चोल राजवंश ने 300 ई.पू. से बाद के 13 वीं सदी तक शासन कार्य किया था. यद्यपि इस दौरान उनकी भौगोलिक सीमा में परिवर्तन होते रहे लेकिन उन्होंने अपनी महत्ता भी इस काल में बनाये रखी.चोल साम्राज्य को उनके शासकों की कार्यावधि के अनुसार तीन भागों में विभाजित किया गया है. अर्थात प्रारंभिक चोल, मध्य कालीन चोल और परवर्ती चोल.
प्रारंभिक चोल शासक
प्रारंभिक चोल शासको में सबसे महत्वपूर्ण शासक करिकाल चोल था. अपने शासन के प्रारंभिक काल में करिकाल को पद्च्युत कर दिया गया था. इसने चोलों की तटीय राजधानी पुहार की स्थापना की तथा कावेरी नदी के किनारे 160 किलोमीटर लम्बा बांध भी बनवाया. प्रारंभिक चोलों ने 300 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी तक शासन किया. प्रारंभिक चोल शासकों के बारे में जानकारी संगम साहित्य से मिलती है.
मध्यकालीन चोल शासक
दक्षिण भारत में चोल सत्ता की पुनर्स्थापना विजयालय चोल के अधीन 850 ईसवी में हुई जो इसके बाद के काल तक जारी रही.
इस काल के महत्वपूर्ण चोल शासकों का उल्लेख निम्नलिखित हैं:
1. विजयालय चोल
2. आदित्य चोल
3. परांतक चोल
4. राजराज चोल
5. राजेंद्र चोल
6. राजाधिराज चोल
7. राजेंद्र चोल द्वितीय
8. वीर राजेंद्र चोल
परवर्ती चोल शासक
1070 ईस्वी से 1279 ईसवी तक की अवधि परवर्ती चोलों के शासन के रूप में जानी जाती है. यह अवधि चोल साम्राज्य के लिए एक सुनहरा समय था, इस समय में चोल शसल अत्यंत शक्तिशाली बन गये थे. चोल शासक सबसे शक्तिशाली सेना और नौसेना रखने के कारण प्रसिद्द थे. इसी के माध्यम से उन्होंने दक्षिण एशियाई देशों में अपने कई उपनिवेश स्थापित किया. परवर्ती चोलों के महत्वपूर्ण शासकों की सूची में निम्नलिखित शासक थे:
1. कुलोत्तुंग चोल प्रथम
2. विक्रम चोल
3. कुलोत्तुंग चोल द्वितीय
4. राजराज चोल द्वितीय
5. राजाधिराज चोल द्वितीय
6. कुलोत्तुंग चोल तृतीय
7. राजराज चोल तृतीय
8. राजेंद्र चोल तृतीय
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