प्रक्षेपण यान (Launching Vehicle) विशाल रॉकेट होते हैं जिनका प्रयोग उपग्रह, रोबॉटिक अंतरिक्ष यान और मानव सहित अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए किया जाता है | 1980 में विकसित किया गया एसएलवी-3 भारत का प्रथम प्रायोगिक प्रक्षेपण यान था और बाद में इसके संवर्धित संस्करण एएसएलवी (ASLV) का प्रक्षेपण 1992 ई. में किया गया। वर्तमान में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) और भूतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) का प्रयोग भारत में प्रक्षेपण यानों के रूप में किया जा रहा है|
A. पिछली पीढ़ी के (Historic) प्रक्षेपण यान
भारत के पिछली पीढ़ी अर्थात वर्तमान में प्रयोग में न आ रहे प्रक्षेपण यानों में उपग्रह प्रक्षेपण यान-3 (SLV-3) तथा संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (ASLV) शामिल हैं –
(i) उपग्रह प्रक्षेपण यान-3 (SLV-3)
उपग्रह प्रक्षेपण यान-3 (SLV-3) भारत का पहला सफल प्रयोगिक प्रक्षेपण यान था, जिसे 1980 में प्रक्षेपित किया गया था |
एसएलवी-3 के बारे अधिक जानकारी के लिए पढ़े :
भारत की उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली का विकास कैसे हुआ है?
(ii) संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (ASLV)
इसका विकास 150 कि.ग्रा. अर्थात् एसएलवी से तीन गुने भार वाले नीतभारों (Payloads) को निम्न कक्षा में स्थापित करने के लिए किया गया था |
एएसएलवी के बारे अधिक जानकारी के लिए पढ़े :
भारत की उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली का विकास कैसे हुआ है?
B. वर्तमान में संचालित (Operational) प्रक्षेपण यान
वर्तमान में प्रयोग में आ रहे प्रक्षेपण यानों में पीएसएलवी अर्थात् ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ,जीएसएलवी अर्थात् भूतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान तथा साउंडिंग रॉकेट शामिल हैं |
(i) ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान
पीएसएलवी अर्थात् ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV) इसरो का प्रथम प्रचालनात्मक प्रक्षेपण यान है। पीएसएलवी में बारी-बारी से ठोस और द्रव नोदन प्रणाली (Propulsion System) का उपयोग करते हुए चार चरण हैं।
पीएसएलवी के बारे अधिक जानकारी के लिए पढ़े :
भारत की उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली का विकास कैसे हुआ है?
(ii) भूतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान
भूतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle-GSLV) का विकास प्रारंभ में इन्सैट श्रेणी के उपग्रहों को भू-तुल्यकालिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित करने के लिए किया गया था| वर्तमान में इसका प्रयोग जीसैट श्रेणी के उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए किया जा रहा है |
जीएसएलवी के बारे अधिक जानकारी के लिए पढ़े :
भारत की उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली का विकास कैसे हुआ है?
(iii) साउंडिंग रॉकेट
पृथ्वी के निचले वायुमंडल के अध्ययन हेतु प्रक्षेपित एक या दो ठोस चरणों से युक्त छोटे-छोटे रॉकेटों को ‘साउंडिंग रॉकेट’कहा जाता है। 1 नवंबर, 1963 को थुंबा (केरल) के सेंट मैरी मैग्डालेन चर्च से भारत के पहले रॉकेट ‘नाइक अपाचे’ का प्रक्षेपण किया गया। इस रॉकेट को अमेरिका ने भारत को दिया था। इसी के साथ भारतीय रॉकेट विज्ञान का जन्म होता है।
बाद में अमेरिका ने ही एक और रोहिणी-70 (RH-70) नाम के साउंडिंग रॉकेट भारत को दिया | भारत द्वारा स्वदेशी रूप से निर्मित पहला रॉकेट रोहिणी-75 (RH-75) था, जिसका प्रक्षेपण 20 नवंबर, 1967 को भारत ने थुंबा (केरल) से किया था | इसके बाद रोहिणी-100 (RH-100),रोहिणी-125 (RH-125) आदि का विकास हुआ |
‘टर्ल्स’ अर्थात ‘थुंबा भू-मध्यरेखीय रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र’ (Thumba Equatorial Rocket Launching Station-TERLS) रॉकेट लांचिंग पैड के रूप में विकसित किया गया| वर्ष 1967 में इंदिरा गांधी ने इस केंद्र को संयुक्त राष्ट्र को समर्पित कर दिया जिसका तात्पर्य यह है कि संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य देश यहां से अपने साउंडिंग रॉकेटों का प्रक्षेपण कर सकता है।
इस प्रक्षेपण केंद्र से बड़े रॉकेटों का प्रक्षेपण नहीं किया जा सकता है अतः श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) में एक लांचिंग पैड बनाया जिसका आरंभिक नाम ‘शार’ केंद्र (Shriharikota High Altitude Range-SHAR) था। ‘इसरो’ के सर्वाधिक अवधि तक अध्यक्ष रह चुके प्रो. सतीश धवन के निधन के बाद इसका नामकरण ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ (Satish Dhawan Space Centre-SDSC) कर दिया गया।
वर्तमान में संचालित साउंडिंग रॉकेट
वर्तमान में तीन तरह के साउंडिंग रॉकेटों का प्रयोग किया जा रहा है, जिनकी विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है-
यान | रोहिणी/RH-200 | रोहिणी/RH-300-मार्क-II | रोहिणी/RH-560-मार्क-III |
नीतभार (Payload) (किग्रा. में ) | 10.5 | 70 | 100 |
ऊँचाई (किमी. में ) | 75 | 120 | 550 |
उद्देश्य | मौसम संबंधी जानकारी | मध्य वायुमंडलीय अध्ययन | ऊपरी वायुमंडलीय अध्ययन |
प्रक्षेपण स्थल | थुम्बा | थुम्बा / श्रीहरिकोटा | श्रीहरिकोटा |
C. अगली पीढ़ी (Future) के प्रक्षेपण यान
अगली या भविष्य की पीढ़ी के प्रक्षेपण यानों में भूतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान-मार्क III (GSLV-MkIII) शामिल है –
(i) भूतुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान-मार्क III (GSLV-MkIII)
यह भारत का अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है, जो अभी विकास के चरण में है | इसरो द्वारा विकसित किए जा रहे इस यान को एलएमवी-3 (LVM3) भी कहा जाता है | इसके विकास के बाद भारत 4 टन वर्ग के संचार उपग्रहों को भू-तुल्यकालिक अंतरण कक्षा (Geosynchronous Transfer Orbits –GTO) में स्थापित करने में सक्षम हो जाएगा |
जीएसएलवी-मार्क III को 630 टन उत्थापन भार व 42.4 मी. लंबाई सहित तीन चरण यान के रूप में डिजायन किया गया है। प्रथम चरण में 200 टन ठोस नोदक (Propellent) सहित दो एकसमान एस200 बृहत् ठोस बूस्टोर (एल.एस.बी.) समाहित हैं, जिन्हें द्वितीय चरण में एल110 पुन: प्रारंभ योग्य द्रव चरण पर स्ट्रेप ऑन किया गया है। तृतीय चरण निम्नतापीय(Cryogenic) चरण है। इसकी ऊँचाई 49 मीटर है | यह यान जियोसिंक्रोनस अंतरण कक्षा (GTO), निम्न भूकालिक कक्षा (LEO), ध्रुवीय और मध्यवर्ती वृत्तीय कक्षा के लिए मल्टी-मिशन प्रक्षेपण क्षमता से युक्त होगा।
Image source: www.isro.gov.in
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