ब्रह्मांड के घटक : तारे, तारामंडल व आकाशगंगा

Feb 19, 2016, 16:19 IST

बिंग बैंग सिद्धांत के अनुसार हमारा ब्रह्मांड 15 अरब वर्ष पुराना है और हमारा ग्रह पृथ्वी करीब 4.5 अरब  वर्ष पहले अस्तिव में आया था | वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर जीवन का आरंभ करीब 3.5 अरब वर्ष पहले हुआ था। तारे गर्म गैसों के बहुत बड़े पिंड होते है और उनसे आग की बहुत बड़ी– बड़ी लपटें निकलती रहती हैं। साथ ही यह बहुत बड़ी मात्रा में ताप और प्रकाश का भी विकिरण करते हैं। सूर्य मिल्की वे (आकाशगंगा) के अनेक तारों में से सिर्फ एक तारा है।

यह माना जाता है कि हमारा ग्रह पृथ्वी करीब 4.5 अरब  वर्ष पहले अस्तिव में आया था | वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर जीवन का आरंभ करीब 3.5 अरब वर्ष पहले हुआ था।

तारे

तारे गर्म गैसों के बहुत बड़े पिंड होते है और उनसे आग की बहुत बड़ी– बड़ी लपटें निकलती रहती हैं। साथ ही यह बहुत बड़ी मात्रा में ताप और प्रकाश का भी विकिरण करते हैं। इसलिए उनके पास खुद का ताप और प्रकाश होता है। तारों की दूरी प्रकाश वर्ष में मापी जाती है। एक प्रकाश वर्ष का अर्थ होता है- एक वर्ष में प्रकाश द्वारा तय की जाने वाली दूरी। प्रकाश की गति से 3,00,000 किमी/से. होती है| प्रकाश वर्ष दूरी की इकाई है और इसका मान 9,460,000,000,000 किमी या 9.46x1012 किमी. के बराबर होता है।

तारे का रंग उसके सतह के तापमान से निर्धारित होता है। कम तापमान वाले तारे लाल रंग के दिखते हैं, अधिक तापमान वाले तारे सफेद और बहुत अधिक तापमान वाले तारे नीले रंग के दिखाई पड़ते हैं। सूर्य समेत सभी तारे किसी–न–किसी खगोलीय पिंड या पिंडों के समूह के इर्द–गिर्द बहुत तीव्र गति से परिक्रमा करते हैं। हालांकि, पृथ्वी से देखने पर बहुत अधिक गति होने के कारण किन्हीं भी दो तारों के बीच की दूरी बदलती हुई नहीं प्रतीत होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तारे हमसे बहुत दूर स्थित हैं और उनके बीच की दूरी में किसी भी प्रकार का बदलाव को बहुत लंबे समय बाद ही महसूस किया जा सकता है|

तारे पूर्व से पश्चिम की तरफ घूमते प्रतीत होते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पृथ्वी अपने केंद्र के मध्य से गुजरने वाले काल्पनिक अक्ष पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूमती है। पृथ्वी 24 घंटों में एक परिक्रमा पूरी कर लेती है और तारे भी। इसलिए एक तारा, चार मिनटों में करीब एक डिग्री कोणीय दूरी  तय करता है। चूंकि तारे हर दिन चार मिनट पहले उगते है इसलिए वे पिछले दिन की तुलना में आसमान में एक डिग्री ऊँचे दिखाई देते हैं। इस तरह एक महीने में वे 30 डिग्री तक उपर उठ जाते हैं और 6 महीनों में वे 180 डिग्री तक आगे बढ़ जाएंगे और पश्चिमी क्षितिज के करीब होंगे। इसलिए तारामंडल/नक्षत्र (Constellations) भी पश्चिम की ओर बढ़ता है।

