दिल्ली हाई कोर्ट ने फीस बढ़ोतरी और टीचर्स की सैलरी को लेकर एक अहम आदेश में दिया। हाई कोर्ट ने साफ किया कि फीस बढ़ोतरी और शिक्षकों की सैलरी पर कमेटियां फैसला नहीं कर सकती हैं। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि भले ही कोर्ट ने जोनल और सेंट्रल लेवल की कमेटियां बनाई हो। लेकिन, वह फीस बढ़ोतरी और टीचर्स की सैलरी से जुड़े मामलों में निर्णय नहीं ले सकतीं।
सिंगल बेंच को दी चुनौती
स्कूलों ने सिंगल जज के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दिल्ली सरकार को निर्देश दिया गया था कि वह 6वें और 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार शिक्षकों को वेतन और बकाया दिलाने के लिए जोनल और सेंट्रल कमेटियां बनाएंगे।
कोर्ट का कहना है कि सिंगल जज की बेंच ने फीस बढ़ाने और शिक्षकों को वेतन देने जैसे न्यायिक कामों को समितियों को सौंपकर कानून का उल्लंघन किया है। अदालतें केवल तथ्य जानने के लिए समितियां बना सकती हैं। वह फैसले नहीं ले सकती। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस विमल कुमार यादव की बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया।
सिंगल बेंच का फैसला क्या था?
सिंगल जज की बेंच ने पहले अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट का सेक्शन 10 बहुत जरूरी है और इसे मानना ही होगा। लेकिन अब हाई कोर्ट की डबल बेंच ने इस आदेश के उस हिस्से को निरस्त कर दिया है, जिसमें न्यायिक शक्तियों को समितियों को सौंपा गया था।
टीचर्स की सैलरी पर फिर होगी सुनवाई
कोर्ट ने इस मामले को फिर से विचार के लिए रोस्टर बेंच को भेज दिया है। इसका मतलब है कि अब रोस्टर बेंच इस पर दोबारा सुनवाई करेगी और तय करेगी कि प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को छठे और सातवें वेतन आयोग का लाभ मिलेगा या नहीं। यह फैसला प्राइवेट स्कूलों और उनके शिक्षकों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है और आगे की सुनवाई का इंतजार रहेगा।

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