कबीर

कबीर दास 15वीं सदी के प्रसिद्ध भारतीय  कवि थे | कबीर के धर्म मे विभिन्न विचारों का मिश्रण था,  इन्होने अपने गुरु रामानन्द की तरह ही  हिन्दू  ,इस्लाम और ईसाई तीनों धर्मों को मिला कर ईश्वर को पाने का धर्मोपदेश दिया | इनके काम की सादगी इनके महानता की प्रतीक है और आज दिन तक प्रासांगिक है | धर्मों के बारे में उनकी महत्वपूर्ण मूल्यांकन के लिए आलोचना की गई, परंतु कबीर ने परमात्मा के काम का प्रसार करने का काम जारी  रखा और उनके इस कार्य  ने कई ग्रन्थों पर  जैसे आदि ग्रन्थों पर प्रभाव डाला | 1518 में  आखिरी सांस लेने के बाद भी उनकी विरासत “कबीरपंथ” के रूप में जीवित है |

Oct 13, 2015, 18:01 IST

15वीं सदी ने कबीर के रूप में एक ऐसे  रहस्यवादी सूफी  कवि व संत को देखा जिसने धर्म, समाज और राजनीतिक दर्शनशास्त्र पर प्रभाव डाला जिसका असर आज तक दिखाई देता है |

माना जाता है कि उनका जन्म बुनकर परिवार में हुआ, उनके जन्म के बारे में  भिन्न-भिन्न जानकारियों  की वजह से हिन्दू और मुसलमानों  के बीच  अक्सर उनकी पहचान को लेकर विभिन्न विचार रखे गए हैं | भारत में सबसे प्रसिद्ध कवि और सबसे उद्ध्त लेखक, कबीर ने अपने जीवन काल में 1498-1518 AD के दौरान प्रभावशाली कवितायें बनाईं जिसका प्रभाव भक्ति आंदोलन पर पड़ा और उनके छंदों का उल्लेख सिख धर्म के आदि ग्रंथ में भी संग्रहीत  हैं |

कबीर, भक्ति काल के कवि व संत स्वामी रामानन्द (एक ऐसा व्यक्ति जिसका लक्ष्य इस्लाम, ईसाई धर्म और ब्राह्मण के सिद्धांतों को मिश्रित करना था ) के शिष्य बन गए  अतः कबीर की कविताएं उनके गुरु के  विचारों के विलय का एक प्रतिबिंब है और शैली में काल्पनिक स्थानीय भाषा की मान्यता को दर्शाता है | शैली में स्थानीय  भाषा का प्रयोग किया गया है , जीवन की विशेषताओं व ईश्वर के प्रति श्रद्धा पर केन्द्रित कविताओं  में  हिन्दी, अवधि, ब्रज, और भोजपुरी बोलियों का प्रयोग किया गया है  

कबीर की कविताओं में उस समय की सामुदायिक गतिशीलता और तर्कसंगत सोच को अभिव्यक्त किया गया है | जीवन के प्रति उसके दार्शनिक आकलन ने आज की पीढ़ी को उदार  विचारों  की पहुँच  दी है | उनका  संश्लेषण  दोनों संस्कृतियाँ  हिन्दू धर्म और इस्लाम व सिख  धर्म  सहित  का मुख्य स्त्रोत बना है | हिन्दू व इस्लाम धर्म  और उनकी  अर्थहीन परम्पराओं रीति-रिवाजों आलोचना करने  के लिए उन्हे जाना जाता है, वह दावा करते हैं कि दोनों  धर्मों ने क्रमशः वेद और कुरान की  गलत व्याखाया की  है और जीवन के सार को  नज़रअंदाज़ कर दिया है | उन्होने सुझाव दिया है कि जीने का सही तरीका धर्म के मार्ग के माध्यम से है, सभी लोग ईश्वर के प्रतिबिंब हैं और अतः सब बराबर हैं, उन्होनें ईश्वर को समझने और चिंतन करने  के लिए राम-राम के मंत्र का प्रचार किया | दोनों धर्मों(हिन्दू व इस्लाम ) का गंभीरता से आकलन करते हुए कबीर अपने विचारों के लिए लड़े हालांकि उन्हे दोनों संप्रदायों के द्वारा धमकाया गया, उन्होनें इसका स्वागत किया व उन्हे ईश्वर के ओर नजदीक ले जाने के लिए आभार प्रकट किया |   

कबीर ने बुनियादी धार्मिक सिद्धांतों में जीवात्मा और परमात्मा को संघटित किया और इनकी  राय के अनुसार इन दोनों की एकता के साथ ही मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है | कबीर द्वारा रचित, ज्ञान की मौखिक कविताओं को उनके अनुयायियों द्वारा “वाणी” कहा गया  जिसमे दोहे, श्लोक थे और इन्हें वास्तविकता का सबूत माना जाता था | कबीर की विरासत  को कबीरपंथ के माध्यम से जीवित रखा गया  जिसे धार्मिक संप्रदायों और इनके सदस्यों द्वारा पहचान मिली जिन्हें  कबीरपंथी कहा जाता है |

इनकी साहित्यिक कृतियाँ इस प्रकार हैं कबीर बीजक, कबीर परछाई, आदि ग्रंथ, आदि ग्रंथ और कबीर ग्रंथावली |

शाश्वत रूप से उनके काम में अभिव्यक्ति और रहस्यमय भावना और व्यापक मान्यताओं के रूपकों के साथ  धर्मों के प्रतीक की सहजता है |हालांकि, कबीर की उनके दोहों में महिलाओं के प्रति ब्यान के लिए आलोचना की गई थी | यह तर्क दिया गया है कि  कबीर की कविताओं में दोहरी व्याखाया है और इसलिए इनमे अंतर हो सकता है |

कबीर ने अपने जीवन काल का ज़्यादातर समय वाराणसी में बिताया और ये बताया गया है कि वाराणसी विशाल हिन्दू पुजारियों के प्रभाव का केंद्र था, उनके द्वारा पारंपरिक प्रथाओं को कम आँकने के लिए उनकी बहुत आलोचना की गई |  उन्हे 1495 AD में लगभग 60 वर्ष की उम्र में वाराणसी से बाहर निकाल दिया गया, उसके बाद वह अपने अनुयायियों के साथ उत्तरी भारत की तरफ चले गए और निर्वासन का जीवन व्यतीत किया | प्राप्त जानकारी के अनुसार उन्होनें 1518 AD में  आखिरी सांस गोरखपुर के नजदीक मगहर में ली |

उनके जन्म की  तरह ही उनकी मृत्यु भी अनेक विवादों  से घिरी रही, जबकि  कुछ का मानना था कि कबीर एक ब्राह्मण के पुत्र थे जिनको एक बेऔलाद मुसलमान दंपति ने गोद ले लिया , आम राय यह है कि वह एक मुसलमान परिवार में पैदा हुए थे | दोनों धर्मों के बेहतरीन विचारों के प्रचार के कारण उनके अनुयायियों के बीच उनके अंतिम संस्कार को लेकर बहस हो गई | पौराणिक कथाओं के अनुसार उनके मृत देह के ऊपर फूल मिले थे और मुसलमानों ने उन्हीं  फूलों को दफनाया जबकि हिंदुओं ने उन फूलों का  अंतिम संस्कार किया |

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Education Desk

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