पैशन का एक्शन

Mar 19, 2015, 13:13 IST

बॉलीवुड में सालाना 1000 से अधिक फिल्में बनती हैं. इनमें कई फिल्में 100 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा का कारोबार करती हैं.

बॉलीवुड में सालाना 1000 से अधिक फिल्में बनती हैं। इनमें कई फिल्में 100 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा का कारोबार करती हैं। जाहिर है, इससे इंडस्ट्री को तो फायदा होता ही है, यहां काम करने वाले तमाम प्रोफेशनल्स भी अपनी क्रिएटिविटी और टैलेंट से नेम, फेम ऐंड मनी, तीनों कमाते हैं। अगर आपमें भी है कोई हुनर, तो सिनेमा के मनपंसद क्षेत्र में उड़ान भरने के ढेरों ऑप्शंस हैं। वल्र्ड थियेटर डे पर स्पेशल स्टोरी....

एक्टिंग को जीता हूं

बचपन में डॉक्टर बनने का ख्वाब देखा करता था, लेकिन कुदरत ने मेरे लिए कुछ और लिख रखा था। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने मंडी हाउस स्थित लिटिल थिएटर ग्रुप ऑडिटोरियम (एलटीजी) के साथ काम करना शुरू किया। इसके अलावा काफी फ्रीलांस थियेटर किया। छोटे-छोटे रोल्स किए। इस संघर्ष के दौरान ही मुझे श्रीराम सेंटर रिपर्टरी के साथ जुडऩे का मौका मिला। मैंने इरशाद कामिल के निर्देशन में बोलती दीवारें नामक नाटक किया। इसके अलावा कफन और संध्या छाया जैसे नाटकों से लोगों की सराहना मिली। लेकिन जिंदगी का सबसे यादगार प्रोजेक्ट लेख टंडन के निर्देशन में दूरदर्शन पर आने वाला जागो सीरियल रहा। इसके बाद मैंने फौजी-द आयरन मैन नाम का टीवी सीरियल किया। राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने दिल्ली-6 में एक छोटा-सा रोल दिया था, लेकिन एडिटिंग में वह हिस्सा कट गया। 2012 से मैं मुंबई में हूं। यहां संघर्ष के बाद एक-दो फिल्में मिली हैं, जिनकी शूटिंग चल रही है। मैंने सब कुछ तजुर्बे से सीखा है। किसी संस्था से एक्टिंग की ट्रेनिंग नहींली। हर किरदार का अध्ययन करता हूं, फिर उसके अनुरूप खुद को ढालता हूं।

इस फील्ड में आने वालों से कहना चाहूंगा कि मुंबई का सफर मुश्किल है। अगर फाइनेंशियल स्टेटस सही हो, तभी यहां किस्मत आजमाने आएं, क्योंकि जेब में पैसे नहींहोंंगे तो आत्मविश्वास खोते देर नहींलगेगी। मेरा मानना है कि एक्टिंग में शुरुआत होती है, अंत नहीं। शुरुआत थियेटर से करें, वह आपके अंदर के कलाकार को तराशता है। इसके अलावा ऑब्जर्वेशन पावर बढ़ाएं। जब बेस मजबूत होगा, आपके अंदर कॉन्फिडेंस होगा, तो मौके जरूर मिलेंगे।

डायरेक्शन का हो विजन

दिल्ली की आइपी यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म एवं मास कम्युनिकेशन करने के बाद मैंने एक साल तक कंटेंट राइटिंग में हाथ आजमाया। लेकिन साल 2011 की फरवरी में एक दिन लगा कि मुझे कुछ और क्रिएटिव करना है। मैंने नौकरी छोड़ी और चल पड़ा सपनों की नगरी मुंबई।

