पशुधन से जैसे दूध, अंडा, ऊन और मांस से लगभग 170,000 करोड़ की आय होती है. कृषि के सकल घरेलु उत्पाद के रूप में यह 27% की भूमिका निभाता है. साथ ही देश के लगभग 90 लाख लोगों को रोजगार प्रदान किये हुए है. पशुधन के स्वामित्व निश्चित रूप से समतावादी दृष्टिकोण के होते हैं. निश्चित रूप से यह आजीविका की सुरक्षा के एक महत्वपूर्ण घटक है. इनसे न केवल खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है वल्कि खेती के लिए खाद भी इनसे मिलता है जोकि उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
दुनिया की सबसे बड़ी पशुधन आबादी के सन्दर्भ में भारत का स्थान प्रथम है. मांस के उत्पादन में सातवां स्थान, दूध के उत्पादन में प्रथम और अंडा के उत्पादन में पांचवां स्थान प्राप्त है. पछले दशक में पशुधन उत्पादन फसलों के 1.1% के उत्पादन की तुलना में प्रति वर्ष 3.6% की दर से बढा है.
दुनिया के विकसित देशों की तुलना में हमारे देश में जानवरों की क्षमता लगभग 1/3 है. साथ ही औसत और कम है. वस्तुतः भारत दुनिया की जानवर आबादी का लगभग 20% रखता है लेकीन बेहतरीन चारागाह की आज भी इतनी कमी है की उपलब्ध पशुधन के लिए पर्याप्त चारा नहीं मिल पाता है. परिणामस्वरूप घास के क्षेत्रो और जल संसाधनों पर अनावश्यक बल पड़ता है. प्रमुख बाधाओं में चारा की उपलब्धता, पशुओ के स्वास्थ्य, उनके संरक्षण और उनके आनुवंशिक सुधार, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन, लाभकारी मूल्य निर्धारण एवं विपणन से संबंधित हैं.
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