परमाणु अप्रसार समीक्षा सम्मेलन
8वें परमाणु अप्रसार समीक्षा सम्मेलन का आयोजन न्यूयॉर्क में किया गया। इस सम्मेलन का आयोजन प्रत्येक पांच वर्र्षों में किया जाता है। इसके पहले समीक्षा सम्मेलनों का आयोजन 1975, 1980, 1985, 1990, 1995, 2000 और 2005 में किया जा चुका है। यह सम्मेलन पूरे एक महीने तक चलता है और इसमें पूरे विश्व में परमाणु अप्रसार की स्थिति पर विचार करके उसपर आगे की कार्रवाई का विचार किया जाता है। परमाणु अप्रसार संधि को दुनिया की 5 सबसे बड़ी शक्तियां- सं. रा. अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन काफी ज्यादा तवज्जो देती है। इसलिए जब भी इस सम्मेलन का आयोजन किया जाता है तो भारत जैसे देशों जिन्होंने इस संधि पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किया, पर विशेष रूप से दबाव पड़ता है। समीक्षा सम्मेलन में इस बात पर विचार किया जाता है कि अभी तक संधि की शर्र्तों तक कहां तक क्रियान्वयन हुआ है और इसके क्रियान्वयन के रास्ते में आने वाली रुकावटों को किस तरह से दूर किया जा सकता है।
8वे परमाणु समीक्षा सम्मेलन इस मायने में विशेष रूप से महत्वपूर्ण था कि हाल के दिनों में परमाणु निशस्त्रीकरण और परमाणु अप्रसार के मुद्दे ग्लोबल एजेंडा में काफी ऊपर आ गये हैं। सर्वप्रथम समीक्षकों का ऐसा मानना है कि भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते से दोनों पक्षों के मध्य गुपचुप यह समझ बन गई है कि धीरे-धीरे भारत भी परमाणु अप्रसार के झंडे तले आ जाएगा। दूसरा, संयुक्त राष्ट्र संघ के नाम पर अमेरिका ईरान पर उसके द्वारा परमाणु अप्रसार का उल्लंघन किए जाने पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है। ईरान गुप्त रूप से परमाणु बम बनाने के लिए परमाणु प्रसंस्करण प्रणाली का विकास कर रहा है और अब तो यह बात सार्वजनिक भी हो चुकी है। तीसरे, अमेरिका और रूस के बीच परमाणु हथियारों में कटौती के लिए स्टार्ट संधि एक बार फिर से हो गई है जिसके द्वारा दोनों देश अपने परमाणु हथियारों में एक-तिहाई की कटौती करेंगे।
सम्मेलन के सामने मुख्य मुद्दे
समीक्षा सम्मेलन में परमाणु अप्रसार संधि के वैश्वीकरण, परमाणु निशस्त्रीकरण, परमाणु अप्रसार, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ाने वाले कदम, परमाणु हथियारों की सुरक्षा, क्षेत्रीय अप्रसार, मध्य-पूर्व पर 1995 के रिजोल्यूशन पर क्रियान्वयन व परमाणु अप्रसार के बारे में आमलोगों में जागृति पैदा करने जैसे जटिल व विवादस्पद मुद्दों पर लंबी चर्चा की गई। हालांकि चार मुद्दों पर मुख्य रूप से सम्मेलन का फोकस रहा- ईरान द्वारा परमाणु अप्रसार संधि का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करना, 2003 में उत्तर कोरिया का संधि का परित्याग करना और बाद में 2006 में परमाणु परीक्षण करना, इजरायल द्वारा संधि पर हस्ताक्षर करने से इंकार करने के परिप्रेक्ष्य में मध्य-पूर्व क्षेत्र को परमाणु हथियार से मुक्त रखना और परमाणु निशस्त्रीकरण में हुई प्रगति की समीक्षा करना।
भारत, पाकिस्तान, इजरायल और उत्तर कोरिया ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया क्योंकि इन देशों ने इस संधि पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं। ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद एकमात्र ऐसे राष्ट्राध्यक्ष थे जिन्होंने सम्मेलन में शिरकत की।
बान-की मून का संबोधन
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की-मून ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि इस घटना के 60 वर्र्षों के बाद भी दुनिया अभी भी परमाणु बम के साये में जी रही है। उन्होंने परमाणु निशस्त्रीकरण व परमाणु अप्रसार संधि पर पूरे विश्व द्वारा हस्ताक्षर करने की वकालत करते हुए इसके लिए और अधिक कोशिश करने की बात कही।
अहमदीनेजाद का संबोधन
ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने अमेरिकी की एक-पक्षीय परमाणु अप्रसार नीति की आलोचना करते हुए कहा कि एक तरफ अमेरिका अपने इजरायल जैसे मित्र देशों को परमाणु बमों का जखीरा तैयारी करने की इजाजत दे रहा है तो दूसरी तरफ वह परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग भी कुछ देशों को नहीं करने देना चाहता है।
क्या है परमाणु अप्रसार संधि?