संघर्ष के बाद सफलता

मेरा कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहींथा। पिता जी जरूर एनएसडी के ग्रेजुएट थे, लेकिन मुंबई आने के नौ महीने बाद तक कोई काम नहीं मिला। मैं कास्टिंग डायरेक्टर से लेकर दूसरे लोगों को एसएमएस के जरिए अप्रोच करता रहा। फेसबुक के जरिए असिस्टेंट डायरेक्टर्स की कम्युनिटी ज्वाइन की। एक दिन मुझे बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर फिल्म पेडलर में काम करने का मौका मिला। इसके बाद द लंच बॉक्स, खोया, बॉम्बे टॉकीज, तेरे बिन लादेन-2, हवाईजादे, द शौकीन्स जैसी फिल्मों के साथ कारवां बढ़ता गया। इस समय मैं वेल्कम टु कराची फिल्म कर रहा हूं। साढ़े तीन साल में सेकंड एडी बनकर खुश हूं।

पेशंस रखें

फिल्म मेकिंग एक टीम एफर्ट है, जिसका लीडर डायरेक्टर होता है। जबकि एडी, डायरेक्टर के ड्रीम को पर्दे पर साकार करने में सहयोग करता है। एक फिल्म के साथ कई एडी जुड़े होते हैं। हरेक के जिम्मे कोई न कोई डिपार्टमेंट होता है। कोई प्रॉप हैंडल करता है, कोई कॉस्ट्यूम तो कोई रिसर्च। एडी यानी असिस्टेंट डायरेक्टर बनने के लिए आपको मेंटली स्ट्रॉन्ग और पेशंट होना होगा। वैसे, इस कला को सीखने के लिए आप किसी फिल्म इंस्टीट्यूट को ज्वाइन कर सकते हैं। इससे नेटवर्किंग भी बढ़ती है।

दिल को छू ले ऐसा लिखें


दर्शन की किताबें पढ़ें। वेद, उपनिषद, पुराण घोल कर पी लें। रामायण, महाभारत आदि कहानियों को आज के संदर्भ में तब्दील करने की भी कला विकसित करें। ईमानदार रहें और यह जानने की कोशिश करें कि कौन सी चीज लोगों के दिलों को छू सकती है। वह देने की कोशिश करें।

राइटिंग को बनाएं वायबल

मैं जब मुंबई आया था, तो मेरे पास भी कुछ नहीं था। मैं शिक्षकों के परिवार से हूं। हमारे पेरेंट्स ने मुझे किस तरह पढ़ाया, वह मैं ही जानता हूं।

संसाधनों का रोना न रोएं

हर कोई मेरी तरह कष्ट उठाना भी नहीं चाहेगा। मैं दिल्ली में रहता था। 12 लोग एकसाथ एक छोटे से कमरे में रहते थे। मेरी जब शादी होनी थी, तो उस वक्त मेरे पास चारपाई तकनहीं थी। फर्नीचर नहीं थे। उसी दौरान यस चैनल लॉन्च हुआ था। मैंने यह बात किसी को नहीं बताई। मैं ऋणी रहूंगा उस चैनल का। उनके लिए बच्चों का एक सीरियल 'चक्कर फोर' मैंने लिखा था। मैंने 10 दिन के अंदर 13 एपिसोड लिख दिए थे क्योंकि घर के लिए मुझे फर्नीचर खरीदना था। मैंने स्टोरी, स्क्रीनप्ले, डायलॉग सब कुछ ठोंक डाले।

बेसिक रूल्स को आत्मसात करें


साधना हर कोई करता है। जरूरत इस बात की है कि राइटिंग को एकवायबल करियर बनाया जाए।

किताब लिखना और स्क्रीनप्ले लिखना दो अलग-अलग चीजें हैं। वह बुनियादी फर्क समझें। कई किताबों से लेकर इंटरनेट और बाकी जगहों पर स्क्रीनप्ले लिखने के बुनियादी नियम बताए गए हैं। उन्हें आत्मसात करें। दुनियाभर की कल्ट फिल्में व शो देखें। उनसे समझने की कोशिश करें किउन्होंने कैसे स्क्रीनप्ले तैयार किया है। एकअच्छा स्क्रीनप्ले राइटर होने के लिए दिमाग में सीन का अच्छा विजुअल आना जरूरी है।

