इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम): इतिहास और कार्यप्रणाली
भारत में ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के 70-पारुर विधानसभा क्षेत्र में किया गया था जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही संपन्न होती है. एक पायलट परियोजना के तौर पर 2014 के लोकसभा चुनाव में 543 में से 8 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता-सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रायल (वीवीपीएटी) प्रणाली वाले ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था.
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भारतीय इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इतिहास क्या है? (History of EVM in India)
पहले भारतीय ईवीएम का आविष्कार 1980 में “एम बी हनीफा” के द्वारा किया गया था जिसे उसने “इलेक्ट्रॉनिक संचालित मतगणना मशीन" के नाम से 15 अक्तूबर 1980 को पंजीकृत करवाया था। एकीकृत सर्किट का उपयोग कर “एम बी हनीफा” द्वारा बनाये गये मूल डिजाइन को तमिलनाडु के छह शहरों में आयोजित सरकारी प्रदर्शनियों में जनता के लिए प्रदर्शित किया गया था।
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 1989 में “इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड” के सहयोग से भारत में ईवीएम बनाने की शुरूआत की गई थी। ईवीएम के औद्योगिक डिजाइनर “औद्योगिक डिजाइन सेंटर, आईआईटी बॉम्बे” के संकाय सदस्य (faculty members) थे।
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ईवीएम की संरचना और तकनीक (Technology used in the EVM)
एक ईवीएम में दो भाग होते हैं- नियंत्रण इकाई और मतदान इकाई। दोनों भाग एक पांच मीटर लंबे केबल से जुड़े होते हैं। नियंत्रण इकाई, “पीठासीन अधिकारी” या “मतदान अधिकारी” के पास रहता है जबकि मतदान इकाई को मतदान कक्ष के अंदर रखा जाता है। मतदाता को मतपत्र जारी करने के बजाय नियंत्रण इकाई के पास बैठा अधिकारी मतदान बटन (Ballot Button) को दबाता है। जिसके बाद मतदाता “मतदान इकाई” पर अपने पसन्द के उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न के सामने अंकित नीले बटन को दबाकर मतदान करता है।
ईवीएम में नियंत्रक के रूप में स्थायी रूप से सिलिकन से बने “ऑपरेटिंग प्रोग्राम” का इस्तेमाल किया जाता है। एक बार नियंत्रक का निर्माण हो जाने के बाद निर्माता सहित कोई भी इसमें बदलाव नहीं कर सकता है।
भारत में EVM का निर्माण (Manufacturing of EVM in India)
ईवीएम 6 वोल्ट के एक साधारण बैटरी से चलता है जिसका निर्माण “भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बंगलौर” और “इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद” द्वारा किया जाता है। चूंकि यह बैटरी से चलता है जिसके कारण इसे पूरे भारत में आसानी से उपयोग में लाया जाता है, साथ ही कम वोल्टेज के कारण ईवीएम से किसी भी मतदाता को बिजली का झटका लगने का भी डर नहीं रहता है।
एक ईवीएम में अधिकतम 3840 मतों को रिकॉर्ड किया जा सकता है और एक ईवीएम में अधिकतम 64 उम्मीदवारों के नाम अंकित किए जा सकते हैं। एक “मतदान इकाई” (Ballot Unit) में 16 उम्मीदवारों का नाम अंकित रहता है और एक ईवीएम में ऐसे 4 इकाइयों को जोड़ा जा सकता है। यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में 64 से अधिक उम्मीदवार होते हैं तो मतदान के लिए पारंपरिक “मतपत्र या बॉक्स विधि” का प्रयोग किया जाता है।
ईवीएम मशीन के बटन को बार-बार दबाकर एक बार से अधिक वोट करना संभव नहीं है, क्योंकि मतदान इकाई में किसी उम्मीदवार के नाम के आगे अंकित बटन को एक बार दबाने के बाद मशीन बंद हो जाती है।
यदि कोई व्यक्ति एक साथ दो बटन दबाता है तो उसका मतदान दर्ज नहीं होता है। इस प्रकार ईवीएम मशीन "एक व्यक्ति, एक वोट” के सिद्धांत को सुनिश्चित करता है।
