वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की उपलब्धियां, (भाग क)

Jun 29, 2016, 10:14 IST

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) वर्ष 1942 में अस्तित्व में आया था । यह मुख्य रूप से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है। यह एक स्वायत्त निकाय के तौर पर संचालित होता है और सोसायटीज अधिनियम पंजीकरण 1860 के तहत पंजीकृत है। सीएसआईआर के अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग, समुद्र विज्ञान, जीवन विज्ञान, धातु विज्ञान, रसायन, खनन, खाद्य, पेट्रोलियम, चमड़ा और पर्यावरण शामिल है।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) वर्ष 1942 में अस्तित्व में आया। यह एक मुख्य रूप से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है। यह एक स्वायत्त निकाय के तौर पर संचालित होता है और सोसायटीज अधिनियम पंजीकरण 1860 के तहत पंजीकृत है। सीएसआईआर के अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग, स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग, समुद्र विज्ञान, जीवन विज्ञान, धातु विज्ञान, रसायन, खनन, खाद्य, पेट्रोलियम, चमड़ा और पर्यावरण शामिल है।

नई सहस्राब्दि में आने पर सीएसआईआर के लिए तैयार की रोडमैप की नई रणनीति इस प्रकार हैः 

  • संगठनात्मक संरचना का डिजाइन फिर से तैयार करना;
  • अनुसंधान को बाजार से जोड़ना;
  • संसाधानों को संगठित करना और उसका अधिकतम प्रयोग करना;
  • एक सक्षम बुनियादी सुविधा का निर्माण करना; और
  • उच्च गुणवत्ता वाले विज्ञान में निवेश करना जो भविष्य की प्रौद्योगिकियों का अग्रदूत हो।  

सीएसआईआर की प्रमुख उपलब्धियों का नीचे वर्णन किया जा रहा हैः

अमूल मिल्क फूडः 1970 के दशक में सभी शिशु दूध खाद्य पदार्थों का आयात किया जाता था। भारत ने कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों से भारत में विनिर्माण सुविधा की स्थापना करने का अनुरोध किया गया था लेकिन कंपनियों ने यह कहते हुए अनुरोध को ठुकरा दिया कि भारत के पास गाय का दूध पर्याप्त नहीं है और भैंस के दूध में बहुत वसा होता है। सीएसआईआर ने विकास की प्रक्रिया में कदम रखा और उत्कृष्ट पाचनशक्ति के साथ भैंस के दूध से शिशु खाद्य पदार्थ तैयार किया और उसे कैरा मिल्क प्रोड्यूसर्स कोऑपरेटिव लिमि. को सौंप दिया। कॉपरेटिव ने शिशु दूध भोजन को बनाना और उसे बेचना शुरु किया और इस उद्योग का बीच सीएसआईआर द्वारा बोया गया।

एड्स का मुकाबलाः अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में करीब 35 मिलियन (350 लाख) एड्स पीड़ित हैं। उनके जीवन का एकमात्र स्रोत एचआईवी– विरोधी दवाओं का कॉकटेल है। सीएसआईआर ने इन दवाओं के लिए वैकल्पिक और सस्ती प्रक्रियाओं का विकास किया और सिप्ला को यह तकनीक हस्तांतरित कर दी। सिप्ला ने इस दवा को भारत और तीसरी दुनिया के अन्य बाजारों में मूल कीमत के अंश पर उतारा। सिप्ला के आक्रामक मूल्य निर्धारण नीति ने न सिर्फ बहुराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धियों को उनकी दवाओँ की कीमतों को कम करने के लिए मजबूर किया बल्कि विश्व स्तर पर गरीबों के लिए सस्ती जीवन रक्षक दवाओं के मुद्दे को भी उठाया, जिसके फलस्वरूप अंततः दोहा– घोषणा की गई। 

स्वदेशी सुपरकंप्यूटरः वर्ष 1980 में हम कंप्यूटर शक्ति की कमी से जूझ रहे थे। पश्चिम देशों के सुपरकंप्यूटर या तो बहुत महंगे थे या भारत को बेचे नहीं जा रहे थे। इसलिए सीएसआईआर ने कई सामानांतर अनुक्रमिक कंप्यूटरों को जोड़कर सुपरकंप्यूटिंग की शक्ति प्राप्त करने का फैसला किया। वर्ष 1986 में भारत का पहला समानांतर कंप्यूटर Flosolver बनाया गया। इसकी सफलता ने देश में अन्य सफल सामानांतर संगणन (कंप्यूटिंग) परियोजनाओं को शुरु कराया जैसे परम (PARAM)। अस्वीकार से प्रेरित इन नवाचारों की वजह से वाशिंग्टन पोस्ट को यह टिप्पणी की, “And Angry India does it”.

