• जैन धर्म की स्थापना रिषभ देव ने की थी।
• वर्धमान महावीर(540-468 BC) जैन धर्म के २४ वें और अंतिम तीर्थंकर थे।
• वर्धमान महावीर को उच्चतम ज्ञान (कैवल्य) प्राप्त करने के कारण जिन (विजेता) या महावीर(महान हीरो) कहा गया।
• जैन धर्म के पांच महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं जिन्हें पंच महाव्रत के नाम से भी जाना जाता है। सत्य (हमेशा सत्य बोलना) अहिंसा (हिंसा नहीं करना), अपरिग्रह (सम्पत्ति को एकत्रित नहीं करना) आस्तेय (बिना अनुमति के किसी वस्तु को ग्रहण नहीं करना) ब्रम्हचर्य (काम क्रिया से दूर)।
महावीर की शिक्षा
महावीर की शिक्षा पूरी तरह से अहिंसा जिसमे दूसरों के प्रति किसी भी प्रकार की हिंसा से बचने के लिए कहा जाता है, पर आधारित थी। साथ ही उनके शिक्षा में नास्तिकता को महत्व दिया जाता था। इसके अलावा उनकी शिक्षा में प्रत्येक प्रकार के बन्धनों से मुक्ति यहाँ तक की कपड़ो से भी मुक्ति की बात की गयी थी। महावीर की शिक्षा में त्रिरत्न की भी चर्चा की गयी है। इन त्रिरत्नो में सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण, की बात की गयी है। इन त्रिरत्नों में सर्वाधिक महत्व आचरण को दिया गया है। इनके सन्दर्भ में उपरोक्त पांच महाव्रतों का प्रावधान किया गया है। ये समस्त चीजें जैन धर्म के अन्दर आत्मा के स्थानातरण से स्वत्रंता पर जोर देती हैं। महावीर स्वामी वेदों की सत्ता को नहीं मानते थे।
जैन समिति
• प्रथम जैन सभा का आयोजन चतुर्थ शताब्दी ईशा पूर्व पाटलिपुत्र में स्थुलभद्र के नेतृत्व में हुई थी।
• द्वितीय जैन सभा का आयोजन पांचवी शताब्दी ईस्वी (513 या 526 ई) में देवार्धिगण क्षमाश्रमण के नेतृत्व में वल्लभी में हुई थी। उल्लेखनीय है की इसी समिति में 12 अंगो और 12 उपांगों 10 प्रकीर्ण 6 छेद्सुत्र 4 मूल सूत्र एवं अनुयोग सूत्र का संकलन किया गया था।
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