नोट: हाल ही में निर्वाचन आयोग ने घोषणा की है कि आगामी पांच राज्यों में होनेवाले चुनाव में पहली बार “मतदान इकाई” पर उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिह्न के अलावा उनके फोटो भी अंकित रहेंगें।
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ईवीएम के प्रयोग के फायदे (Benefits of use of EVM)
1. वर्तमान में एक M3 EVM की लागत 17 हजार रुपये के लगभग आती है लेकिन भविष्य में इस निवेश के माध्यम से मतपत्र की छपाई, उसके परिवहन और भंडारण तथा इनकी गिनती के लिए कर्मचारियों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक के रूप में खर्च होने वाले लाखों रूपए की बचत की जा सकती है।
2. एक अनुमान के मुताबिक ईवीएम मशीन के प्रयोग के कारण भारत में एक राष्ट्रीय चुनाव में लगभग 10,000 टन मतपत्र बचाया जाता है।
3. ईवीएम मशीनों को मतपेटियों की तुलना में आसानी से एक जगह से दूसरे जगह ले जाया जाता है, क्योंकि यह हल्का और पोर्टेबल होता है।
4. ईवीएम मशीनों के द्वारा मतगणना तेजी से होती है।
5. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि निरक्षर लोगों को भी मतपत्र प्रणाली की तुलना में ईवीएम मशीन के द्वारा मतदान करने में आसानी होती है।
6. ईवीएम मशीनों के द्वारा चूंकि एक ही बार मत डाला जा सकता है अतः फर्जी मतदान में बहुत कमी दर्ज की गई है।
7. मतदान होने के बाद ईवीएम मशीन की मेमोरी में स्वतः ही परिणाम स्टोर हो जाते हैं।
8. ईवीएम का “नियंत्रण इकाई” मतदान के परिणाम को दस साल से भी अधिक समय तक अपनी मेमोरी में सुरक्षित रख सकता है।
9. ईवीएम मशीन में केवल मतदान और मतगणना के समय में मशीनों को सक्रिय करने के लिए केवल बैटरी की आवश्यकता होती है और जैसे ही मतदान खत्म हो जाता है तो बैटरी को बंद कर दिया जाता है।
10. एक भारतीय ईवीएम को लगभग 15 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है।
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ईवीएम को बंद करने की प्रक्रिया (How is EVM closed after Election)
आखिरी मतदाता द्वारा वोट डालने के पश्चात् “नियंत्रण इकाई” (Control Unit) का प्रभारी इसके “बंद (close)” बटन को दबा देता है। इसके बाद ईवीएम में कोई भी वोट दर्ज नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, चुनाव की समाप्ति के बाद “मतदान इकाई” को “नियंत्रण इकाई” से अलग कर दिया जाता है। मतगणना के दौरान परिणाम (Result) बटन दबाने पर परिणाम प्रदर्शित होता है।
Image source: BGR.in
मतदान के बाद ईवीएम को सुरक्षित रखने के इंतज़ाम (Safety of EVM)
मतदान से पहले और मतदान के बाद प्रत्येक ईवीएम मशीन को कड़ी निगरानी में रखा जाता है। वोट डलने के बाद शाम को कई लोगों की मौजूदगी में मतदान अधिकारी इस मशीन को सील बंद करता है। हर ईवीएम मशीन को एक खास कागज से सील किया जाता है। ये कागज भी करंसी नोट की तरह ही खास तौर पर बने होते हैं। करंसी नोट की ही तरह हर कागज़ के ऊपर एक खास नंबर होता है। कागजों से सील करने के बाद हर मशीन के परिणाम वाले हिस्से में स्थित छेद को धागे के मदद से बंद किया जाता है और उसके बाद उसे कागज और गर्म लाख से एक खास पीतल की सील लगा कर बंद किया जाता है।
सील करने के बाद हर ईवीएम मशीन को किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की तरह की सुरक्षा के घेरे में मतगणना केन्द्र तक लाया जाता है। मतगणना केन्द्रों पर हर मशीन को मतगणना तिथि तक कड़े पहरे में रखा जाता है।
भारत द्वारा ईवीएम मशीन का निर्यात किन-किन देशों को किया गया है? (EVM Export from India)
भारत द्वारा नेपाल, भूटान, नामीबिया, फिजी और केन्या जैसे देशों ने ईवीएम मशीन का निर्यात किया गया है। नामीबिया द्वारा 2014 में संपन्न राष्ट्रपति चुनावों के लिए भारत में निर्मित 1700 “नियंत्रण इकाई” और 3500 “मतदान इकाई” का आयात किया गया था। इसके अलावा कई अन्य एशियाई और अफ्रीकी देश भारतीय ईवीएम मशीनों की खरीद में रूचि दिखा रहे हैं।
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