वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)– भारत का प्रमुख औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास संगठन का गठन तत्कालीन केंद्रीय विधानसभा के संकल्प द्वारा 1942 में किया गया था। यह सोसायटीज पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत स्वायत्त निकाय है। सीएसआईआर का उद्देश्य सामरिक क्षेत्र के लिए औद्योगिक प्रतिस्पर्धा, समाज कल्याण, मजबूत विज्ञान एवं तकनीक आधार प्रदान करना एवं मूल ज्ञान की उन्नति करना है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विविध क्षेत्रों में अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास ज्ञानआधार के लिए जाना जाता है। यह एक समकालीन अनुसंधान एवं विकास संगठन है। पूरे देश में उपस्थिति के साथ, सीएसआईआर के पास 38 राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं, 39 आउटरीच केंद्र, 3 नवाचार परिसर और 5 इकाईयों का गतिशील नेटवर्क है। सीएसआईआर में करीब 4600 सक्रिए वैज्ञानिक हैं जिन्हें करीब 8000 वैज्ञानिक एवं तकनीकी कर्मियों का समर्थन मिलता है।
सीएसआईआर की कुछ प्रमुख उपलब्धियों का नीचे उल्लेख किया जा रहा हैः
आपदा प्रबंधन
आपदाओं ने पूरे विश्व में स्थायी आर्थिक विकास पर खतरा पैदा कर दिया है। बीते बीस वर्षों में भूकंपों, बाढ़ों, उष्णकटिबंधीय तूफान, सूखा और अन्य आपदाओं ने लगभग तीस लाख लोगों को मार डाला, उन्हें चोटग्रस्त, बीमार, बेघर कर दिया और अन्य एक अरब लोगों पर संकट आ गया है। इन आपदाओं ने लाखों– करोड़ों रूपयों का नुकसान किया है। आपदाओं ने मनुष्यों के सदियों के प्रयासों एवं निवेश को नष्ट कर दिया जिससे समाज में पुनर्निर्माण और पुनर्वास की नई मांग पैदा हुई है।
मित्र वही जो समय पर काम आएः चाहे वह सुनामी हो या घर को तबाह कर देने वाला भूकंप, सीएसआईआर ने हमेशा सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाया है।
1991: जब भूकंप ने उत्तरकाशी को हिला कर रख दिया था, सीएसआईआर ने भूकंप में भी सुरक्षित रहने वाले अस्थायी आवास बनाए थे।
1993: सीएसआईआर– द्वारा डिजाइन किए गए पहले से बने स्लैब, पटरों और जोड़ों ने, सिर्फ चार महीनों में, लातूर भूकंप से प्रभावित 30,000 परिवारों को आश्रय प्रदान करने में मदद की थी।
1999: जब भयंकर चक्रवात ने ओड़ीसा को तबाह किया था, तब सीएसआईआर ने रोजाना 40,000 लीटर पानी उत्पादित कर सबसे बुरी तरह प्रभावित जिलों में सुरक्षित पेयजल मुहैया कराया था।
2001: जब अब तक का सबसे भयंकर भूकंप गुजरात में आया तो सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने परंपरागत स्वाद वाले उच्च– पोषण खाद्य पदार्थ के 30,000 प्रभावित इलाकों में पहुंचाए। जब नमक के मैदान भूकंप की वजह से भूरे नमक में बदल गए, सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने अच्छी गुणवत्ता वाले नमक का निर्माण करने लिए तकनीक मुहैया कराई।
2004: जब सुनामी ने भारतीय तट पर दस्तक दी, सीएसआईआर समय से और बहुआयामी राहत प्रदान करने के लिए आगे आया। इसने जीवित बचे लोगों के दुखों को कम करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराए। इसने आश्रय, खाना और पेयजल उपलब्ध कराया। यह भविष्य में होने वाले ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए हमारे ज्ञान और कौशल में सुधार के लिए अध्ययन भी कर रहा है।
खाना वितरित किया जा रहा है सांभर– चावल पैक किया जा रहा है
