भारतीय मंदिर कला, ज्ञान, संस्कृति, अध्यात्मिकता, शिक्षा और नवाचार का केंद्र रहे हैं। मंदिर पहुंचने पर हमें कला और विज्ञान का मिश्रण देखने को मिलता है, जो कि शिल्प शास्त्र, वास्तु शास्त्र और ज्यामिति के रूप में दिखाई देता है। 22 जनवरी देश की एक महत्वपूर्ण तारीख बन गई है, जिस दिन अयोध्या राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठ हुई है। इस दिन पूरा देश अयोध्यामय हो गया है। हर जुबान पर सबके राम और सबमें राम है।
ऐसे में क्या आप जानते हैं कि मंदिर का निर्माण नागर शैली में हो रहा है, जो कि भारत में मंदिर निर्माण की एक प्रमुख शैली। हालांकि, इस यह किस प्रकार की शैली होती है, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
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भारत में मंदिर निर्माण की तीन शैलियां
भारत के प्राचीन इतिहास को उठाकर देखें, तो भारत में मंदिर निर्माण की तीन शैलियां रही हैं, जिसमें नागर, द्रविड़ और वेसर है। नागर शैली प्रमुख रूप से उत्तर भारत में मंदिर निर्माण शैली रही है। इस शैली के मंदिर हिमालय से विंध्याचल पर्वत के बीच बनाए गए हैं। वहीं, द्रविड़ शैली मुख्य रूप से दक्षिण भारत तक रही हैं और इन दोनों के मध्य में दोनों शैलियों का मिश्रण देखने को मिलता है, जिसे हम बेसर कहते हैं।
क्या होती है नागर शैली
नागर शैली मुख्यतः सातवीं शताब्दी की रही है, जब पल्लव काल में यह शुरू हुई और चोल काल में यह शैली अधिक विकसित हुई। इस शैली में मंदिर का निर्माण एक बड़े चबूतरे पर किया जाता है। इसके साथ ही मंदिर का मुख्य गर्भ गृह, जिसके ऊपर हमें शिखर, शिखर के ऊपर आमलक और आमलक के ऊपर कलश देखने को मिलता है।
इस कलश के साथ एक ध्वज भी लगाया जाता है। वहीं, मंदिर के गर्भगृह के आगे तीन मंडप भी देखने को मिलते हैं और इन मंडप के आगे सीढ़ियां होती हैं, जो कि नीचे से सीधे मंदिर के चबूतरे पर खत्म होती हैं। इन सीढ़ियों को जगति के नाम से जाना जाता है।
खुले में बनाए जाते हैं मंदिर
नागर शैली के मंदिरों का निर्माण मुख्यतः खुले स्थान पर होता है, यानि कि इन मंदिरों के चारो ओर आपको कोई चहारदीवारी देखने को नहीं मिलेगी। वहीं, द्रविड़ शैली में मंदिरों का निर्माण चहारदीवारी में किया जाता है और प्रवेश के लिए भव्य द्वार का निर्माण होता है।
नागर शैली में आठ भागों में बंटा होता है मंदिर
नागर शैली में मंदिर ऊंचाई में आठ भागों में बंटा होता है। इसमें मूल(आधार), गर्भगृह मसरक, जंघा(दीवार), कपोत(कार्निस), शिखर, गल(गर्दन), कुंभ और वर्तालुकार आमलक।
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