भारत सभ्यता, संस्कृति एवं विज्ञान की जन्मभूमि है, जिसने अपनी गोद में इतिहास को सींचा, गणित को उभारा और कला को उकेरा है। भारतीय धरती पर प्रकृति प्रेम के अदभुत नजारे दिखे हैं तो ईश्वर प्रेम का अद्वितीय एवं अकाट्य प्रदर्शन भी दिखा है। एक ओर तो भारत रस्मो-रिवाज की अदभुत जन्मस्थली रहा है, वहीँ दूसरी ओर अंधविश्वास का कर्मक्षेत्र भी यहाँ अपने चरम पर पाया गया है। भारत की धरती पर प्रसिद्ध रश्मों में से कुछ सर्वाधिक अजीबो—गरीब रश्में निम्न है:-
1. शिशु लिंग पता करने की परंपरा — यह परम्परा लगभग चार सदी पुरानी है तथा झारखण्ड राज्य के बेड़ो प्रखण्ड के खुखरा गांव में आज भी जारी है। इस स्थान पर एक पहाड़ है जिस पर चांद की आकृति अंकित है जिसे नागवंशी राजाओं के द्वारा विकसित किया गया तथा उनके मनोरंजन एवं पूजन का स्थान माना गया है। चांद आकृति में एक निश्चित दूरी से गर्भवती स्त्री द्वारा एक पत्थर फेका जाता है जो आकृति के अन्दर गिरे तो बालक और बाहर गिरे तो गर्भस्थ शिशु के बालिका होने का अनुमान किया जाता है।
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2. मनोकामना पूर्ति के लिए गाय छोड़ना — यह रिवाज मध्य प्रदेश के उज्जैन के गावों में सदियों से चला आ रहा है। इसके अनुसार लोग दीपावली के अगले दिन अपनी गायों को मेंहदी एवं रंगो आदि से सजाते हैं तथा गले में माला डाल कर लेट जाते हैं। गायों को लेटे हुए लोगो पर छोड़ दिया जाता है और गायें उनके ऊपर से दौड़ती हुई गुजर जाती है।
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3. लौकी चढ़ाने की परम्परा — छत्तीसगढ़ के शाटन देवी मन्दिर में जो कि रत्नपुर में स्थित है लौकी एवं तेंदु की लकड़ियां चढ़ाई जाती है। इसे बच्चों का मन्दिर कहा जाता है क्योंकि श्रद्धालु उक्त वस्तुएं अपने बच्चो की सलामती एवं तंदरूस्ती के लिए अर्पित करते हैं।
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4. शिवलिंग दान की परम्परा — महान धार्मिक नगरी काशी अथवा वाराणसी के सबसे पुराने मठों में से एक जंगमवाड़ी मठ में मृतात्मा की शांति के लिए पिंड नही वरन् शिवलिंग दान होता है। सदियों से चली आ रही इस परम्परा के अनुसार मृत आत्मा की मुक्ति एवं शांति के लिए शिवलिंग स्थापित किया जाता है। इस परम्परा के कारण एक ही छत के नीचे तकरीबन 10 लाख शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं।
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5. सुहाग की निशानियों का रेहन — यह परंपरा पूर्वी उत्तर प्रदेश एवम इससे लगे बिहार के कुछ क्षेत्रों में पाए जाने वाले गछवाह समुदाय में प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार गछवाह महिलाये चैत मास से सावन मास तक चार माह अपने सुहाग की सभी निशानियां तरकुलहा देवी के पास अपने सुहाग की सलामती के लिए रेहन स्वरूप रखकर अपने सुहाग की सलामती की दुआ करती हैं, तथा इस दौरान विधवा स्वरूप जीवन जीती हैं। यह समुदाय ताड़ी निकालने का काम करता है।
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6. बहने देतीं है भाइयों को मर जाने का श्राप — उत्तर भारत में भाई-दूज का पर्व प्रसिद्द है, जिसमें यम की पूजा की जाती है। इस परम्परा के अनुसार बहनें अपने भाईयों को गालियां देती है, कोसती हैं तथा मर जाने का श्राप देती है। उसके बाद जीभ में काटा चुबाकर उसका प्रायश्चित भी करती है। मान्याताओं के अनुसार इससे भाईयों का जीवन सुरक्षित होता है।
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7. बच्चियों की कुत्तों से शादि — यह परंपरा नहीं वरन् एक कुरीति है जिसके तहत अशुभ ग्रहों एवं प्रेत साया हटाने के नाम पर बच्चियों की शादी पूरे विधान के साथ कुत्तों से करवायी जाती है। यह परम्परा झारखण्ड में सर्वाधिक प्रचलन में है।
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8. गुड़िया पीटने की परम्परा — यह परम्परा उत्तर प्रदेश में प्रचलित है। इसके तहत नागपंचमी के दिन महिलायें पुराने कपड़ो की गुड़िया बनाकर चौराहों पर डाल देती हैं जिन्हें बच्चे कोड़ों से पीटते हैं। कहा जाता है कि राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक के दंश से हुयी और उसके बाद तक्षक के वंश की कन्या परीक्षित के वंश में ब्याही गई। उसने यह राज एक महिला को बताकर किसी से न बताने को कहा, और महिलाओं द्वारा यह बात पूरे नगर में फैल गई। इससे तक्षक राज ने सभी लड़कियों को कोड़ों से पिटवा कर मार डाला और तभी से परम्परा जारी है।
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9. मेंढकों का विवाह — महाराष्ट्र में एक परम्परा के अनुसार मेंढकों को अच्छी तरह से तैयार करके परंपरागत विधि से उनका विवाह करवाया जाता है, और सभी विधानों का पालन किया जाता है। मान्यता के अनुसार इससे बारिश से देवता प्रसन्न होकर अच्छी बारिश का आर्शिवाद देते हैं। विवाह के बाद मेंढक जोड़े को एक साथ किसी जलाशय या तालाब में छोड़ दिया जाता है।
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10. बेंत मार गांगुर — यह परम्परा राजस्थान के जोधपुर जिले में प्रचलित है। अपने सुहाग के लिए लडकियाँ 16 दिन का उपवास रखती हैं तथा अंतिम दिन पूरे साज श्रृंगार के साथ डंडा लेकर बाहर निकलती है, तथा इस डंडे से कुंवारे लड़कों की पिटाई करतीं है। मान्यता है कि पिटाई होने के एक वर्ष के अन्दर उन लड़के और लड़कियों का विवाह हो जाता है।
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