भारतीय चित्रकला

भारतीय चित्रकारी के प्रारंभिक उदाहरण प्रागैतिहासिक काल के हैं, जब मानव गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी किया करता था। भीमबेटका की गुफाओं में की गई चित्रकारी 5500 ई.पू. से भी ज्यादा पुरानी है। 7वीं शताब्दी में अजंता और एलोरा गुफाओं की चित्रकारी भारतीय चित्रकारी का सर्वोत्तम उदाहरण हैं।

Feb 20, 2014, 14:37 IST

भारतीय चित्रकला

भारतीय चित्रकारी के प्रारंभिक उदाहरण प्रागैतिहासिक काल के हैं, जब मानव गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी किया करता था। भीमबेटका की गुफाओं में की गई चित्रकारी 5500 ई.पू. से भी ज्यादा पुरानी है। 7वीं शताब्दी में अजंता और एलोरा गुफाओं की चित्रकारी भारतीय चित्रकारी का सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
भारतीय चित्रकारी में भारतीय संस्कृति की भांति ही प्राचीनकाल से लेकर आज तक एक विशेष प्रकार की एकता के दर्शन होते हैं। प्राचीन व मध्यकाल के दौरान भारतीय चित्रकारी मुख्य रूप से धार्मिक भावना से प्रेरित थी, लेकिन आधुनिक काल तक आते-आते यह काफी हद तक लौकिक जीवन का निरुपण करती है। आज भारतीय चित्रकारी लोकजीवन के विषय उठाकर उन्हें मूर्त कर रही है।

भारतीय चित्रकारी की शैलियां
भारतीय चित्रकारी को मोटे तौर पर भित्ति चित्र व लघु चित्रकारी में विभाजित किया जा सकता है। भित्ति चित्र गुफाओं की दीवारों पर की जाने वाली चित्रकारी को कहते हैं, उदाहरण के लिए अजंता की गुफाओं व एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर का नाम लिया जा सकता है। दक्षिण भारत के बादामी व सित्तानवसाल में भी भित्ति चित्रों के सुंदर उदाहरण पाये गये हैं। लघु चित्रकारी कागज या कपड़े पर छोटे स्तर पर की जाती है। बंगाल के पाल शासकों को लघु चित्रकारी की शुरुआत का श्रेय दिया जाता है।

अजंता की गुफाएं
इन गुफाओं का निर्माणकार्य लगभग 1000 वर्र्षों तक चला। अधिकांश गुफाओं का निर्माण गुप्तकाल में हुआ। अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबंधित हैं।

एलोरा की गुफाएं
हिंदू गुफाओं में सबसे प्रमुख आठवीं सदी का कैलाश मंदिर है। इसके अतिरिक्त इसमें जैन व बौद्ध गुफाएं भी हैं।

बाघ व एलीफेटा की गुफाएं
बाघ की गुफाओं के विषय लौकिक जीवन से सम्बन्धित हैं। यहां से प्राप्त संगीत एवं नृत्य के चित्र अत्यधिक आकर्षक हैं।
हाथी की मूर्ति होने की वजह से पुर्तगालियों ने इसका नामकरण एलीफेन्टा किया।

जैन शैली
इसके केद्र राजस्थान, गुजरात और मालवा थे।  देश में जैन शैली में ही सर्वप्रथम ताड़ पत्रों के स्थान पर चित्रकारी के लिए कागज का प्रयोग किया गया। इस कला शैली में जैन तीर्र्थंकरों के चित्र बनाये जाते थे। इस शैली पर फारसी शैली का भी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। नासिरशाह (1500-1510 ई.) के शासनकाल में मांडू में चित्रित नीयतनामा के साथ ही पांडुलिपि चित्रण में एक नया मोड़ आया।

पाल शैली
यह शैली 9-12वीं शताब्दी के मध्य बंगाल के पाल वंश के शासकों के शासनकाल के दौरान विकसित हुई। इस शैली की विषयवस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित थी। दृष्टांत शैली वाली इस चित्रकला शैली ने नेपाल और तिब्बत की चित्रकला को भी काफी प्रभावित किया।

मुगल शैली
मुगल चित्रकला शैली भारतीय, फारसी और मुस्लिम मिश्रण का विशिष्ट उदाहरण है। अकबर के शासनकाल में लघु चित्रकारी के क्षेत्र में भारत में एक नये युग का सूत्रपात हुआ।  उसके काल की एक उत्कृष्ट कृति हमजानामा है। मुगल चित्रकला नाटकीय कौशल और तूलिका के गहरेपन के लिए विख्यात है।
जहांगीर खुद भी एक अच्छा चित्रकार था। उसने अपने चित्रकारों को छविचित्रों व दरबारी दृश्यों को बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उस्ताद मंसूर, अब्दुल हसन और बिशनदास उसके दरबार के सबसे अच्छे चित्रकार थे। शाहजहां के काल में चित्रकारी के क्षेत्र में कोई ज्यादा कार्य नहीं हुआ, क्योंकि वह स्थापत्य व वास्तु कला में ज्यादा रुचि रखता था।


राजपूत चित्रकला शैली
राजपूत चित्रकला शैली का विकास 18वींशताब्दी के दौरान राजपूताना राज्यों के राजदरबार में हुआ। इन राज्यों में विशिष्ट प्रकार की चित्रकला शैली का विकास हुआ, हालांकि इनमें कुछ ऐसे समान तत्व हैं जिसकी वजह से इसका नामकरण राजपूत शैली किया गया। यह शैली विशुद्ध हिंदू परंपराओं पर आधारित है। इस शैली में रागमाला से संबंधित चित्र काफी महत्वपूर्ण हैं। इस शैली में मुख्यतया लघु चित्र ही बनाये गये। राजपूत चित्रकला की एक असाधारण विशेषता आकृतियों का विन्यास है। लघु आकृतियां  भी स्पष्टत: चित्रित की गई हैं। इस शैली का विकास कई शाखाओं में हुआ-

