भारत में पढ़ाई से जुड़े कुछ मिथक और उनकी सच्चाई  

Aug 20, 2020, 18:00 IST

‘मिथक’ अक्सर गप्प, कल्पित बात या झूठी बात को कहा जाता है. अब, अधिकतर लोग यह सोच सकते हैं कि, भला पढ़ाई से किसी मिथक का क्या लेना-देना हो सकता है?......इस आर्टिकल में हमने आपके लिए कुछ ऐसे ही मिथकों की सच्चाई बताने का प्रयास किया है.

'Myths and Reality of Education'
'Myths and Reality of Education'

आजकल सोशल मीडिया में वायरल होने वाले मैसेजेज के इस जमाने में जब हरेक इशू की सच्चाई या असत्य होने को लेकर शक बना ही रहता है तो ऐसे में, हमारी पढ़ाई भी इससे अछूती नहीं है. आज हमारे देश में पढ़ाई से जुड़े कई ऐसे मिथक हैं जिनके बारे में वास्तविकता या सच्चाई पता चलने पर हम अपनी पढ़ाई ज्यादा अच्छे तरीके से कर सकेंगे और फिर, हमें अच्छे मार्क्स मिलेंगे जिससे हम अपने एकेडमिक और करियर गोल्स हासिल हो सकेंगे और हमारे व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास होगा.  

बहुत बार हम कोई किताब या अपने स्टडी-सब्जेक्ट्स पढ़ने या अपने कोर्स के नोट्स बनाने को ही अपनी पढ़ाई मान लेते हैं. किंतु ऐसा नहीं है. हमारी पढ़ाई में केवल लिखना, पढ़ना ही शामिल नहीं होता है बल्कि, ‘लर्निंग बाय डूइंग’ (कर के सीखना) को भी पढ़ाई के दायरे में ही शामिल किया जाता है. इसी तरह, केवल ‘लर्निंग बाय डूइंग’ ही हमारी पढ़ाई नहीं है बल्कि हमारी पढ़ाई का दायरा इससे भी काफी आगे तक फैला हुआ है. हम अपनी डेली लाइफ में ‘पढ़ाई’ के किसी न किसी रूप का इस्तेमाल जरुर करते हैं. आइये इस आर्टिकल में भारत में पढ़ाई से जुड़े विभिन्न मिथकों/ माइथ्स और उनकी सच्चाई के बारे में सटीक जानकारी हासिल करें:  

 ‘मिथक’ किसे कहते हैं?

‘मिथक’ शब्द का अर्थ अक्सर कथा, पौराणिक कथा, कहानी, गप्प, कल्पित बात या झूठी बात से लिया जाता है. अब हमारे मन में यह प्रश्न जरुर उठता है कि, भला हमारी पढ़ाई से किसी मिथक का क्या लेना-देना हो सकता है?...... या फिर, पढ़ाई से जुड़े कौन से मिथक हो सकते हैं? आइये इन सब के बारे में विस्तृत चर्चा करें:

भारत में पढ़ाई से जुड़े कुछ प्रचलित मिथक:

  • बच्चे ‘प्रक्टिक्ला करके’ ज्यादा अच्छी तरह ‘सीखते’ हैं.
  • अगर आपके पास है टीचिंग की डिग्री तो आप बन जाते हैं एक अच्छे टीचर.
  • काफी धन से आपकी होती है बेटर स्कूलिंग.
  • जब आप बच्चों को उनके सीखने के तरीके से पढ़ाते हैं तो वे ज्यादा अच्छी तरह सीखते हैं.
  • अगर स्टूडेंट्स अपने-आप सीखते हैं तो ज्यादा अच्छी तरह विषय को समझते हैं.
  • ज्यादा होमवर्क का सीधा-सा अर्थ है ज्यादा लर्निंग.
  • पढ़ाई में अच्छे मार्क्स से बनते हैं आप एक कुशल पेशेवर.
  • प्राइवेट स्कूल्स में होती है अच्छी पढ़ाई.
  • छोटे बच्चों को बार-बार दोहरा कर पढ़ाना अच्छा रहता है लेकिन तेज़ गति से पढ़ाना फायदेमंद नहीं होता है.
  • विशेष भोजन का बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ता है.
  • धीरे पढ़ने से आपका फोकस पूरी तरह पढ़ाई में रहता है.
  • धीमी गति से पढ़ने पर बढ़ जाती है हमारी मेमरी.
  • टीचर्स कम काम करते हैं और पाते हैं डबल सैलरी.
  • टीचर नहीं जानते हैं कि वे क्या पढ़ा रहे हैं?
  • अच्छी लर्निंग के लिए केवल टीचर्स ही जिम्मेदार होते हैं.
  • स्टूडेंट्स के रिजल्ट पर टीचर्स के ‘लेसन प्लान्स’ का कोई असर नहीं पड़ता है.
  • टीचर्स के बिना होती है अच्छी पढ़ाई.
  • ज्यादातर टीचर्स स्टूडेंट्स की पढ़ाई के बारे में परवाह नहीं करते हैं.
  • तेज़ गति से पढ़ने पर हम नहीं समझ पाते हैं बेसिक कॉन्सेप्ट्स.
  • हम अक्सर अपनी पढ़ाई करने की गति को बढ़ा नहीं सकते हैं.
  • हम 1 मिनट में सीमित संख्या में ही पढ़ पाते हैं शब्द.
  • ए-ग्रेड स्टूडेंट बनने पर नहीं मिलता है मौज-मस्ती करने का टाइम.
  • प्रेशर में और एग्जाम के दिनों में होती है अच्छी पढ़ाई.
  • टेक्स्टबुक रखने पर नहीं बनाने पड़ते हैं नोट्स.
  • पढ़ाई होती है काफी खर्चीली.
  • साल-भर तैयारी करते रहने से एग्जाम के दिनों में भूल जाते हैं टॉपिक्स.
  • कम उम्र में ही पढ़ सकते हैं.
  • कई घंटे लगातार पढ़ने से मिलते हैं अच्छे मार्क्स.
  • दिव्यांग और वंचित वर्ग के स्टूडेंट्स की सीखने की क्षमता होती है कम.
  • कंप्यूटर पर बनते हैं बढ़िया नोट्स.
  • एक समय पर एक ही विषय पढ़ना चाहिए और उसे अच्छी तरह समझकर आगे बढ़ना चाहिए.
  • पढ़ाने के लिए अनुभव और डिग्री की नहीं बल्कि केवल कंटेंट नॉलेज की जरुरत होती है.

भारत में पढ़ाई से जुड़े इन मिथकों की यह है सच्चाई:

·         बच्चे ‘प्रैक्टिकल करके’ ज्यादा अच्छी तरह ‘सीखते’ हैं.

सच्चाईरिसर्च से यह पता चला है कि जब टीचर्स बच्चों को सक्रिय तौर पर पढ़ाते हैं तो बच्चे खुद करके सीखने के बजाए तिगुना अच्छी तरह सीखते हैं.

·         अगर आपके पास है टीचिंग की डिग्री तो आप बन जाते हैं एक अच्छे टीचर.

सच्चाईयह सच है कि डिग्री प्राप्त करने से हमारे स्किल्स बढ़ते हैं लेकिन केवल टीचिंग की डिग्री होने से ही कोई व्यक्ति एक अच्छा टीचर नहीं बन सकता है. अच्छे टीचर को प्रैक्टिकल टीचिंग का अनुभव अवश्य होना चाहिए. 

·         काफी धन से आपकी होती है बेटर स्कूलिंग.

सच्चाईयह बिलकुल भी जरुरी नहीं है कि अगर आप अमीर हैं तो आप पढ़ाई में होशियार ही होंगे. बेटर स्कूलिंग के लिए खुद को अनुशासित रखने की आवश्यकता होती है.

·         जब आप बच्चों को उनके सीखने के तरीके से पढ़ाते हैं तो वे ज्यादा अच्छी तरह सीखते हैं.

सच्चाईहरेक बच्चे के सीखने का तरीका अलग होता है लेकिन फिर भी, सभी बच्चों को एक-साथ अच्छी तरह पढ़ाने के लिए टीचर को अपने खास तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ता है. 

·         अगर स्टूडेंट्स अपने-आप सीखते हैं तो ज्यादा अच्छी तरह विषय को समझते हैं.