मानव– निर्मित आपदाएं :
वर्ष 1984 का भोपाल गैस लीक त्रासदी, 1990 में महाराष्ट्र गैस विस्फोट और 1985 में कनिष्क विमान बम विस्फोट, ये सभी दुखद घटनाएं हैं जिन्होंने देश को गहरा दुख पहुंचाया। हर बार सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने शक्तिशाली वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग कर इन घटनाओं के पीछे के कारणों की जांच की और बताया कि भविष्य में कैसे इन दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।
खदान सुरक्षाः
भारत में, कोयला भूमिगत खदानों, जो सतह से सैंकड़ों मीटर नीचे होते हैं, से निकाला जाता है। इन भूमिगत खदानों की छतों को खोखला बनाने से बचाया जाता है। सीएसआईआर ने सर्किट प्रॉप्स, केबल बोल्टिंग और रूफ स्टिकिंग सिस्टम्स जैसे अलग– अलग छत समर्थन प्रणाली का डिजाइन बनाया और उसे विकसित किया है, जो खान में काम करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा को बढ़ाते हैं। खान बेल्ट में कई खान स्केल फैब्रिकेटर खान सुरक्षा महानिदेशालय द्वारा अनुमोदित इन छत प्रणालियों को बनाते हैं।
गैस हाइड्रेट्सः भारत में पारंपरिक गैस भंडार सीमित है और बीते वर्षों में उत्पादन बड़े पैमाने पर कम हुआ है। ईंधन की बढ़ती खपत के साथ, भविष्य गंभीर लग रहा है। सौभाग्य से, गैस हाइड्रेट्स, जो बर्फ के क्रिस्टलों में बंद मिथेन के कण होते हैं, में असाधारण क्षमता दिखती है। अनुमान के अनुसार गैस हाइड्रेट्स के भंडार अकेले ही आने वाले 300 वर्षों तक अंतरराष्ट्रीय गैस आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। सीएसआईआर ने भारतीय तटों पर गैस हाइड्रेट्स के भंडार का पता लगाने के लिए प्रमुख पहल की शुरुआत की है और प्राथमिक अध्ययनों के नतीजे उत्साहजनक हैं।
बर्फ पर निर्भरता: देश को अंटार्कटिका में "लगातार उपस्थिति" बनाए रखने की जरूरत है और सीएसआईआर अंटार्कटिका पर सबसे पहले पहुंचने वाले निर्णायक एजेंसी के तौर पर उभरा। सीएसआईआर 9 जनवरी 1982 को अंटार्कटिका पर पहुंचा था। भारत ने अंटार्कटिका संधि पर हस्ताक्षर किया है इसलिए वह अंटार्कटिका क्लब का विशिष्ट सदस्य भी है। सीएसआईआर का दीर्ध– कालिक भूवैज्ञानिक, जैविक, वायुमंडलीय और अन्य अध्ययन में हिस्सा लेना जारी है।
फसल– के अनुकूल कीटनाशकः
1960 के दशक का हरित क्रांति एख तरफ हाइब्रिड बीजों पर बहुत अधिक निर्भर था तो दूसकी तरफ कीट संरक्षण पर। भारत का कीटनाशक उत्पादन बहुत कम था और कार्यक्रम आयातों पर निर्भर था। वक्त की मांग को देखते हुए सीएसआईआर ने अनिवार्य कीटनाशकों के निर्माण हेतु किफायती प्रक्रिया को विकसित करने के लिए एकीकृत कार्यक्रम शुरु किया। 25 कीटनाशकों के लिए तकनीक विकसित की गई और उसे 20 उद्योगों को दे दिया गया। एक समय में 70 फीसदी से अधिक नए कीटनाशकों का उत्पादन सीएसआईआर के तकनीकी जानकारी पर आधारित था।
इंडिया मार्क II पंपः भारत सरकार ऐसे सरल पंप चाहती थी जो गांवों में बिना बिजली के भी काम कर सके। इसे सरल होना चाहिए था। साथ ही इसका रख–रखाव और संचालन भी सरल होना चाहिए था। सीएसआईआर ने इंडिया मार्क II पंप के साथ समाधान प्रस्तुत किया। गैर– संक्षारक, गैर– धातु पुर्जों से बना यह किफायती पंप ग्रामीण भारत का अविभाज्य अंग बन गया है। अनुमान के अनुसार 30 लाख पंप भारतीयों और तीसरी दुनिया के राष्ट्रों में रहने वालों की प्यास बुझाने में मदद कर रहे हैं।