डबिंग ने संवारा

मैंने मुंबई के एचआर कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया है। इसके बाद 14-15 महीने चीन में जूनियर मर्र्चेंडाइजर के रूप में काम किया। लेकिन संतुष्टि नहींमिल रही थी, तो 2013 में इंडिया वापस आ गया। पहले समझ में नहींआया कि क्या करूं? मेरी आवाज अच्छी थी, तो लोगों ने डबिंग में ट्राई करने का सुझाव दिया। मैंने प्रोडक्शन हाउसेज को अप्रोच करना शुरू किया। कई जगह ऑडिशंस दिए। शुरुआत क्राउड डबिंग और एक-दो लाइंस से हुई। फिर मुझे बाजीगर फिल्म की इंग्लिश डबिंग का काम मिला। इसके बाद मैंने प्यार का पंचनामा जैसी कई बॉलीवुड फिल्मों की इंग्लिश डबिंग की। साथ ही, मराठी और मलयालम फिल्मों की हिंदी डबिंग भी करता हूं। फिल्मों के अलावा एनिमेशन और कॉमर्शियल्स के लिए भी डबिंग करता हूं। इसके लिए मुझे अपनी आवाज पर काफी काम करना होता है। मैं ठंडा बिल्कुल नहींखाता। समय-समय पर गार्गल करता हूं। इन दिनों डबिंग में कॉम्पिटिशन काफी बढ़ गया है। ऐसे में जो लोग काम के प्रति डेडिकेटेड हैं, उन्हें प्रोजेक्ट्स मिलते रहते हैं। एक सफल डबिंग आर्टिस्ट बनने के लिए सबसे जरूरी है, प्रोफेशन की बारीकियों को समझना। कैरेक्टर्स यानी किरदारों के हाव-भाव को पढऩा आना चाहिए, क्योंकि फिर उससे अपनी आवाज को मैच कराना होता है। इस क्रम में आपको बार-बार री-टेक भी करने पड़ सकते हैं। ऐसे में अपना कॉन्फिडेंस कभी नहींखोना चाहिए। आवाज का धनी कोई भी शख्स इस इंडस्ट्री में करियर बना सकता है। शुरुआत बेशक कम पैसे से हो, लेकिन परफॉर्र्मेंस और अच्छे ब्रेक्स के साथ कीमत बढ़ जाती है।

'काइ पो चे','हाइवे', 'विकी डोनर', 'शाहिद', 'स्लमडॉग मिलिनेयर' आदि फिल्मों की एक अहम धुरी उनके कास्टिंग डायरेक्टर रहे हैं। रणवीर सिंह और ताहिर भसीन शानु शर्मा की खोज हैं, जबकि सुशांत सिंह राजपूत, राजकुमार राव और हाइवे के दुर्गेश कुमार जैसे असाधारण कलाकार मुकेश छाबड़ा की।

इमेजिनेशन का काम

मैंने बतौर कास्टिंग डायरेक्टर काम नहीं शुरू किया था। मैं फिल्म मेकिंग से जुड़ा हूं। मैंने विशाल भारद्वाज के साथ बतौर एसोसिएट डायरेक्टर उनकी सभी फिल्मों में काम किया है। मैंने दिल्ली में प्ले भी निर्देशित किया। स्क्रिप्ट लिखने से पहले कहानी कही जाती है। फिर स्क्रीनप्ले और डायलाग लिखा जाता है। स्क्रीन प्ले को ड्राफ्ट करते समय कैरेक्टर क्लियर हो जाते हैं।

कैसे बनें

जैसे डॉक्टर बनने के लिए पढ़ाई की जरूरत है, ठीक उसी तरह स्पेशलाइज्ड जॉब के लिए खास तैयारी की जरूरत होती है।

जरूरी स्किल्स

इसके लिए एक्टिंग की बारीकियों, स्क्रिप्ट की समझ और फिल्ममेकर्स के साथ अंडरस्टैंडिंग होना जरूरी है। साथ ही, साहित्यिक बैकग्राउंड होना भी जरूरी है।

