Latest NASA Report: नासा ने हाल ही में खुलासा किया है कि दुनिया के समुद्रों का रंग परंपरागत नीले से हरा हो रहा है. आमतौर पर समुद्र का रंग गहरे नीले रंग का होता है लेकिन अब इसमें परिवर्तन देखने को मिल रहे है. यह परिवर्तन पिछले एक दो दशकों के डेटा के अध्ययन के आधार पर बताया गया है. नासा ने वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि यह परिवर्तन समुद्र की सतह के गर्म तापमान को रिकॉर्ड करने जैसा परिणामी नहीं लग सकता है.
जैसा की सबको पता है समुद्र पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि समुद्र की सतह का रंग नीचे मौजूद पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत है. चलिये जानें इसके बारें में विस्तार से.
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क्यों हो रहा रंग में बदलाव?
नासा ने 20 वर्षों के सैटेलाइट डेटा का अध्ययन कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि समुद्र के रंग में परिवर्तन हो रहा है. नासा ने बताया कि समुद्र के इकोसिस्टम में महत्वपूर्ण बदलाव के कारण ऐसा हो रहा है. साथ ही पानी के रंग में यह बदलाव जलवायु परिवर्तन के अपेक्षित प्रवृत्ति की पुष्टि करता है जो वैश्विक महासागरों के भीतर पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव का संकेत भी देता है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि समुद्र के जल में सूक्ष्म प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीव और फाइटोप्लांकटन (phytoplankton) के समुदाय के जीव समुद्र के निकट-सतह जल में प्रचुर मात्रा में पाए जाते है और जलीय खाद्य वेब (Aquatic food web) और कार्बन चक्र के लिए जरुरी होते है.
नासा ने कैसे रिकॉर्ड किया बदलाव को:
नासा के एक्वा (Aqua) उपग्रह पर MODIS (मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर) उपकरण से समुद्र के रंग डेटा का विश्लेषण करने के बाद, उन्होंने पाया कि अधिकांश परिवर्तन समुद्र के अधिक हरे होने से उत्पन्न होता है. बता दें कि फाइटोप्लांकटन की प्रचुरता और उत्पादकता को मापने के लिए रिमोट सेंसिंग वैज्ञानिकों के लिए क्लोरोफिल सबसे महत्वपूर्ण माप रहा है.
वहीं ब्रिटेन के राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक बी. बी. कैल (B. B. Cael) के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने खुलासा किया कि पिछले 20 वर्षों में वैश्विक समुद्री सतह के 56 प्रतिशत हिस्से के रंग में महत्वपूर्ण बदलाव आया है.
2002 और 2022 के बीच हुए महत्वपूर्ण बदलाव:
समुद्र के सतह के रंगों में यह बदलाव 2002 और 2022 के बीच देखा गया है. जहां हरे रंग के गहरे रंग अधिक महत्वपूर्ण अंतर हायर सिगनल टू नॉइज़ रेश्यो (higher signal-to-noise ratio) को बताता है. वैज्ञानिक बी. बी. कैल ने आगे बताया कि "ये वे स्थान हैं जहां हम पिछले 20 वर्षों में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव का पता लगा सकते हैं." अध्ययन में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
मानचित्र पर बने ब्लैक स्पॉट उस क्षेत्र को दर्शाते हैं, जो समुद्र की सतह के 12 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है, जहां अध्ययन अवधि के दौरान क्लोरोफिल का स्तर भी बदल गया है. हालाँकि, वे अनुमान दृश्य प्रकाश स्पेक्ट्रम में केवल कुछ रंगों का उपयोग करते हैं। हरे रंग में दिखाए गए मान रंगों की संपूर्ण श्रृंखला पर आधारित होते हैं और इसलिए समग्र रूप से पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं.
बता दें कि क्लाइमेट मॉडलिंग डेटा के साथ आगे बढ़ते हुए, टीम ने समुद्र के रंग के परिवर्तन की प्रवृत्ति का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया. वहीं उपग्रह-आधारित क्लोरोफिल अनुमानों का उपयोग करके पता लगाने में 30-40 साल का डेटा लगने की उम्मीद थी.
नासा द्वारा जारी रिपोर्ट आप यहां देख सकते है-
Climate Change Lends New Color to the Ocean
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