स्वराज ट्रैक्टर्स: स्वतंत्र भारत को अपने करोड़ों लोगों के खाने का प्रबंध करने के लिए अपने खाद्यान्न भंडार को भरना था। हरित क्रांति पर काम चल रहा था लेकिन अनुभवहीन राष्ट्र को कृषि क्षेत्र में श्रमिक और मशीनें, दोनों ही की जरूरत थी। सीएसआईआर ने 20 एचपी वाले स्वराज (SWARAJ) ट्रैक्टर के साथ मिलकर प्रभावशाली शुरुआत किया। एक पीएसयू, पंजाब मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड, ने 1974 में ट्रैक्टर बनाना और बेचना शुरु कर दिया। स्वराज ट्रैक्टरों ने मशीनीकृत कृषि में आने वालों की मदद की। आज करीब 1,00,000 ट्रैक्टर भारत की मिट्टी को जोतते हैं। लेकिन सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने यहीं पर अपना काम समाप्त नहीं किया। भारतीय कृषि में उनका नवीनतम योगदान सोनालिका, 60 एचपी वाला ट्रैक्टर है।
10 एचपी कृषिशक्ति ट्रैक्टरः भारतीय किसानों को सशक्त बनाता है।
विशेष कांच (Special Glasses) वर्ष 1958 में, जब भारत पर युद्ध का खतरा मंडरा रहा था, भारत को ऑप्टिकल ग्लासेस की सख्त जरूरत थी। ऑप्टिकल ग्लास की तकनीक ने पूरी दुनिया की रक्षा की थी। हालांकि, सीएसआईआर ने बीड़ा उठाया और अपनी पहली कांच– निर्माण इकाई स्थापित की। तब से सीएसआईआर ने 400 अलग– अलग प्रकार के विशेष कांच विकसित किए हैं जिनका प्रयोग दूरबीनों, उपग्रहों में परावर्तकों के रूप में, रोबोट की गतिविधि पर नजर रखने और हानिकारक विकिरण से रक्षा करने के लिए विकिरण परिरक्षण चश्मा में किया जाता है।
भारतीय मानक समय का अभिभावक (The Guardian of Indian Standard Time)
शॉर्ट वेव बैंड आवृत्ति पर प्रत्येक सेकेंड एक बीप सुनी जा सकती है। यह बीप भारत के मानक वाहक के तौर पर सीएसआईआर के मेहनती एवं सर्वव्यापी भूमिका को बताता है। सीएसआईआर भारत के सभी मानक मापों– किलोग्राम, मीटर, सेकेंड या डेसीबल, का रखवाला है। ऐसे सटीक मानक और माप, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों, भारतीय उद्योग को वैश्विक प्रतिस्पर्धी बनाता है।
स्वास्थ्यः ASMON, अस्थमा की नई हर्बल दवा सीएसआईआर तकनीक पर बनी है। ASMON आस्थमा– के कारण वाले दोनों रास्तों को बंद कर देता है। आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले स्टेरॉयड दवाओँ के विपरीत ASMON का कोई साइड इफेक्ट नहीं है और यह सभी समूहों के लिए सुरक्षित है। कार्य करने का इसका अनोखा तरीका तत्काल आराम देता है।
मलेरिया से जंगः परजीवी की प्रतिरोधी किस्मों के उभरने का धन्यवाद, मलेरिया से आज भी करीब 200 मिलियन लोगों के प्रभावित होने का खतरा बना हुआ है। विकासशील देशों तक बड़े पैमाने पर सिमट चुकी इन बीमारियों पर काम करने के लिए विकसित देशों में किसी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं दिया जाता। सीएसआईआर ने मलेरिया का मुकाबला करने के लिए दो प्रभावशाली दवाएं विकसित की हैं। इलूबाकूइन (Elubaquine) पुनरावर्तन– रोधी मलेरिया– रोधी दवा है जो कोलोकून– प्रतिरोधी मलेरिया के खिलाफ बहुत प्रभावी है। मस्तिष्क के मलेरिया का मुकाबला करने वाली दवा अर्टीथर (ई–मल) (Arteether(E-mal)) का 48 देशों में निर्यात किया जा रहा है।
सप्ताह में एक बार– गोलीः
- मौखिक गर्भनिरोधक
- परंपरागत स्टेरॉयड की तुलना में सुरक्षित विकल्प
- प्रोजेस्टेरोन एस्ट्रोजन संयोजन गोली
- लिपिड प्रोफाइल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता
- स्तन कैंसर विरोधी गुण
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