परमाणु अप्रसार संधि एक ऐसी वैश्विक संधि है जिसके द्वारा नाभिकीय हथियारों व नाभिकीय तकनीक का उन देशों में प्रसार रोकने का प्रयास किया जाता है जिन देशों के पास यह तकनीक उपलब्ध नहीं है। इस संधि के सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान के अनुसार जिन देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं उन्हें परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए भी किसी देश द्वारा परमाणु सामग्री का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता है।
इस संधि में एक प्रस्तावना के अतिरिक्त 11 अनुच्छेद शामिल हैं और यह 5 मार्च, 1970 से लागू हुई।
संधि के स्तंभ: इस संधि के मुख्य रूप से तीन प्रमुख स्तंभ हैं-
1. अप्रसार: इसका आशय है गैर-परमाणु हथियार सम्पन्न देशों में नाभिकीय हथियार व तकनीक के प्रसार को रोकना।
निशस्त्रीकरण: यद्यपि यह संधि पूरी तरह से परमाणु निशस्त्रीकरण की बात कहती है लेकिन इसके लिए किसी भी तरह की समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। अभी तक संपूर्ण निशस्त्रीकरण के लिए किसी तरह का ठोस उपाय भी नहीं किया गया है।
परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग: संधि के अनुसार बिना किसी भेदभाव के सदस्य देशों को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग की इजाजत दी जानी चाहिए। लेकिन यह कार्य अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के देखरेख में होना चाहिए।
भारत व परमाणु अप्रसार संधि
संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों के तमाम दबाव के बावजूद भारत ने कभी भी परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया। भारत ने 1974 और 1998 में दो बार परमाणु बम परीक्षण किए हैं। इन परीक्षणों के बाद परमाणु सामग्री और तकनीक के मामले में भारत को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि तमाम देशों ने उस पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे। लेकिन भारत-अमेरिकी नागरिक परमाणु समझौते के बाद से भारत पर से इस मामले में हर तरह के प्रतिबंध हटा लिए गए हैं। साथ ही न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने भी भारत पर से सभी प्रतिबंध हटा लिए हैं। इसके लिए भारत को परमाणु अप्रसार संधि पर भी हस्ताक्षर नहीं करने पड़े। यद्यपि इस समझौते के लिए भारत को आईएईए के सेफगार्ड मैकेनिज्म में शामिल होना पड़ा है और इस बात का आश्वासन भी देना पड़ा है कि भविष्य में वह किसी भी तरह का परमाणु परीक्षण नहीं करेगा, फिर भी इससे देश में नाभिकीय बिजली उत्पादन का रास्ता प्रशस्त हो गया है।
इतना होने के बावजूद आज भी भारत कई कारणों की वजह से परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर रहा है:
1. भारत का मानना है कि एनपीटी भेदभावपूर्ण है और यह परमाणु हथियार सम्पन्न राष्ट्रों को तो आगे परीक्षण व विकास की अनुमति देता है लेकिन जिन लोगों के पास ये हथियार नहीं हैं उन्हें इनके विकास की इजाजत नहीं देती है।
2. भारत परमाणु अप्रसार संधि के स्थान पर वैश्विक परमाणु निशस्त्रीकरण की बात करता है। उसका ऐसा विश्वास है कि बिना निशस्त्रीकरण के दुनिया से परमाणु हथियारों को खत्म नहीं किया जा सकता है।
3. भारत के इस संधि पर न हस्ताक्षर करने के पीछे एक राजनीतिक कारण भी है। भारत, चीन व पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से घिरा हुआ है जिनके साथ उसके कई युद्ध हो चुके हैं। चीन परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है और उसने चोरी-छिपे पाकिस्तान को सामग्री सप्लाई करके परमाणु बम बनाने में मदद दी है। इस वजह से भारत अपने परमाणु बमों को नहीं छोड़ सकता है।
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