राष्ट्रीय विधि दिवस

26 नवंबर 1949 के पश्चात करीब 30 वर्षों बाद भारत के उच्चतम न्यायालय के बार एसोसिएसन ने 26 नवम्बर की तिथि को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में घोषित किया था.

यह दिवस प्रति वर्ष 26 नवम्बर को आयोजित किया जाता है. ध्यान रहे कि इसी दिन वर्ष 1949 में संबिधान सभा नें भारत के संविधान को अपनाया था. 

राष्ट्रीय विधि दिवस का इतिहास

26 नवंबर 1949 के पश्चात करीब 30 वर्षों बाद भारत के उच्चतम न्यायालय के बार एसोसिएसन ने 26 नवम्बर की तिथि को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में घोषित किया था. तब से प्रति वर्ष यह दिवस पूरे भारत में राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है. विशेषकर विधिक बंधुत्व को बढ़ावा देने या इस तरह की विचारधारा को फैलाने के लिए इस दिवस का महत्व है. वस्तुतः यह दिवस संबिधान को निर्मित करने वाली संबिधान सभ के उन 207 सदस्यों के अतुलनीय योगदान को देखते हुए और उन्हें सम्मान देने के लिए आयोजित किया जाता है.

वर्ष 2013 में भारतीय राष्ट्रीय बार एसोसिएसन नें दो दिवसीय(आईएनबीए) 26 और 27 नवम्बर को भारतीय अंतर्राष्ट्रीय केंद्र नें एक अंतर्राष्ट्रीय बैठक आयोजित की थी और इन दो दिवसों को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में आयोजित किया था. इस सम्मलेन में सम्माननीय न्यायधीश वर्ग, वरिष्ट सरकारी अधिकारी, फार्च्यून 500 कम्पनियों के वकीलों नें भी भाग लिया था. इसके अलावा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की विधिक कम्पनियों नें  भी इस सम्मलेन में  भाग लिया था. इस सम्मलेन का मूल उद्देश्य औद्योगीकरण से जुड़े विधिक वर्गों को एक आधार प्रदान करना था. इसके अलावा इस सम्मलेन में बहुत सारे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों से जुड़े विधिक पहलुओं पर भी चर्चा की गयी थी.

राष्ट्रीय विधि दिवस का उद्देश्य

भारत के उच्चतम न्यायलय के बार एसोसिएसन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के अनुसार भारत का उच्चतम न्यायलय मानवाधिकारों और शांति को बनाये रखने में संबिधान का रक्षक है. यह सर्वदा समाज में हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों में अपनी सहभागिता अदा करता है. साथ ही समाज के मूल कर्तव्यों को भी आगे बढाने में सहभागी होता है, और इसके उद्देशों को गति प्रदान करता है. यह विधि के नियमों को स्थापित करने के साथ-साथ लोकतंत्र का रक्षक भी होता है और मानवाधिकारों की रक्षा भी करता है. संबिधान के अनुच्छेद 21 के तहत इस सन्दर्भ में बहुत सारी जानकारियां दी गयी हैं. साथ ही विधि के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को भी परिभाषित किया गया है.

भारत के उच्चतम न्यायलय नें धर्म-निरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा की है, साथ ही सभी धर्मों, सम्प्रदायों एवं  जातियों एवं उनके समुदायों का सम्मान भी किया है. संबिधान के अंतर्गत न्यायपालिका एक स्वतंत्र निकाय है. इस सन्दर्भ में यह संबिधान प्रदत्त कानून एवं कार्यकारी अधिकारों को धारण करते हुए एक चुकसी करने वाला अधिकारी (विजिलेंस आफिसर) है. सबसे अहम् भूमिका के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायलय संविधान की रक्षा करने वाले निकाय के रूप में निभाता है. यह राज्य के तीन स्तंभों (कार्यपालिका,विधायिका और न्यायपालिका) में से एक है.

संविधान के साथ कानून का एकीकरण

सुप्रीम कोर्ट (एससी) संविधान के लक्ष्यों का समर्थन करता है. उच्चतम न्यायालय संविधान का रक्षक और संविधान में निर्धारित सिद्धांतों, मानव-अधिकार, और शांति की रक्षा करता है. इसने सर्वदा समाज में हो रहे परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की और अपनी गति के साथ समाज को एक व्यवस्था प्रदान की है. इसने लोकतंत्र, मानव अधिकारों की रक्षा करने और कानून के शासन का सम्मान करने के लिए भी कई बार हस्तक्षेप किया है. संविधान के अनुच्छेद 21 के माध्यम से, इस सन्दर्भ में बहुत सारी जानकारियाँ दी गयी हैं. साथ ही विधि के उद्देश्यों की स्पष्ट व्याख्या की गयी है.

उच्चतम न्यायालय नें धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों की रक्षा की है और सभी जाति और धर्मों की भावनाओं का सम्मान भी किया है. संविधान की योजना के तहत कोई कोर्ट एक स्वतंत्र न्यायपालिका होता है. इसने विभिन्न विधायी और कार्यकारी निर्देशों के माध्यम से एक सतर्क अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए में एक अच्छी भूमिका निभाई है.

वर्तमान में भारतीय न्यायपालिका संवैधानिक लोकतंत्र का महत्वपूर्ण आधार है. 26 जनवरी 1950 को भारत के उच्चतम न्यायलय के उद्घाटन समारोह पर भारत के प्रथम मुख्य न्यायधीश हीरालाल जे कानिया का संबोधन आज भी यादगार संबोधन के रूप में जाना जाता है. उनके यादगार संबोधन (भाषण) को आज भी प्रत्येक विधि दिवस के समारोह में याद किया जाता है.

भारत के संबिधान नें 26 जनवरी 1950 को 284 सदस्यों के हस्ताक्षर के पश्चात् कार्य करना आरम्भ किया था. तबसे 63 वर्षों तक का इसका(संविधान) सफ़र अत्यंत दिलचस्प भरा रहा है. इस सविधान नें संविधान सभ के सदस्यों के संगठनों और उनके अधिकारों की रक्षा की थी.

भारत में नियमों को कार्यरूप प्रदान करने के लिए अनेक निकाय कार्य करते हैं. भारत के संविधान नें राज्यों एवं केंद्र-शासित प्रदेशो को अनेकों अधिकार प्रदान किया है. बहुत सारी संस्थाएं (एजेंसिया) भारत के गृह मंत्रालय से जुडी हुई हैं जोकि संघीय स्तर पर राज्यों एवं केंद्र-शासित प्रदेशो को भी उनके अधिकारों एवं कार्यों एवं कर्तव्यों के सन्दर्भ में मदद करती है,

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

• भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है.
• भारतीय दंड संहिता 1860 में अंग्रेजों द्वारा निर्धारित किया गया था जोकि भारत में आपराधिक कानून का आधार है. 1973 मे निर्धारित  दंड प्रक्रिया संहिता, आपराधिक कानून की के प्रत्येक पहलुओं को अपने तरीके से नियंत्रित करता है और दिशा-निर्देशित करता है.
• भारतीय कंपनी कानून वर्तमान में अद्यतन हो चुका है अतः इसका नाम बदलकर कंपनी अधिनियम 2013 कर दिया गया है.

 

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