने के बाद उसका परिवार आर्थिक रूप से परेशान ना हो इसके लिए मुआवजे के तौर पर दी गयी राशि घाव पर मलहम का काम जरूर करती है.
लेकिन वास्तविकता कुछ अलग होती है; क्योंकि जब कोई सैनिक मर जाता है तो कुछ नेता और सरकारें सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए मुआबजे या पेट्रोल पंप इत्यादि की घोषणा कर देते है लेकिन सच्चाई यह है कि शहीद के परिवार को मुआबजा लेने के लिए दफ्तरों के चक्कर खाने पड़ते है, रिश्वत देनी पड़ती है.
इसलिए मेरा मानना है कि सरकार को शहीद सैनिक के पीड़ित परिवार के खाते में सहायता राशि सीधे उसी के खाते में डालनी चाहिए ताकि उस शहीद के परिवार को ठोकरें ना खानी पड़ें क्योंकि मुआबजा उसका हक है खैरात नहीं.
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