Positive India: न्यूयॉर्क की नौकरी छोड़ कर देश की सेवा के लिए किया UPSC क्लियर, कभी मोमबत्ती की रौशनी में करनी पड़ती थी पढ़ाई - जानें IPS इल्मा अफ़रोज़ के संघर्ष की कहानी

Jun 15, 2020, 14:29 IST

जानें IPS इल्मा अफ़रोज़ का मोमबत्ती की रौशनी में पढ़ाई करने से ले कर न्यूयोर्क में नौकरी करने और फिर UPSC की सिविल सेवा परीक्षा पास करने तक का सफर कैसा रहा। 

न्यूयॉर्क की नौकरी छोड़ कर देश की सेवा के लिए किया UPSC क्लियर, कभी मोमबत्ती की रौशनी में करनी पड़ती थी पढ़ाई  - जानें IPS इल्मा अफ़रोज़ के संघर्ष की कहानी
न्यूयॉर्क की नौकरी छोड़ कर देश की सेवा के लिए किया UPSC क्लियर, कभी मोमबत्ती की रौशनी में करनी पड़ती थी पढ़ाई - जानें IPS इल्मा अफ़रोज़ के संघर्ष की कहानी

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कुंदरकी कस्बे के एक छोटे से किसान की बेटी इल्मा अफ़रोज़ की नियति में देश की सेवा करना ही लिखा था। अगस्त 2018 में प्रतिष्ठित भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में शामिल होने वाली 26 वर्षीय इल्मा ने न्यूयॉर्क में आराम के जीवन को पीछे छोड़ दिया, ताकि भारत की प्रगति में अपना योगदान दे सकें। हालांकि IPS बनने तक की उनकी यात्रा चुनौतियों और बाधाओं भरी रही। वह केवल 14 वर्ष की थी जब उनके पिता कैंसर के शिकार हो गए और उनकी मृत्यु हो गई थी। आइये जानते हैं IPS इल्मा अफ़रोज़ की संघर्षपूर्ण कहानी के बारे में:

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माँ ने अकेले किया इल्मा और उनके भाई का पालन 

एक युवा बेटी और 12 साल के बेटे की देखभाल करने के लिए इल्मा की मां ने बच्चों की परवरिश करने का बीड़ा उठाया। इल्मा बताती हैं कि “मेरी माँ ने मेरे छोटे भाई और मुझे बहुत संघर्ष करते हुए पाला है। वह बहुत मजबूत महिला हैं। जहाँ लड़की के दहेज के लिए बचत करना और जल्दी शादी कर देने का प्रचलन है वही उन्होंने मुझे अपनी क्षमता पूरी करने का मौका दिया।" इल्मा की माँ खेती करती थी और उन्हीं पैसो से परिवार का पालन करती थी। इल्मा  बताती है कि उनके आस पास रहने वाले बच्चे जहाँ IIT और MBBS की कोचिंग लेने जाते थे वहीं इल्मा मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई करती थी। 

दिल्ली विश्वविद्यालय के St. Stephens कॉलेज से की ग्रेजुएशन 

अपने गृहनगर में हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद इल्मा ने दिल्ली के प्रसिद्ध सेंट स्टीफन कॉलेज में दाखिला लिया और फिलॉसफी में ग्रेजुएशन किया। इल्मा कहती हैं कि “सेंट स्टीफन में मैंने फिलॉसफी का अध्ययन करने में जो तीन साल बिताए वे मेरे जीवन के अब तक के सबसे अच्छे वर्ष थे। विषय को ऐसे वातावरण में सीखना जहां प्रोफेसर छात्रों के साथ निकटता से जुड़ सकते हैं, इससे मुझे महत्वपूर्ण पाठों में मदद मिली। हमने कक्षा के बाहर भी बहुत कुछ सीखा। फिलॉसफी एक व्यक्ति को अपने दम पर सोचने के लिए प्रोत्साहित करता है।"