सच्चाईवास्तव में स्टूडेंट्स को अगर किसी विषय की मूलभूत जानकारी होगी, केवल तब ही वे खुद किसी विषय को अच्छी तरह सीख और समझ सकेंगे.

·         ज्यादा होमवर्क का सीधा-सा अर्थ है ज्यादा लर्निंग.

सच्चाईरिसर्चर्स ने इस बात का पता लगाया है कि ज्यादा होमवर्क से स्टूडेंट्स की लर्निंग में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. होमवर्क स्टूडेंट्स के लिए जरुरी तो है लेकिन स्टूडेंट्स को होमवर्क के बोझ तले नहीं दबाना चाहिए.

·         पढ़ाई में अच्छे मार्क्स से बनते हैं आप एक कुशल पेशेवर.

सच्चाईअपनी स्कूल/ कॉलेज लाइफ में अच्छे मार्क्स लाने के बावजूद एक कुशल पेशेवर बनने के लिए हमें अपनी फील्ड में प्रैक्टिकल नॉलेज और अच्छे कार्य अनुभव की जरूरत होती है. 

·         प्राइवेट स्कूल्स में होती है अच्छी पढ़ाई.

सच्चाईहर वर्ष रिजल्ट निकलने के बाद यह बार-बार साबित हो जाता है कि कई सरकारी स्कूलों की पढ़ाई ए-वन होती है और सरकारी स्कूलों के स्टूडेंट्स हर साल नए-नए रिकार्ड्स बनाते हैं.

·         छोटे बच्चों को बार-बार दोहरा कर पढ़ाना अच्छा रहता है लेकिन तेज़ गति से पढ़ाना फायदेमंद नहीं होता है.

सच्चाईछोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल एक-साथ करना होता है. कई बार बच्चों को जल्दी-जल्दी भी कॉन्सेप्ट्स अच्छी तरह समझाये जाते हैं.

·         विशेष भोजन का बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ता है.

सच्चाईआहार से संबंधित विभिन्न रिसर्चेज बताती हैं कि विशेष भोजन का बच्चों पर असर तो पड़ सकता है लेकिन केवल किसी विशेष किस्म का खाना खाने से ही हम अपनी पढ़ाई में सफल नहीं हो पाते हैं.

·         धीरे पढ़ने से आपका फोकस पूरी तरह पढ़ाई में रहता है.

सच्चाईअगर हम बहुत धीरे-धीरे टेक्स्ट-मैटर को पढ़ें तो हमारा दिमाग पढ़ाई से भटक जाता है.

·         धीमी गति से पढ़ने पर बढ़ जाती है हमारी मेमरी.

सच्चाईअगर हम टेक्स्ट-बुक और नॉवेल का उदाहरण लें तो हमें स्पष्ट हो जाएगा कि तेज़ गति से पढ़ने के बावजूद हमें नॉवेल की स्टोरी टेक्स्ट-बुक के सब्जेक्ट मैटर की तुलना में ज्यादा अच्छी तरह याद हो जाती है. 

·         टीचर्स कम काम करते हैं और पाते हैं डबल सैलरी.

सच्चाईहमारे विकासशील देश में जहां अक्सर एक क्लास में टीचर्स को 45 या अधिक स्टूडेंट्स को पढ़ाना पड़ता है वहां टीचर्स का काम काफी अधिक होता है और इसी तरह,  प्राइवेट स्कूल्स अक्सर टीचर्स को काफी कम सैलरी देते हैं.

·         टीचर नहीं जानते हैं कि वे क्या पढ़ा रहे हैं?

सच्चाईवास्तव में टीचर्स अपने विषय के विशेषज्ञ होते हैं और उन्हें उस विषय को पढ़ाने का कई वर्षों का अनुभव भी होता है. इसलिए, टीचर्स को अपने विषय की काफी अच्छी जानकारी होती है.

·         अच्छी लर्निंग के लिए केवल टीचर्स ही जिम्मेदार होते हैं.

सच्चाईवास्तव में अच्छी लर्निंग के लिए टीचर्स के पढ़ाने के स्टाइल के साथ-साथ स्टूडेंट्स की मेहनत और लगन भी काफी महत्वपूर्ण होती है.

