अयोध्या में भगवान श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा जनवरी में गई थी, जिसके बाद 22 जनवरी, 2024 का दिन सदा के लिए इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया था। इसके साथ ही करोड़ों लोगों का वर्षों का इंतजार भी खत्म हो गया था। इस बीच मंदिर निर्माण में प्रत्येक चीज का बहुत बारीकी से ध्यान रखा गया है।
इस कड़ी में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का स्थान इस तरह से बनाया गया है कि प्रत्येक राम नवमी यानि कि राम के जन्म के अवसर पर भगवान श्रीराम का तिलक सूर्य की किरण से हो सके। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए धर्म के साथ विज्ञान को भी जोड़ा गया है। इसकी मदद से श्रीराम के मस्तक पर 75 मीमी का सूर्य तिलक किया गया है। इसके लिए दोपहर 12 बजे का समय चुना गया था। क्या है पूरी प्रक्रिया, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
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हिंदू धर्म में माथे पर तिलक लगाने की परंपरा
सनातन धर्म में माथे पर तिलक लगाने की परंपरा है। यह परंपरा पुरातन परंपरा है, जो वर्षों से चली आ रही है। विशेष अनुष्ठान समेत अन्य अवसरों पर माथे पर रोली या चंदन से तिलक लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि माथे पर तिलक लगाने से सकारात्मकता आती है। ऐसे में लोगों द्वारा उपासना के बाद प्रतिदिन तिलक लगाया जाता है।
किसने तैयार की है तकनीक
अयोध्या के श्रीराम मंदिर में मौजूद भगवान श्रीराम की प्रतिमा पर सूर्य तिलक के लिए राम नवमी का दिन ही चुना गया है। क्योंकि, इस दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। ऐसे में पुरातन परंपरा को आधुनिक तकनीक से जोड़ा गया है। इस कड़ी में सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सरोज कुमार पानीगढ़ी इस पूरी परियोजना का नेतृत्व किया है।
तकनीक में मशीन नहीं है शामिल
मंदिर में पुरातन संस्कृति का ध्यान रखते हुए भगवान श्रीराम की प्रतिमा का तिलक करने के लिए किसी भी प्रकार की मशीन का प्रयोग नहीं किया गया है, बल्कि पाइप की मदद से भगवान श्रीराम की तिलक हुआ।
कैसा हुआ श्रीराम का तिलक
अब सवाल है कि बिना किसी मशीन के इस्तेमाल के आखिर श्रीराम का तिलक कैसे हुआ, तो आपको बता दें कि मंदिर की तीसरी मंजिल पर एक ऑप्टोमेकेनिकल सिस्टम बनाया गया है, जिसके तहत मंदिर के ऊपर उच्च गुणवत्ता वाले शीशे और लेंस को लगाया गया है। इन दोनों को इस क्रम में सेट किया गया है कि इन पर पड़ने वाली सूरज की किरणों को सीधे प्रथम तल पर विराजमान भगवान श्रीराम के प्रतिमा के माथे तक पहुंच सकी।
चरण-1-सूर्य की किरण तीसरे तल पर लगे दर्पण पर पड़ी, इसके बाद यह परावर्तीत होकर पीतल के पाइप में प्रवेश कर गई।
चरण-2-पाइप में लगे दूसरे दर्पण से टकराकर यह पुनः 90 डिग्री पर परावर्तीत हुई।
चरण-3-सूर्य किरणें तीन अलग-अलग लेंस से गुजरी।
चरण-4-पाइप पर लगे दूसरे दर्पण की मदद से किरणें पुनः 90 डिग्री पर परावर्तीत हुई।
चरण-5-90 डिग्री पर परावर्तीत होने पर सूर्य किरणों ने श्रीराम के माथे पर 75 मीमी का सूर्य तिलक किया।
तिथि बदलने पर भी हो सकेगा तिलक
अब यह जरूरी नहीं कि जिस वर्ष रामनवमी की तिथि है ठीक उसी तिथि पर अगले वर्ष रामनवमी का पर्व है। क्योंकि, पर्व की तारीख बदलती रहती है। ऐसे में इसे पीतल की मदद से सेट किया जा सकेगा, जिससे तिथि बदलने पर भी श्रीराम का तिलक हो सकेगा।
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