पद्मश्री मिलने के बाद भी नाराज, धरने पर बैठा ये गूंगा पहलवान, जानें Virender Singh के बारे में

Nov 12, 2021, 16:58 IST

Virender Singh Padma Shri 2020: पहलवान वीरेंदर सिंह को जिस दिन पद्मश्री मिला उसके अगले दिन ही वह धरने पर बैठ गए। आइए जानते हैं हरयाणा सरकार से उनकी नाराज़गी का कारण और अब तक के सफर के बारे में।

पद्मश्री मिलने के बाद भी नाराज, धरने पर बैठा ये गूंगा पहलवान, जानें Virender Singh के बारे में
पद्मश्री मिलने के बाद भी नाराज, धरने पर बैठा ये गूंगा पहलवान, जानें Virender Singh के बारे में

Virender Singh Padma Shri 2020: ऐसा पहले शायद ही कभी हुआ होगा कि पद्मश्री पाकर भी कोई नाखुश हो और धरने पर बैठ गया हो। पहलवान Virender Singh को जिस दिन पद्मश्री मिला उसके अगले दिन ही वह धरने पर बैठ गए।

वीरेंदर सिंह बोल और सुन नहीं सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद वह हरियाणा भवन के सामने सभी मेडल और पुरस्कार के साथ खट्टर सरकार के खिलाफ धरने पर बैठे हैं। उन्होंने प्रदेश सरकार से सभी मूक-बधिर खिलाड़ियों को पैरा ओलंपियन के समान अधिकार देने की मांग की है।  

हरियाणा सरकार ने वीरेंदर सिंह को एक करोड़ रुपये और सी ग्रेड नौकरी दी है, जबकि पैरा ओलंपियन और ओलंपिक वालों को इससे ज्यादा सुविधाएं दी जा रही हैं। इस बात का ज़िक्र वीरेंदर के भाई रामवीर ने प्रधानमंत्री मोदी से पद्म पुरस्कार समारोह के दौरान किया था। 

आइए जानतें है मूक-बधिर ओलंपियन वीरेंदर सिंह के बारे में।

Virender Singh राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री से सम्मानित

वीरेंदर सिंह भले ही बोलने और सुनने में अक्षम हों, लेकिन कुश्ती में उनके कारनामों ने ऐसी आवाजें पैदा की हैं जिन्हें सात समुद्र पार भी सुना जा सकता है। तीन बार डीफलिंपिक्स में स्वर्ण पदक विजेता रह चुके वीरेंदर सिंह 'गूंगा पहलवान' (Goonga Pahalwan) के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्हें हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। वीरेंदर यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले मूक-बधिर एथलीट हैं। 

ऐसे शुरू हुआ कुश्ती लड़ने का सफर

वीरेंदर सिंह का जन्म हरियाणा के सासरोली गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता और चाचा दोनों ही पहलवान थे। क्योंकि वीरेंदर बोल और सुन नहीं सकते थे, इस वजह से उन्हें गाँव में तंग किया जाता था। गांव में तंग किए जाने की वजह से उनके चाचा उन्हें और उनके पिता को  CISF अखाड़े में रहने के लिए दिल्ली ले गए और यहां से उनके सफर की शुरूआत हुई। 

वीरेंदर सिंह ने दिल्ली के प्रसिद्ध कुश्ती अखाड़ों, गुरु हनुमान अखाड़ा और छत्रसाल स्टेडियम में प्रशिक्षण लिया। उन्हें पहली सफलता 2002 में विश्व कैडेट कुश्ती चैंपियनशिप के राष्ट्रीय दौर में मिली, जहाँ उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। स्वर्ण पदक जीतने के बाद वह स्वत: विश्व आयोजन के लिए योग्य थे, परंतु भारत सरकार ने उनके बहरेपन की वजह से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था।

 तीन बार डीफलिंपिक्स में स्वर्ण पदक 

वीरेंदर ने भारत सरकार के इस फैसले को निराशा का कारण नहीं बनने दिया और साल 2005 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में समर डेफ्लिम्पिक्स में न सिर्फ भाग लिया बल्कि स्वर्ण पदक भी जीता। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और पदक जीतने का सिलसिला जारी रहा। 

वीरेंदर ने आर्मेनिया में विश्व बधिर कुश्ती चैंपियनशिप में रजत और वर्ल्ड्स में सोफिया में कांस्य पदक जीता। साल 2013 के ग्रीष्मकालीन डीफ्लिम्पिक्स में उनका प्रदर्शन शानदार रहा और एक बार फिर वह स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद उन्होंने ईरान के तेहरान में 2016 विश्व बधिर कुश्ती चैंपियनशिप और सैमसन में 2017 ग्रीष्मकालीन डीफ्लिम्पिक्स में स्वर्ण पदक जीता। 

वीरेंदर सिंह को भारतीय खेलों में उनके शानदार योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।  उनके ऊपर Goonga Pehelwan नाम से एक डॉक्यूमेंट्री भी बन चुकी है। वर्तमान में वह भारतीय खेल प्राधिकरण में जूनियर स्पोर्ट्स कोच के रूप में कार्यरत हैं और आने वाली पीढ़ी के पहलवानों को प्रशिक्षण दे रहे हैं।

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Arfa Javaid
Arfa Javaid

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Arfa Javaid is an academic content writer with 2+ years of experience in in the writing and editing industry. She is a Blogger, Youtuber and a published writer at YourQuote, Nojoto, UC News, NewsDog, and writers on competitive test preparation topics at jagranjosh.com

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