कोर्स

कास्टिंग डायरेक्टर बनने के लिए फिलहाल कोई कोर्स उपलब्ध नहीं है।

इमेज नहीं क्रिएटिविटी का काम


पर्दे के पीछे काम करने वालों को इमेज नहीं बनानी होती। यही वजह है किवे क्रिएटिव होते हैं। पर्दे के पीछे रहने वाले लोग ग्लैमर के लिए नहीं आते। वे अपनी क्रिएटिविटी से ही पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाते हैं।

सिनेमेटोग्राफी का जलवा


बचपन से ही मुझे स्टोरी राइटिंग का शौक था। छोटी क्लासेज में एसे लिखने को दिया जाता था, तो मैं स्टोरीज लिखती थी, वो भी विजुअलाइज करके।

चुपके-चुपके थियेटर

हाईस्कूल के दौरान इलाहाबाद के जवाहर बाल भवन ने जैसे मेरी क्रिएटिविटी को पंख लगा दिए। फिर बाबा कारत का थियेटर वर्कशॉप ज्वाइन किया। हालांकि, पापा इसके बिल्कुल खिलाफ थे। फिर भी मैं चुपके-चुपके थियेटर करती रही।

स्टोरी को रिएलिटी बनाने का सपना

मैं अपनी स्टोरीज को पर्दे पर साकार होते देखने का सपना देखने लगी। जब अपने ही जैसे कई साथियों से मिली, तो समझ में आया कि थियेटर के आगे भी दुनिया है, वहां भी जाया जा सकता है। फिर मेरा सलेक्शन मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में हो गया। वहां से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने एफटीआइआइ, पुणे में एडमिशन लिया।

नया रास्ता, सही मंजिल

मेरे सामने एडिटिंग, एक्टिंग, कैमरा, कई सारे ऑप्शंस थे, पर मैंने सिनेमेटोग्राफी चुना। मुझे उसे रास्ते पर आगे बढऩा था, जिस पर मैं बचपन से चलना चाहती थी। कोर्स के दौरान ही कई सारे ब्रेक मिले। मेरी एक शॉर्ट फिल्म को दुबई फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड मिला। कोर्स पूरा करने के बाद पहला बड़ा एसाइनमेंट मुझे मिला फिल्म डी-डे में। फिर मैं नहींरुकी।

कैसे बनें सिनेमेटोग्राफर

सिनेमेटोग्राफर पूरी कैमरा टीम का डायरेक्टर होता है। इसका कोर्स ग्रेजुएशन के बाद किया जा सकता है। सिनेमेटोग्राफी का तीन साल का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे से किया जा सकता है।

काफी कुछ स्क्रिप्ट और ऑडिशन पर निर्भर

हमारा काम स्क्रिप्ट मिलने के बाद शुरू होता है। एक फिल्म की कास्टिंग में अमूमन पांच मिनट से लेकर दो-तीन महीने का समय लगता है। यह सब काफी कुछ स्क्रिप्ट और ऑडिशन पर निर्भर करता है। मेरी कंपनी में बिना फीस के ऑडिशन ली जाती है।

एक्टर के बाद अगर फिल्मों में कोई ग्लैमरस करियर है, तो वह है प्लेबैक सिंंिगंग, म्यूजिक और डांस डायरेक्शन। इन दिनों म्यूजिकल और डांस के टैलॅन्ट हंट शो के प्रति यूथ में जबर्दस्त क्रेज देखा जा रहा है।

टैलेंट हंट शो अच्छा प्लेटफॉर्म

पांच-छह साल की उम्र से ही बच्चों में ऐसे शोज में जीतने की होड़ मचने लगी है। अभिजीत हों, सुनिधि चौहान, श्रेया घोषाल, शान या अरिजीत सिंह...ऐसे अनगिनत नाम हैं जो ऐसे ही टैलेंट हंट शो के पार्टिसिपेंट्स रहे हैं। ऐसे में ये शोज करियर के लिए बेहतरीन रास्ते के रूप में सामने आए हैं।