हालांकि एक तारा है जो हमें हमेशा स्थिर दिखाई देता है, इसे पोल स्टा या ध्रुव तारा कहते हैं। उत्तरी तारा या पोलरिस उत्तर की ओर इशारा करता है क्योंकि इसे हमेशा उत्तरी ध्रुव के उपर देखा जा सकता  है। यह पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के करीब स्थित होने के कारण यह अन्य तारों की तरह घूमता हुआ प्रतीत नहीं होता है । वास्तव में, सभी तारे पोल स्टार/ ध्रुव तारा के चारों तरफ घूमते दिखाई देते हैं। ध्रुव तारा दक्षिणी गोलार्द्ध से दिखाई नहीं देता है । कुछ अन्य उत्तरी तारामंडलों/नक्षत्रों, जैसे अर्सा मेजर, को भी दक्षिणी गोलार्द्ध के कुछ स्थानों से नहीं देखा जा सकता है।

तारों की उम्र लाखों– करोड़ों वर्ष होती है और ज्यादातर तारे संलयन प्रक्रिया द्वारा अपनी ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। जब एक तारा अपने केंद्र में उपस्थिति सम्पूर्ण हाइड्रोजन का उपयोग कर लेता है, तब वह कार्बन में हीलियम को मिलाना/संलयित करना  शुरु कर देता है। अगर एक तारे का द्रव्यमान ,सौर द्रव्यमान का सिर्फ कुछ गुणा हो, तो संलयन की यह प्रक्रिया तारे तक ही सीमित रहती है। तारे के भीतर ऊर्जा के उत्पादन के बंद होते ही ये सिकुड़ जाता है। इसका घनत्व बहुत अधिक हो जाता है और यह श्वेत वामन तारा (white dwarf star) बन जाता है।

श्वेत वामन तारे का आकार एक ग्रह के बराबर होता है। ऐसे तारों का द्रव्यमान हमेशा सूर्य के द्रव्यमान के करीब 1.44 गुने से  कम होता है। इस सीमा को एक भारतीय एस. चंद्रशेखर ने सिद्ध किया था, इसलिए इसे चंद्रशेखर सीमा कहा जाता है। एक श्वेत वामन तारा मृत तारा होता है, क्योंकि संलयन की प्रक्रिया द्वारा यह स्वयं की ऊर्जा का उत्पादन नहीं करता है। यह अपने जीवनकाल के दौरान खुद में संचित ताप के विकिरण से चमकता है।

बड़े श्वेत वामन तारे सुपरनोवा की तरह विस्फोट करते हैं और अपने आकार के अनुसार न्यूट्रॉन स्टार या ब्लैक होल (जिसमें गुरुत्वाकर्षण की शक्ति इतनी अधिक होती है कि प्रकाश भी उसमें से बाहर नहीं आ सकता) बन जाता है।

तारामंडल

तारों के समूह जो अलग– अलग प्रकार की आकृति बनाते हैं, तारामंडल कहलाते हैं। लघु सप्तऋषि या अर्सा माइनर इसी प्रकार का एक तारामंडल है। वृहद सप्तऋषि, जिसे अर्सा मेजर भी कहा जाता है, दूसरे तारामंडल में स्थित सात तारों का समूह है। यह बिग बीयर तारामंडल के एक हिस्से का निर्माण करता है। गर्मी के मौसम में पूर्व-रात्रि में इसे देखा जा सकता है।

रियन या मृग भी एक प्रसिद्ध तारा समूह है, जिसे सर्दियों के के मौसम में देर रात को देखा जा सकता है। आसमान का सबसे बड़ा तारा, स्टार सिरियस ओरियन के करीब स्थित है। उत्तरी आसमान में दिखाई देने वाला एक और प्रमुख तारा– समूह है –कैसियोपिया । यह सर्दियों के मौसम में रात के शुरु होने पर दिखाई देता है।