·         स्टूडेंट्स के रिजल्ट पर टीचर्स के ‘लेसन प्लान्स’ का कोई असर नहीं पड़ता है.

सच्चाईटीचर्स जब अपने विषय की अच्छी तरह तैयारी करके स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं तो उनके लेक्चर्स ज्यादा प्रभावी बन जाते हैं जिससे स्टूडेंट्स के रिजल्ट्स भी अच्छे आते हैं.

·         टीचर्स के बिना होती है अच्छी पढ़ाई.

सच्चाईकई रिसर्चेज से यह बात साबित हो गई है कि टीचर्स के बिना स्टूडेंट्स की पढ़ाई ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाती है और एवरेज स्टूडेंट्स को विभिन्न कॉन्सेप्ट्स सीखने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है.  

·         ज्यादातर टीचर्स स्टूडेंट्स की पढ़ाई के बारे में परवाह नहीं करते हैं.  

सच्चाईजैसे स्टूडेंट्स को अपने अच्छे रिजल्ट की काफी चिंता रहती है, ठीक वैसे ही टीचर्स भी अपने स्टूडेंट्स के अच्छे मार्क्स के लिए काफी चिंतित रहते हैं और इसलिए अपने स्टूडेंट्स को अच्छे से अच्छा पढ़ाने की कोशिश करते हैं.

·         तेज़ गति से पढ़ने पर हम नहीं समझ पाते हैं बेसिक कॉन्सेप्ट्स.

सच्चाईएग्जाम के दिनों में यह सच्चाई सामने आती है कि तेज़ गति से, लेकिन ध्यान से पढ़ने पर हम बेसिक कॉन्सेप्ट को भी काफी अच्छी तरह समझ लेते हैं.

·         हम अक्सर अपनी पढ़ाई करने की गति को बढ़ा नहीं सकते हैं.

सच्चाईरिसर्च ने इस बात को साबित कर दिया है कि लगातार प्रैक्टिस करके हम अपनी रीडिंग या पढ़ाई की गति को बढ़ा सकते हैं.   

·         हम 1 मिनट में सीमित संख्या में ही पढ़ पाते हैं शब्द.

सच्चाईलगातार प्रैक्टिस करने पर हम 1 मिनट में लगभग 3000 शब्द पढ़कर उन्हें बेहतर तरीके से समझ भी सकते हैं. 

·         ए-ग्रेड स्टूडेंट बनने पर नहीं मिलता है मौज-मस्ती करने का टाइम.

सच्चाईवास्तव में ए-ग्रेड स्टूडेंट्स अपनी पढ़ाई के साथ-साथ मौज-मस्ती के लिए भी पूरा समय निकालते हैं. असल में, ए-ग्रेड स्टूडेंट्स के जीवन जीने के स्टाइल में काफी अनुशासन और संतुलन होता है. इसलिए, ए-ग्रेड स्टूडेंट्स पढ़ाई के साथ अन्य सभी फ़ील्ड्स जैसेकि, स्पोर्ट्स, डिबेट, प्रोजेक्ट वर्क आदि में भी माहिर होते हैं.   

·         प्रेशर में और एग्जाम के दिनों में होती है अच्छी पढ़ाई. 

सच्चाईविभिन्न रिसर्चेज से यह बात साबित होती है कि अपने एग्जाम्स में अच्छे प्रदर्शन के लिए स्टूडेंट्स को सारा साल नियमित तौर पर पढ़ना होता है. केवल एग्जाम के दिनों में, प्रेशर में पढ़कर आप पास तो हो सकते हैं लेकिन मेरिट लिस्ट में शामिल नहीं हो सकते.  

·         टेक्स्टबुक रखने पर नहीं बनाने पड़ते हैं नोट्स.

सच्चाईअगर हम टेक्स्ट-बुक पढ़ते समय अपने नोट्स बना लें तो वास्तव में हमें अपने सब्जेक्ट मैटर की काफी अच्छी जानकारी मिलती है और समझ बढ़ जाती है. इसलिए हमें अपने नोट्स जरुर बनाने चाहिए.

·         पढ़ाई होती है काफी खर्चीली.

