श्रीलंका ने संयुक्त राष्ट्र मानावाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) की अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग को 25 फरवरी 2014 को ठुकरा दिया. इस अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के उच्चायुक्त नवी पिल्लै ने श्रीलंका में गृहयुद्ध के बाद की स्थिति पर आई रिपोर्ट के बाद की थी.
पिल्लै ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि श्रीलंका युद्ध के बाद बढ़ते अंतरराष्ट्रीय आरोपों की जांच करने में विफल रहा है. इस रिपोर्ट में मानवाधिकार और मानवीय कानून के सभी कथित उल्लंघन के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय टीम की निगरनी में स्वतंत्र, विश्वसनीय आपराधिक और फॉरेंसिक जांच की सिफारिश की गई है. रिपोर्ट में सच्चाई का पता लगाने और भूतपूर्व युद्ध क्षेत्रों से सैनिक हटाने के लिए श्रीलंकाई सरकार से आग्रह भी किया गया है. अल्पसंख्यकों ,मीडिया और मानवाधिकार रक्षकों पर हमला करने वालों को गिरफ्तार कर दंडित किए जाने की बात भी रिपोर्ट में कही गई है.
श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंदाराजपक्षे प्रशासन ने नवी पिल्लै की रिपोर्ट को एकपक्षीय, अनुचित रुप से दखल देने वाला और राजनीतिक प्रकृति का बता कर खारिज कर दिया है.
एक अन्य घटनाक्रम में यूएनएचसीआर द्वारा श्रीलंका में कथित अत्याचारों और गृह युद्ध के दौरान प्रतिबद्ध युद्ध अपराधों की जांच की विफलता पर अमेरिका एक प्रस्ताव लाने की योजना बना रहा है. इससे पहले भी अमेरिका दो ऐसे प्रस्तावों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है जिसमें श्रीलंकाई सरकार ने अपने सरकारी सैनिकों के खिलाफ लगे आरोपों की खुद ही जांच की थी.
पृष्ठभूमि
वर्ष 2009 में श्रीलंका के सरकारी सैनिकों और तमिल विद्रोहियों ( लिट्टे) के बीच चल रहा गृह युद्ध समाप्त हो गया. लिट्टे उत्तर और पूर्वी श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर संघर्ष कर रहा था. सरकारी सैनिकों ने तमिल टाइगर विद्रोहियों को कुचल डाला. हाल ही में उनके सामूहिक कब्र का भी पता चला है.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 40000 तमिल नागरिक सरकारी हमले में मारे गए हैं जबकि श्रीलंकाई सरकार इससे इंकार कर रही है और बाद में श्रीलंकाई सरकार ने घोषणा की कि इस युद्ध में एक भी नागरिक नहीं मारा गया. वर्ष 2011 में श्रीलंका ने कुछ नागरिकों की मौत को स्वीकार किया और युद्ध में मारे गए लोगों की जनगणना की घोषणा की लेकिन उसका परिणाम बेहद अस्पष्ट था.
सरकारी सैनिकों पर जानबूझकर नागरिकों, अस्पतालों पर गोलीबारी करने और हजारों लोगों तक खाद्य सामग्री और स्वास्थ्य सेवाएं न पहुंचने देने का आरोप लगाया गया था. विद्रोहियों पर लोगों को अपनी सुरक्षा ढाल के रूप में पकड़ने, उनके नियंत्रण से भागने की कोशिश करने वालों की हत्या करने और बाल सैनिकों की भर्ती का भी आरोप लगाया गया.
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