एक तारा समूह में सिर्फ 5–10 तारे ही नहीं होते हैं बल्कि इसमें बहुत बड़ी संख्या में तारे होते हैं। हालाँकि हम अपनी नंगी आंखों से तारासमूह के सिर्फ कुछ चमकीले तारों को ही देख सकते हैं। तारामंडल का निर्माण करने वाले सभी तारे एक ही दूरी पर स्थित नहीं होते हैं।

आकाशगंगा

आकाशगंगा तारों की एक व्यवस्था है जिसमें बड़ी संख्या में गैस के बादल पाये जाते हैं, जिनमें से कुछ तो  बहुत विशाल  होते हैं। गैस के बने इन्हीं बादलों में नए तारों का जन्म होता है और गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा ये आपस में जुड़े रहते हैं। एक आकाशगंगा में एक दूसरे के करीब रहने वाले अरबों तारे शामिल होते हैं और ब्रह्मांड में ऐसी अरबों आकाशगंगाएं हैं। कुछ आकाशगंगाएं आकार में सर्पिलकार हैं और तो कुछ अण्डाकार। हालांकि, कुछ ऐसी आकाशगंगाएं भी हैं जिनका कोई निश्चित आकार नहीं है।

हमारी आकाशगंगा आसमान के एक छोर से दूसरी छोर की ओर बहने वाली प्रकाश की नदी के समान दिखती है। इसलिए इसे मिल्की वे गैलेक्सी कहा जाता है। यह आकार में सर्पिलाकार  है। भारत में इसे आकाशगंगा के नाम से जाना जाता है। मिल्की वे गैलेक्सी अपने केंद्र पर बहुत धीमी गति से घूर्णन कर रही है। सौर प्रणाली के साथ सूर्य भी आकाशगंगा के केंद्र के चारो तरफ घूमता है। एक परिक्रमा पूरा करने में करीब 250 मिलियन वर्ष लग जाते हैं। हमारा सूर्य मिल्की वे गैलेक्सी में मौजूद अनेक तारों में से सिर्फ एक तारा है। सूर्य आकाशगंगा के केंद्र से करीब 30,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है।

बीसवीं सदी के आरंभ में, अमेरिकी खगोल विज्ञानी एडविन हबल (1889– 1953) ने यह बताया था कि अन्य सभी आकाशगंगाएं हमारी आकाशगंगा से दूर जा रही हैं। जिस वेग के साथ वे हमसे दूर जा रही हैं, हमसे दूरी बढ़ने के साथ उसमें बढ़ोतरी हुई है। हमसे दूर वाली आकाशगंगाओं की गति ने ब्रह्मांड के विस्तार के विचार को जन्म दिया है। इस समय अगर सभी आकाशगंगाएं एक दूसरे से दूर जा रही हैं, इसका मतलब है कि अतीत में एक समय ऐसा भी रहा होगा जब सभी आकाशगंगाएं एक ही स्थान पर एक साथ रही हों।

उस समय पूरे ब्रह्मांड का विस्तार क्षेत्र छोटा था। उस समय हुई घटना जिसने आकाशगंगाओं को एक दूसरे से दूर करने का काम किया उसे बिग बैंग कहते हैं। माना जाता है कि उस समय एक बहुत बड़ा विस्फोट हुआ होगा और तब से ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है।

एक अनुमान के अनुसार यह घटना करीब 15 अरब वर्ष (15x109) पहले हुई थी। इसका अर्थ है कि ब्रह्मांड करीब 15 अरब वर्ष पुराना है। कुछ वैज्ञानिक ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि ब्रह्मांड हर समय और हर बिन्दु पर एक जैसा ही दिखता है। उनके अनुसार ब्रह्मांड बदल नहीं रहा है, इसका कोई आरंभ नहीं हुआ और न ही कोई अंत होगा। इस सिद्धांत को स्थिर अवस्था (Steady State) कहते हैं।

Image Courtesy:www. blogspot.com,www.ifa.hawaii.edu, www.upload.wikimedia.org

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