सच्चाईविभिन्न सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में नाममात्र फीस लेकर ही स्टूडेंट्स को काफी अच्छी एजुकेशन उपलब्ध करवाई जाती है. मिड-डे मील, किताबें और स्कूल-ड्रेस भी जरूरतमंद स्टूडेंट्स को उपलब्ध करवाए जाते हैं.

·         साल-भर तैयारी करते रहने से एग्जाम के दिनों में भूल जाते हैं टॉपिक्स.

सच्चाईइसके ठीक विपरीत, अगर स्टूडेंट्स सारा साल अपनी पढ़ाई मन लगाकर करते हैं तो उन्हें अपने सभी सब्जेक्ट्स और टॉपिक्स की काफी अच्छी समझ हो जाती है और वे रट्टे मारे बिना ही एग्जाम्स में काफी अच्छे आंसर्स लिख सकते हैं .

·         कम उम्र में ही पढ़ सकते हैं.

सच्चाईरिसर्चेज से यह बात सामने आई है कि पढ़ने और सीखने की कोई उम्र निश्चित नहीं की जा सकती है. मन लगाकर कोई भी मनुष्य कुछ भी अच्छी तरह पढ़ और सीख सकता है. हमारे देश का ‘लिटरेसी मिशन’ इस बात की गवाही देता है कि सीनियर सिटीजन्स भी काफी अच्छी तरह पढ़ और सीख सकते हैं.

·         कई घंटे लगातार पढ़ने से मिलते हैं अच्छे मार्क्स.

सच्चाईविभिन्न रिसर्चों से यह फैक्ट भी सामने आया है कि, कई घंटे लगातार पढ़ने के बजाए, बीच-बीच में छोटे-छोटे ब्रेक लेकर पढ़ने से स्टूडेंट्स ज्यादा अच्छी तरह अपनी पढ़ाई कर सकते हैं.

·         दिव्यांग और वंचित वर्ग के स्टूडेंट्स की सीखने की क्षमता होती है कम.

सच्चाईपढ़ाई में अच्छी परफॉरमेंस पर स्टूडेंट्स के दिव्यांग या वंचित वर्ग से संबंधित होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. अक्सर दिव्यांग और वंचित वर्ग के स्टूडेंट्स पढ़ाई में काफी अच्छे होते हैं.

·         कंप्यूटर पर बनते हैं बढ़िया नोट्स.

सच्चाईवास्तव में कोई किताब पढ़ते समय जब हम किसी नोट-पैड पर नोट्स बनाते हैं तो वे ज्यादा बढ़िया बनते हैं क्योंकि फिर हमें कंप्यूटर और इंटरनेट पर निर्भर नहीं होना पड़ता है. हम अपना कंप्यूटर अपने एग्जाम हॉल में साथ लेकर भी नहीं जा सकते हैं.

·         एक समय पर एक ही विषय पढ़ना चाहिए और उसे अच्छी तरह समझकर आगे बढ़ना चाहिए.

सच्चाईआजकल मल्टी-टास्किंग का जमाना है और स्टूडेंट्स भी अब एक-साथ कई विषय और टॉपिक्स समझ सकते हैं अर्थात स्टूडेंट्स 2 घंटे के भीतर 3-4 विषय अच्छी तरह पढ़ और समझ सकते हैं.

·         पढ़ाने के लिए अनुभव और डिग्री की नहीं बल्कि केवल कंटेंट नॉलेज की जरुरत होती है.      

सच्चाईयह फैक्ट जग-जाहिर है कि केवल किताबी ज्ञान या कंटेंट नॉलेज नहीं बल्कि अपनी फील्ड में पर्याप्त अनुभव और टीचिंग की डिग्री रखने वाले टीचर्स अक्सर काफी अच्छा पढ़ाते हैं.

 

अब हम अपनी पढ़ाई से जुड़े विभिन्न मिथकों के बारे में जानकारी हासिल कर चुके हैं और हमें वास्तविकता का पता चल चुका है. अब हम उक्त मिथकों को नज़रंदाज़ करके ज्यादा बेहतर तरीके से अपनी पढ़ाई कर सकते हैं और मनचाही फील्ड में अपना शानदार करियर बना सकते हैं.

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