Electoral bonds kya hai: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक बड़े फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध और असंवैधानिक बताकर रोक लगा दी है. इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर पिछले साल 31 अक्टूबर से सुनवाई चल रही थी जिस पर अब फैसला आ गया है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वोटर्स को यह जानने का हक है कि फंडिंग कहां से आ रही है. फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. चलिये जानते है इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बांड क्या होते है और इसकी शुरुआत कब हुई थी.
कोर्ट ने आगे कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन करता है. जिस कारण कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
चुनाव आयोग ने डेटा किया अपलोड:
भारतीय चुनाव आयोग ने चुनावी बांड के संबंध में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है. ईसीआई ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, भारत के चुनाव आयोग ने आज अपनी वेबसाइट पर चुनावी बांड पर एसबीआई से प्राप्त डेटा "जैसा है जहां है" के आधार पर अपलोड किया है. एसबीआई से प्राप्त डेटा को इस यूआरएल पर एक्सेस किया जा सकता है: https://www.eci.gov.in/disclosure-of-electoral-bonds.
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क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड:
चुनावी बांड एक प्रकार का मनी इंस्ट्रूमेंट होता है जो एक वाहक बांड के रूप में कार्य करता है. जिन्हें भारत में व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है. इसके नाम के अनुरूप ये बांड विशेष रूप से राजनीतिक दलों को धन के योगदान के लिए जारी किए जाते हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया माना जाता है.
इस बांड की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि बैंक से इसे खरीदने वाले का नाम बांड पर नहीं होता है. इससे आप यह कह सकते है कि कोई भी व्यक्ति गुमनाम तरीके से अपनी पसंद की पार्टी को फंडिंग कर सकता था. इन बांड को कोई भी खरीद सकता है.
कब शुरू हुआ था इलेक्टोरल बॉन्ड:
इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत भारत में साल 2017 में की गयी थी जिसे जनवरी 2018 में क़ानूनी रूप से लागू कर दिया गया था. इसके तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को पैसे देने के लिए बॉन्ड जारी करने का अधिकार मिला था.
किन पार्टियों को मिलता था इसका लाभ:
इसके तहत भारतीय स्टेट बैंक से कोई भी 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के बांड खरीद सकता था. चुनावी बांड के माध्यम से केवल उन्ही पार्टियों को फंडिंग की जा सकती थी जिन्हें लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम 1% वोट मिला होता था.
लोकसभा चुनाव पर क्या होगा असर:
चुनावी बांड को लेकर मामला पिछले कई सालों से कोर्ट में लंबित था और लोगों की इस पर निगाहें इसलिए भी थी कि यह फैसला लोकसभा चुनावों पर भी असर डाल सकता है. अक्टूबर में इस मामले को लेकर को भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा था कि यह राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदों में "साफ़ धन" के उपयोग को बढ़ावा देती है.
Supreme Court holds Electoral Bonds scheme is violative of Article 19(1)(a) and unconstitutional. Supreme Court strikes down Electoral Bonds scheme. Supreme Court says Electoral Bonds scheme has to be struck down as unconstitutional. https://t.co/T0X0RhXR1N pic.twitter.com/aMLKMM6p4M
— ANI (@ANI) February 15, 2024
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