  • मालवा शैली: मालवा शैली अपने चमकीले और गहरे रंगों के कारण विशिष्ट है। मालवा शैली के रंगचित्रों की प्रमुख श्रृंखला रसिकप्रिया है।
  • मेवाड़ शैली: मेवाड़ शैली में पृष्ठभूमि सामान्यत: बेलबूटेदार और वास्तुशिल्प से परिपूर्ण है।
  • बीकानेर शैली: बीकानेरी शैली के अधिकांश कलाकार मुस्लिम थे। यह शैली अपने सूक्ष्म एवं मंद रंगाभास के लिए प्रसिद्ध है।
  • बूंदी शैली: इस शैली में नारी सौंदर्य के चित्रण के लिए कुछ अपने मानदण्ड स्थापित किए गए।
  • कोटा शैली: कोटा शैली काफी हद तक बूंदी शैली से मिलती-जुलती है। इस शैली में विरल वनों में सिंह और चीतों के शिकार के चित्र विश्वविख्यात हैं।
  • आंबेर शैली: आंबेर शैली के रंगचित्र समृद्ध हैं और उनमें विषय वैविध्य भी है लेकिन इसमें सूक्ष्मता का अभाव है।
  • किशनगढ़ शैली: उन्नत ललाट, चापाकार भौंहें, तीखी उन्नत नासिका, पतले संवेदनशील ओंठ तथा उन्नत चिबुक सहित नारी का चित्रण इस शैली का वैशिष्ट्य है।
  • मारवाड़ शैली: इस शैली के रंगचित्रों में पगड़ी की कुछ विशेषताएं हैं। रंग-संयोजन में चमकीले रंगों का प्राधान्य है।
  • पहाड़ी चित्रकला शैली: इस कला के चित्रित वृक्षों की बनावट पर नेपाली चित्रकला का व्यापक प्रभाव है। पहाड़ी चित्रकारों में कृष्ण गाथा अत्यंत लोकप्रिय है। बसौली शैली, गढ़वाल शैली, जम्मू शैली व कांगड़ा शैली पहाड़ी चित्रकला शैली की उप-शैलियां हैं।

बंगाल शैली
चित्रकारी की बंगाल शैली का विकास 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में ब्रिटिश राज के दौरान हुआ। यह भारतीय राष्ट्रवाद से प्रेरित शैली थी, लेकिन इसको कई कला प्रेमी ब्रिटिश प्रशासकों ने भी प्रोत्साहन दिया। रवींद्रनाथ टैगोर के भतीजे अवनींद्रनाथ टैगोर इस शैली के सबसे पहले चित्रकार थे। उन्होंने मुगल शैली से प्रभावित कई खूबसूरत चित्र बनाये। टैगोर की सबसे प्रसिद्ध कृति भारत-माता थी जिसमें भारत को एक हिंदू देवी के रूप में चित्रित किया गया था। 1920 के बाद भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के साथ इस शैली का पतन हो गया।

आधुनिक प्रवृत्ति
औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय कला पर पश्चिमी प्रभाव पूरी तरह से पडऩे लगा था। इस काल के दौरान कई ऐसे चित्रकार हुए जिन्होंने पश्चिमी दृष्टिकोण और यथार्थवाद के वेश में भारतीय विषयों का सुंदर चित्रण किया। इसी दौरान जेमिनी रॉय जैसे कलाकार भी थे जिन्होंने लोककला से प्रेरणा ली।
 भारतीय स्वतंत्रता के बाद प्रगतिशील कलाकारों ने स्वतंत्रोत्तर भारत की आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए नये विषयों व माध्यमों को चुना। इस समूह के छह प्रमुख चित्रकारों में के.एच. आगा, एस. के. बकरे, एच. ए. गदे, एम. एफ. हुसैन, एस. एच. रजा और एफ. एन. सूजा शामिल थे। इस समूह को 1956 में भंग कर दिया गया लेकिन छोटे से ही समय में इसने भारतीय चित्रकला परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया।

इस काल की एक प्रसिद्ध चित्रकार अमृता शेरगिल हैं जिन्होंने नवीन भारतीय शैली का सृजन किया। अन्य महान चित्रकारों में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और रवि वर्मा का नाम शामिल है। वर्तमान प्रसिद्ध चित्रकारों में बाल चाब्दा, वी. एस. गाईतोंडे, कृष्णन खन्ना, रामकुमार, तैयब मेहता और अकबर पदमसी शामिल हैं। जहर दासगुप्ता, प्रोदास करमाकर और बिजॉन चौधरी ने भी भारतीय कला व संस्कृति को समृद्ध बनाने में योगदान दिया है।


Jagran Josh
Jagran Josh

Education Desk

    Your career begins here! At Jagranjosh.com, our vision is to enable the youth to make informed life decisions, and our mission is to create credible and actionable content that answers questions or solves problems for India’s share of Next Billion Users. As India’s leading education and career guidance platform, we connect the dots for students, guiding them through every step of their journey—from excelling in school exams, board exams, and entrance tests to securing competitive jobs and building essential skills for their profession. With our deep expertise in exams and education, along with accurate information, expert insights, and interactive tools, we bridge the gap between education and opportunity, empowering students to confidently achieve their goals.

    ... Read More

    आप जागरण जोश पर भारत, विश्व समाचार, खेल के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए समसामयिक सामान्य ज्ञान, सूची, जीके हिंदी और क्विज प्राप्त कर सकते है. आप यहां से कर्रेंट अफेयर्स ऐप डाउनलोड करें.

    Trending

    Latest Education News