विदेश में पढ़ने के लिए मिली स्कॉलरशिप पर नहीं थे टिकट के पैसे 

इल्मा की कड़ी मेहनत और समर्पण ने उन्हें विश्व प्रसिद्ध ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भाग लेने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। हालांकि उन्हें पढ़ाई और रहने का खर्चा स्कॉलर्शिप में ही मिलने वाला था परन्तु उनके पास हवाई यात्रा के पैसे नहीं थे। वह मदद मांगने के लिए गाँव के चौधरी दादा के पास पहुँची और उन्हें अपने विलायत जाने के बारे में बताया। वह देख रहीं थी की कैसे उनके दादा खेतों में पसीना बहा कर कड़ी धूप में फसल की कटाई कर रहे थे। कई साल बीतने के बावजूद इल्मा कभी अपने दादा की उस अवस्था को नहीं भूल पाईं। 

न्यूयॉर्क शहर के Financial Estate में मिली नौकरी

यूनाइटेड किंगडम में अपने समय के बाद, उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में अपना रास्ता बनाया जहां उन्होंने मैनहट्टन क्षेत्र में एक स्वैच्छिक सेवा कार्यक्रम में भाग लिया। हालाँकि, वह इस सब से संतुष्ट नहीं थीं। इल्मा कहती हैं कि “हर दिन जब मैं मैनहट्टन शहर में अपने कमरे में लौटती थी तो मैं घर के लिए तरस जाती थी। अम्मी के लिए और उसकी मुस्कुराहट के लिए। मैं अपने कमरे की खिड़की से बाहर न्यूयॉर्क स्काईलाइन को देखती थी और माचिस की तीली जैसी पीली टैक्सियों को देखती थी, जो अमेरिकी सपने से जुड़ी एक सर्वव्यापी छवि है। लेकिन एक ही सवाल मेरे मैं में था की क्या मेरे पढ़ने लिखने का सपना केवल अमेरिका आने के लिए था? क्या मेरे यहाँ आने से मेरे गाँव के लोगों के जीवन में कोई सुधार आ रहा है?"

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न्यूयॉर्क की नौकरी छोड़ कर UPSC सिविल सेवा परीक्षा देने का फैसला किया 

गांधीजी के ’हर आंख से हर आंसू पोंछना’ के सपने से प्रेरित होकर इल्मा ने यह महसूस किया कि राष्ट्र को उनकी शिक्षा का लाभ मिलना चाहिए और गांधी जी के सपने को पूरा करने के लिए वह अपना थोड़ा सा प्रयास करना चाहती थी। जब भी इल्मा छुट्टियों के लिए घर लौटती थीं वह देखती थी कि लोगों की आँखें खुशी आशा की चमक है यह सोचकर कि "हमारी बेटी हमारे दर्द को दूर कर देगी।" रिश्तेदारों और परिचितों ने उसे राशन कार्ड प्राप्त कराने, फॉर्म भरने या मोतियाबिंद सर्जरी के लिए किसी को लेने जैसी सरल चीजों की तलाश की। इल्मा कहती हैं की "मैं हमेशा जानती थी कि मेरी खुशी भारत में अम्मी और मेरे आसपास के सभी लोगों के साथ वापस घर में है।"

जब उन्हें इन सभी बातों का एहसास हुआ तो उन्होंने UPSC की सिविल सेवा परीक्षा पास कर लोगों की भलाई के लिए काम करने का निर्णय लिया और वह घर लौट आई।

2017 में UPSC की सिविल सेवा परीक्षा पास कर बनीं IPS

इल्मा ने 2017 में UPSC की सिविल सेवा परीक्षा 217वीं रैंक से पास की। उन्हें हिमाचल प्रदेश कैडर में आईपीएस नियुक्त किया गया। इल्मा इस बात का उदहारण हैं की इच्छा शक्ति से कोई भी मुकाम हासिल करना मुश्किल नहीं है। जहाँ ज़्यादातर युवा सुख-सुविधा का जीवन चुनते हैं वही इल्मा अफ़रोज़ ने देश की सेवा के लिए एक अच्छी नौकरी को छोड़ दिया। वह देश के हर युवा के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं। 

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