 

पर्यावरण की देखभालः "… आकाश में और वातावरण में शांति हो, वनस्पति जगत और वनों में शांति हो; लौकिक शक्तियों को शांतिपूर्ण रहने दो।"                       (अथर्ववेद से लिया गया है)                    

सीएसआईआर पर्यावरण विज्ञान और पुनर्मध्यस्थता के क्षेत्र में हमेशा से संवेदनशील और सक्रिए रहा है। इस क्षेत्र में कुछ उल्लेखनीय गतिविधियों पर एक नजरः

बंजर भूमि का विकासः संसाधन– समृद्ध भारत के कुल भूमिका सातवां हिस्सा बंजर भूमि है। इसमें खान के कचरे, खारा लेन और राख के कचरे शामिल हैं। सीएसआईआर ने उपचारात्मक कार्रवाई की दिशआ में शुरुआती कदन उठाए हैं। पदमपुर में कोयला खदान के दूषित कचरे को एक्वाकल्चर के लिए जल निकाय में बदला गया है।

नागपुर के गुमगांव में मैगनीज से दूषित कचरा क्षेत्र को फिर से वृक्षारोपण लायक बनाया गया और उसे हरे भरे जंगल में बदल दिया गया। खराब हो चुकी जमीन पर गैर– परंपरागत, तेल वाले जोजोबा, सालिकॉर्निया, जट्रोफा और सालवाडोरा पौधे की खेती कर मूल्यवान संपत्ति में बदला गया। गुजरात में करीब 6 लाख पौधों लगाकर 250 से अधिक हेक्टेयर रेगिस्तान के नमक के मैदान को फिर से कृषि योग्य बनाया गया है।

भारत का जैवभविष्य का निर्माणः " हम 'रसायन– वर्तमान' से 'जैवभविष्य' की ओर पहले ही बढ़ चुके हैं। जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महाशक्ति बनने के लिए भारत के पास जैवविविधता के साथ– साथ कुशल मानव संसाधन के मामले में सभी आवश्यक प्रतिस्पर्धी लाभ हैं।“ – (आर. ए. माशेलकर, महानिदेशक (1995-2006), वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद।")

वंशाणु की कहानियां (Gene Stories): एक नया पुनः संयोजन हैजे का टीका बनाया गया और मनुष्यों के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है या नहीं, के लिए सुरक्षित परीक्षण किया गया। इसे सीएसआईआर द्वारा विकसित किया गया था। एक प्राकृतिक स्ट्रेप्टोकाइनेज एंजाइम को पुनःसंयोजक बैक्टीरिया से प्राप्त किया गया और इसने दवा के स्वदेशी विनिर्माण का रास्ता बनाया एवं कीमतों में कमी को सक्षम बनाया।

जीनोमेडः वर्ष 2000 में जब मानव जीनोम अनुक्रम के 3.2 बिलियन बेसेज का मुद्दा सुलझाया गया था, इस जानकारी को भविष्य के स्वास्थ्य देखभाल के लिए इस्तेमाल किए जाने के अवसर को सीएसआईआर ने तुरंत पहचान लिया था। अपनी तरह का पहले GenoMed– भारतीय फार्मा कंपनी के साथ किया गया ज्ञान गठबंधन था।  यह सीएसआईआर के इतिहास में सबसे अधिक ज्ञान शुल्क लेने वाला गठबंधन था। इससे निजी क्षेत्र का सीएसआईआर में विश्वास परिलक्षित हुआ। इस प्रमुख सरकारी निजी भागीदारी से भारत में लोगों के लिए सस्ती स्वास्थ्य देखभाल के रूप में मानव अनुसंधान जीनोम के लाभों का पहली बार अहसास हुआ था। 

डीएनए फ्रिंगरप्रिंटिंगः


  • विशिष्ट डीएनए अनुक्रमों की पहचान के लिए स्वदेशी जांच का उपयोग करता है।
  • पितृत्व एवं पौधे की प्रजाति का पता लगाने के लिए किया जाता है। राजीव गांधी हत्या और तंदूर हत्याकांड के मामले में महत्वपूर्ण सबूत।
  • आईपीआर संरक्षण के लिए बासमति डाटाबेस बनाना।
  • वन्य जीव प्रबंधन ।

कांगरा चायः


हिमाचल प्रदेश का एक जिला कांगड़ा अपने ग्रीन टी के लिए विश्वविख्यात है। हालांकि, पिछले कई वर्षों से यहां पौधरोपण और उत्पादन में कमी देखी गई। इसलिए सीएसआईआर ने पौधरोपण को पुनर्जीवित और जीवंत करने के लिए तकनीक तैयार की। स्थानीय विशिष्ट स्थितियों के अनुसार कृषि एवं खेती प्रथाओं का विकास किया गया। प्रसंस्करण विधियों में सुधार ने मुरझाने के समय को 16 घंटे से कम कर 5 घंटा कर दिया और उत्पादकता को बढ़ा दिया। इन उपायों से प्रीमियम चाय के उत्पादन में बहुत सुधार हुआ।

मेंथॉल मिंटः


हिमालय के तराई इलाकों में मीठी सफलता की खूशबू से सुगंधित हैं। इस इलाके के किसान अब तेल–युक्त पुदीने के पौधों से पैसे बना रहे हैं। करीब 400,000 हेक्टेयर जमीन पर सीएसआईआर द्वारा विकसित पुदीने (मेंथॉल सिनेसिस) की कोसी, हिमालय और संभव प्रजातियों की खेती की जाती है। कीट प्रतिरोधी और उच्च तेल– उपज वाली इन प्रजातियों को 20 ,000 किसानों ने अपनाया है और रोजगार के 40,000,000 मानव दिन उत्पन्न किया है। भारत ने अब मेंथॉल मिंट और उसके तेल के सबसे बड़े निर्यातक का खिताब जीत लिया है और चीन को दूसरे स्थान पर भेज दिया है।

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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