स्किल्स

अगर आपमें सिंगिंग, म्यूजिक या डांस का नेचुरल टैलेंट है, तो यह आपके लिए एक गिफ्ट है, लेकिन नियमित रियाज के साथ-साथ ट्रेनिंग या फिर किसी अच्छे इंस्टीटयूट में एडमिशन लेकर भी इस फील्ड में करियर की शुरुआत की जा सकती है।

कोर्स एवं ट्रेनिंग

बारहवीं के बाद सर्टिफिकेट कोर्स, बैचलर कोर्स, डिप्लोमा कोर्स और पोस्ट ग्रेजुएट लेवॅल के कोर्स में एडमिशन लेकर आगे बढ़ सकते हैं।

इंस्टीट्यूट

-दिल्ली यूनिवर्सिटी

-अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय, मुंबई -पटना यूनिवर्सिटी

-भातखंडे म्यूजिक स्कूल, नई दिल्ली

- इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, मप्र

-अजमेर म्यूजिक कॉलेज एनिमेशन का बढ़ा ट्रेंड

हॉलीवुड की तर्ज पर इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में भी एनिमेशन मूवीज बनाने का ट्रेंड चल पड़ा है। निखिल आडवाणी, तरुण मनसुखानी, चेतन देसाई, जुगल हंसराज, अर्नब चौधरी, अनुराग कश्यप सरीखे निर्देशक एनिमेटेड मूवीज डायरेक्ट कर रहे हैं। वहीं, अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, काजोल, शाहरुख खान, अक्षय कुमार, विद्या बालन, रानी मुखर्जी, सैफ अली खान, करीना कपूर जैसे बॉलीवुड के नामचीन सितारे एनिमेटेड कैरेक्टर्स को अपनी आवाज दे रहे हैं। फिल्मों के अलावा टीवी और विज्ञापनों में भी एनिमेशन का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है। यही कारण है कि इंडियन एनिमेशन और ग्राफिक्स इंडस्ट्री करीब 18.5 फीसदी की दर से आगे बढ़ रही है और यहां जॉब के नए और आकर्षक अवसर क्रिएट हुए हैं।

एनिमेशन फिल्म मेकिंग

इस इंडस्ट्री में करियर बनाने के लिए सॉफ्टवेयर की नॉलेज तो पहली प्राथमिकता है। लेकिन आपको कहानी के अनुरूप किरदारों को स्क्रीन पर पेश करने की कला आनी चाहिए। इसके लिए आप चाहें,तो एनिमेशन फिल्म मेकिंग का कोर्स कर सकते हैं। एरिना मल्टीमीडिया, माया एकेडमी ऑफ सिनेमेटिक्स जैसे कई संस्थान एक साल से लेकर शॉर्ट टर्म कोर्स संचालित करते हैं। इसमें आपको स्टोरी बोर्र्डिंग, आर्ट डायरेक्शन, कैरेक्टर डिजाइन, विजुअलाइजेशन, मॉडलिंग, 3-डी एनिमेशन, लाइटिंग आदि प्री-प्रोडक्शन और डिजिटल फिल्म मेकिंग की प्रक्रिया से रूबरू कराया जाता है।

ग्रोइंग इंडस्ट्री


एक अनुमान के अनुसार, साल 2016 तक इंडियन एनिमेशन प्रोडक्शन इंडस्ट्री करीब 540 करोड़ रुपये के आसपास पहुंच जाएगी। इस तरह फिल्मों के अलावा मीडिया रिलेटेड हर सेक्टर में एनिमेशन एक्सपर्ट की जरूरत होगी। ऐसे में आप अपने क्रिएटिव और टेक्निकल स्किल्स की बदौलत इस डायनामिक इंडस्ट्री का हिस्सा बन सकते हैं। शुरुआत किसी शॉर्ट फिल्म से कर सकते हैं।

