भारत ने बीते कुछ वर्षों में रक्षा के क्षेत्र में तेजी से तरक्की की है। इस कड़ी में भारतीय रक्षा क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों को शामिल करने के साथ-साथ कई अधिक दूरी की मारक क्षमता रखने वाली मिसाइलों को शामिल किया गया है। इस कड़ी में भारत की महत्त्वपूर्ण मिसाइलों में शामिल ब्राह्मोस मिसाइल का निर्माण भी भारत में किया जा रहा है। खास बात यह है कि यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में निर्मित हो रही है। इस कड़ी में यूपी में एक जिला ऐसा भी है, जिसे ‘ब्रह्मोस मिसाइल का घर’ भी कहा जाता है। कौन-सा है यह जिला, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
किस जिले को कहा जाता है ब्राह्मोस मिसाइल का घर
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि यूपी में किस जिले को ब्राह्मोस मिसाइल का घर भी कहा जाता है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर को ब्राह्मोस मिसाइल का घर भी कहा जाता है।
क्यों कहा जाता है ब्राह्मोस मिसाइल का घर
उत्तर प्रदेश के लखनऊ के बाहरी इलाके में करीब 200 एकड़ में उत्तर प्रदेश आर्थिक रक्षा गलियारे के तहत ब्राह्मोस मिसाइल का निर्माण किया जाता है। यह अपने आप में एक बड़ा शहर है। वहीं, ब्रह्मोस मिसाइल के निर्माण के कारण इसे ब्रह्माोस मिसाइल का घर भी कहा जाता है।
380 करोड़ की लागत से तैयार हुआ है कैंपस
भारत सरकार ने देश के दो रक्षा गलियारे घोषित किए थे। इनमें उत्तर प्रदेश राज्य भी शामिल था, जहां आगरा, अलीगढ़, चित्रकूट, झांसी, लखनऊ और कानपुर में रक्षा इकाइयां स्थापित करने का लक्ष्य था। इसके तहत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2018 में 200 एकड़ भूमि का आवंटन किया गया था। वहीं, यहां कुल 380 करोड़ रुपये की लागत से कैंपस तैयार किया गया है।
खास बात है कि लखनऊ में ब्राह्मोस के नेक्स्ट जेनरेशन यानि कि ब्राह्मोस-एनजी का निर्माण किया जा रहा है। यह मिसाइल वर्तमान ब्रह्मोस मिसाइल से 50 फीसदी हल्की होगी और इसका उपयोग हल्के लड़ाकू विमानों में भी किया जा सकेगा।
क्या है ब्रह्मोस मिसाइल
ब्राह्मोस मिसाइल भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की गई सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर जोड़कर रखा गया है। इसकी गती की बात करें, तो यह 2.8 से 3.0 मैक तक है। यह मिसाइल दागो और भूल जाओ के आधार पर चलती है, यानि इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती है।
खास बात है कि इस मिसाइल को जमीन, हवा और पनडुब्बी से भी दागा जा सकता है। इसकी रेंज की बात करें, तो यह 450 से 500 किलोमीटर है, जिसे भविष्य में 800 किलोमीटर तक करने का लक्ष्य रखा गया है।
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