भारत में अभी 1 अप्रैल से 31 मार्च तक की अवधि को एक वित्तीय वर्ष कहते हैं। अंग्रेजों के भारत आने से पहले भारत में 1 मई से 30 अप्रैल का वित्तीय वर्ष होता था लेकिन ब्रिटिश काल में इस वित्तीय वर्ष को 1867 से 1 अप्रैल से 31 मार्च की अवधि का कर दिया गया थाl ज्ञातब्य है कि विश्व में बहुत से देश 1 अप्रैल से 31 मार्च वाला वित्तीय वर्ष ही मानते हैंl हालांकि वित्तीय वर्ष को मानने के लिए कोई वैश्विक कानून नही है और हर देश अपनी वित्तीय सुविधाओं और परम्पराओं के हिसाब से वित्तीय वर्ष को चुनता है l
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अन्य देशों में कौन सा वित्तीय वर्ष होता है ?
साल 1976 के पहले अमेरिका और आयरलैंड ने अपने-अपने वित्तीय वर्ष में बदलाव किया था। अमेरिका में अब वित्तीय वर्ष 1 जुलाई से शुरू होकर 30 जून को खत्म हो जाता है। वहीं, आयरलैंड में 1 अप्रैल से कैलंडर ईयर खत्म हो जाता है। अफगानिस्तान ने हाल ही में अपना वित्तीय वर्ष 21 मार्च से 20 मार्च को बदलकर 21 दिसंबर से 20 दिसंबर कर लिया है। ऑस्ट्रेलिया में 1 जुलाई से 30 जून का वित्तीय वर्ष मनाया जाता है और हमारा पडोसी देश पाकिस्तान भी इसी के वित्तीय वर्ष को मानता है l भारत के अलावा कनाडा, यूनाइटेड किंगडम (यूके), न्यूजीलैंड, हांगकांग और जापान भी 1 अप्रैल से 31 मार्च वाला वित्तीय वर्ष ही मानते हैंl
वित्तीय वर्ष बदलने के पूर्ववर्ती प्रयास
भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च को बदलने के लिए मई 1984 में L.K. झा की अध्यक्षता में एक कमिटी गठित की थी जिसने जनवरी 1987 से नया वित्तीय वर्ष लागू करने का सुझाव दिया था। अप्रैल 1985 में कमिटी ने सुझाव दिया कि भारत कलेंडर ईयर (जनवरी से दिसम्बर) को ही वित्तीय वर्ष बना ले l
वित्तीय वर्ष बदलने के फायदे क्या हैं ?
वर्तमान व्यवस्था के अंतर्गत सरकार मानसून बारे में बिना कुछ जाने ही बजट पेश करती है जिसके कारण सरकार के बजट अनुमानों के गलत सिद्ध होने की संभावना ज्यादा होती है l यदि 1 जनवरी- 31दिसंबर का वित्तीय वर्ष लागू होता है तो बजट, मॉनसून खत्म होने के बाद अक्टूबर में पेश होगा। इस कारण सरकार अपने बजट अनुमानों को ठीक से पता कर सकेगी और वित्तीय आमदनी के बारे में भी सही अनुमान मिलने की संभावना होगी l
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सरकार ने इसे स्वीकार क्यों नही किया था ?
यह तो सच है कि नए वित्तीय वर्ष पर विचार की वजहों में मॉनसून मात्र एक वजह है और साल दर साल भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान (वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का 14%) घटता जा रहा है । इसलिए, इसे बदलने में सरकार को बहुत लाभ नहीं दिख रहा। इसके अलावा इससे वित्तीय प्रक्रियाओं के साथ-साथ टैक्स नियमों में भी बहुत संशोधन करने होंगे। वित्तीय वर्ष में परिवर्तन करने से डेटा कलेक्शन में भी परेशानी होगी। पर्यावरणीय रूप से भी ऐसा करना ठीक नही है क्योंकि देश की सभी कंपनियों को नये वित्तीय वर्ष के हिसाब से नयी स्टेशनरी छपवानी पड़ेगी जो कि कई पेड़ों के काटने पर ही बन पायेगी l
मुझे लगता है कि भारत में जनवरी से दिसम्बर का वित्तीय वर्ष इसलिए भी ठीक नही होगा क्योंकि यहाँ पर नवरात्रि और दीवाली जैसे त्यौहार अक्टूबर और नवंबर महीने में पड़ते हैं इसके बाद दिसम्बर में क्रिसमस आ जाती है l यदि खुदरा विक्रेता और थोक व्यापारी इन व्यस्त महीनों में सरकार को दिए जाने वाले एकाउंटिंग ऑडिट के बारे में रिपोर्ट इत्यादि बनाने में व्यस्त रहेंगे तो इन त्योहारों के महीनों में कमाई नही कर पाएंगे जो कि पूरे देश के लिए बहुत बड़ा वित्तीय नुकशान होगाl
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इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत में वित्तीय वर्ष को बदलने से कुछ खास लाभ होता नही दिख रहा है लेकिन यहाँ के खुदरा विक्रेताओं और थोक व्यापारियों के व्यवसाय को अवश्य ही नुकशान होगा l इसलिए भारत सरकार को देश के समग्र विकास के लिए यथा स्थिति बनाये रखने की जरुरत है l
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