स्केचिंग पर देना होगा जोर


एनिमेशन ऐंड ग्राफिक्स इंडस्ट्री में कॉम्पिटिशन दिनों-दिन बढ़ रहा है। इसलिए आपको इनोवेटिव होना होगा। रोजाना कम से कम 500 स्केच बनाने होंगे। वहीं, प्री-प्रोडक्शन पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। इसके साथ ही फील्ड की पूरी नॉलेज रखनी होगी।

वीडियो एडिटिंग

टीवी स्क्रीन से लेकर ग्लैमर स्क्रीन तक, हर जगह तस्वीरों का बोलबाला है। इन तस्वीरों को पॉलिश कर आपके सामने पेश करता है वीडियो एडिटर। एक सर्वे के मुताबिक 2020 तक 1 लाख से अधिक ट्रेन्ड वीडियो एडिटर्स की डिमांड होगी।

क्या है एडिटिंग

रिकॉर्डेड वीडियो को एडिट करने वाले को वीडियो एडिटर कहा जाता है। यूं तो दो तरह से वीडियो एडिटिंग का काम किया जाता है। एक लीनियर एडिटिंग और दूसरी नॉन-लीनियर एडिटिंग। लीनियर एडिटिंग तकनीकी फिल्मों के लिए की जाती है।

कोर्स

-सर्टिफिकेट कोर्स इन नॉन-लीनियर एडिटिंग

-डिप्लोमा इन वीडियो एडिटिंग ऐंड साउंड रिकॉर्डिंग -डिप्लोमा इन पोस्ट प्रोडक्शन वीडियो एडिटिंग

एलिजिबिलिटी

-12वीं के बाद ही रास्ते खुले हैं। डिग्री-डिप्लोमा के लिए किसी भी सब्जेक्ट में ग्रेजुएट होना जरूरी है।

स्किल्स

-सीन की जरूरत मुताबिक कल्पनाशील हो।

-लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से लगातार अपडेट रहे।

इंस्टीट्यूट वॉच


-फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे, www.ftiindia.com

-आइआइएमसी, जेएनयू न्यू कैम्पस, नई दिल्ली www.iimc.nic.in

-सत्यजित रे फिल्म ऐंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट, कोलकाता, www.srfti.gov.in

पर्दे पर जबरदस्त लुक में दिख रहे नायक और नायिकाओं के पीछे दरअसल मेकअपमैन और कॉस्ट्यूम डिजाइनर का काम होता है। ये दोनों ही प्रोफेशनल्स अपने हुनर की बदौलत आम से दिखने वाले एक्टर को स्टार बना देते हैं।

मेक-अप मैन सुरेश ठाकुर बताते हैं, मेरा बचपन से ही फिल्मों में बहुत इंट्रे्स्ट था। अपने बड़े भाई के गाइडेंस में मैंने मेक-अप और हेयर स्टाइल के तमाम स्किल्स सीखे। पहले न्यूज चैनल्स में एंकर्स के मेक-अप से करियर की शुरुआत की। लाइटिंग और स्किन के हिसाब से किस तरह का मेक-अप देना है, इस पर काफी वर्क किया। फिर धीरे-धीरे मुझे फिल्मों मेंं भी ऑफर मिलने लगे। भाग मिल्खा भाग जैसी कई बड़ी फिल्मों में भी काम करने का मौका मिला।

वहींकॉस्ट्यूम डिजाइनर शिव आर्य बताते हैं, पढ़ाई में मेरा मन ज्यादा नहीं लगा। फिल्में मुझे बहुत अट्रैक्ट करती थीं। बड़ा मन करता था फिल्मों में काम करने का। बड़ा हुआ, तो मेरे अंकल ने मेकअप आर्टिस्ट का काम सिखाया। उस समय कोई इंस्टीट्यूट या कोर्स नहींहोता था। आज तो कई सारे खुल गए हैं। कई साल काम करने के बाद मैंने कुछ नया करने की सोची और कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग का काम सीखा। इसमें फिल्म का सीन आपको इमेजिन करके यह तय करना पड़ता है कि कौन-सा ड्रेस कैरेक्टर पर सटीक बैठेगा.

Jagran Josh
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Education Desk

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