Khaleda Zia: बांग्लादेश की पहली महिला PM खालिदा जिया की रिहाई के आदेश, देखें उनका राजनीतिक सफर

बांग्लादेश में हो रही राजनीतिक उठापटक के बीच बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने जेल में बंद विपक्षी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को रिहा करने का आदेश दिया है. खालिदा जिया ने 1990 में जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के खिलाफ सैन्य तख्तापलट विरोधी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1991 के आम चुनावों में अपनी पार्टी को जीत दिलाई. उन्हें साल 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल की सजा सुनाई गई थी. चलिये जानें उनके राजनीतिक सफ़र के बारें में.   

Aug 6, 2024, 19:57 IST
बेगम खालिदा जिया का राजनीतिक सफ़र
बेगम खालिदा जिया का राजनीतिक सफ़र

बांग्लादेश में हो रही राजनीतिक उठापटक के बीच बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने जेल में बंद विपक्षी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को रिहा करने का आदेश दिया है. जिया को शेख हसीना का प्रतिद्वंदी माना जाता है. प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और देश से भाग जाने के कुछ घंटे बाद ही यह आदेश दिए गए है.     

बता दें कि इस समय भारत के पड़ोसी देश में राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहे है, जिस पर भारत भी अपनी नजर बनाये हुए है. खालिदा जिया को रिहा करने का निर्णय विपक्षी सदस्यों के साथ हुई बैठक में लिया गया. राष्ट्रपति शहाबुद्दीन ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया को तुरंत रिहा किया जाए. 

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भारत की हर घटनाक्रम पर नजर:

भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने नागरिकों को बांग्लादेश यात्रा करने से बचने की सलाह दी है और वहां रह रहे भारतीयों को अत्यधिक सावधानी बरतने, अपनी गतिविधियों को सीमित रखने और ढाका में उच्चायोग से संपर्क बनाए रखने का आग्रह किया है. 

Khaleda Zia कौन हैं बेगम खालिदा जिया:

बेगम खालिदा जिया एक प्रमुख बांग्लादेशी राजनेता हैं जिन्होंने मार्च 1991 से मार्च 1996 और फिर जून 2001 से अक्टूबर 2006 तक देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया था. वह पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की पत्नी है और 1984 से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष हैं, जिसकी स्थापना उनके पति द्वारा 1978 में स्थापित की गई थी.

खालिदा जिया ने 1990 में जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के खिलाफ सैन्य तख्तापलट विरोधी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1991 के आम चुनावों में अपनी पार्टी को जीत दिलाई. 

बेगम खालिदा जिया का राजनीतिक सफ़र:

बेगम खालिदा जिया को शेख हसीना का बहुत बड़ा प्रतिद्वंदी माना जाता है. बता दें कि 1996 के बाद साल 2001 में वह फिर से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में निर्वाचित हुई. उन्हें साल 2018 में भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल की सजा सुनाई गई थी.  

वर्ष

घटनाक्रम 

1984

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष बनीं

1990

जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के खिलाफ सैन्य तख्तापलट विरोधी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

मार्च 1991

बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में निर्वाचित

मार्च 1996

प्रधानमंत्री के रूप में पहला कार्यकाल समाप्त

जून 2001

फिर से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में निर्वाचित

अक्टूबर 2006

प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल समाप्त

2007

उनके प्रशासन के खिलाफ महत्वपूर्ण भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सैन्य-समर्थित कार्यवाहक सरकार ने सत्ता संभाली.

2018

भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल की सजा सुनाई गई.

मार्च 2020

मानवीय आधार पर रिहा हुई

2020

कुल 36 कानूनी मामलों का सामना करना पड़ा

भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद जेल गयी:

वह 2001 में फिर से प्रधानमंत्री के तौर पर कमान संभाली, लेकिन उनके प्रशासन को महत्वपूर्ण भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 2007 में एक सैन्य-समर्थित कार्यवाहक सरकार ने सत्ता संभाली. 

2018 में, उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में 17 साल की सजा सुनाई गई. अमेरिकी विदेश विभाग और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उनके मुकदमे की निष्पक्षता पर चिंता व्यक्त की. उन्हें मार्च 2020 में मानवीय आधार पर रिहा किया गया था और कुल 36 कानूनी मामलों का सामना करना पड़ा. 

दो कद्दावर महिलाओं के बीच बांग्लादेश की राजनीति: 

बांग्लादेश की राजनीति शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच काफी समय तक झूलती आई है. वर्चस्व और वजूद को लेकर शुरू से ही दोनों प्रतिस्पर्धी रही है. बता दें कि शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक और बंगबंधु कहे जाने वाले पहले राष्ट्रपति शेख मुजीर्बुरहमान की बेटी हैं जबकि खालिदा जिया पूर्व सैन्य अधिकारी और राष्ट्रपति जियाउर रहमान की बेगम हैं. बता दें कि जियाउर रहमान की सरकार ने शेख हसीना के बांग्लादेश आने पर प्रतिबन्ध लगा दिए थे. ऐसे में वह भारत में छह सालों तक रही, जिसके बाद साल 1981 में अवामी लीग की अध्यक्ष बनने के बाद वह वतन लौटी थी.      

Bagesh Yadav
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