हाल ही में राजस्थान, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, सिक्किम, मेघालय, असम, झारखंड और छत्तीसगढ़ के लिए नए राज्यपालों की नियुक्ति की गयी है. बता दें कि असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को मणिपुर का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष कुमार गंगवार सीपी राधाकृष्णन के स्थान पर झारखंड के नए राज्यपाल बनाये गए है, जो महाराष्ट्र के नए राज्यपाल होंगे. गौरतलब है कि इस साल के अंत में हरियाणा के साथ झारखंड और महाराष्ट्र दोनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. वहीं बनवारीलाल पुरोहित की जगह गुलाब चंद कटारिया को पंजाब का राज्यपाल नियुक्त किया गया है, जिन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए इस साल की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया था.
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भारतीय संविधान के अनुसार, राज्यपाल राज्य में केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं.आइए समझते हैं कि राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है, और यह पद क्यों आवश्यक हैं और राज्य सरकार के साथ उनके संबंधों पर भी चर्चा करेंगे.
किसे मिला किस राज्य का प्रभार:
यहाँ विभिन्न राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के लिए नए राज्यपालों की नियुक्ति कर दी गयी है, वहीं पंजाब के राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में बनवारीलाल पुरोहित ने इस्तीफा दे दिया है. नए राज्यपालों की नियुक्ति यहां देखें-
राज्य/केंद्र शासित प्रदेश | राज्यपाल |
राजस्थान | हरिभाऊ किसनराव बागड़े |
तेलंगाना | जिष्णु देव वर्मा |
सिक्किम | ओम प्रकाश माथुर |
झारखंड | संतोष कुमार गंगवार |
छत्तीसगढ़ | रामेन डेका |
मेघालय | सी एच विजयशंकर |
महाराष्ट्र (तेलंगाना के अतिरिक्त प्रभार के साथ) | सी.पी. राधाकृष्णन |
पंजाब और चंडीगढ़ | गुलाब चंद कटारिया |
असम (मणिपुर के अतिरिक्त प्रभार के साथ) | लक्ष्मण प्रसाद आचार्य |
नोट- उपरोक्त नियुक्तियां, कार्यालय का कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से प्रभावी होंगी.
राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में कहा गया है, "प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा." संविधान के लागू होने के कुछ वर्षों बाद, 1956 में एक संशोधन के तहत यह भी कहा गया कि "इस अनुच्छेद में कुछ भी ऐसा नहीं होगा जो दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही व्यक्ति को राज्यपाल नियुक्त करने से रोके" तब से किसी राज्य का अतिरिक्त प्रभार भी की राज्य के राज्यपाल को दिया जाने लगा.
राज्यपाल बनने की योग्यताएं क्या हैं?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 157 और 158 में राज्यपाल की योग्यताओं और उनके पद की शर्तों के बारें में बताया गया है. राज्यपाल भारतीय नागरिक होना चाहिए और उसकी आयु 35 वर्ष पूरी होनी चाहिए. राज्यपाल संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं होना चाहिए और कोई अन्य लाभ का पद नहीं संभालना चाहिए.
- भारतीय नागरिक होना चाहिए.
- आयु 35 वर्ष पूरी होनी चाहिए.
- संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं होना चाहिए.
- किसी लाभ के पद पर न हो.
राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है?
राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा उनके हस्ताक्षर और आधिकारिक मोहर के साथ अधिपत्र जारी करके की जाती है.
- राज्यपाल का कार्यकाल राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर होता है, यानी वे तब तक अपने पद पर बने रह सकते हैं जब तक राष्ट्रपति चाहें.
- राज्यपाल अपने पद से इस्तीफा देना चाहें तो वे राष्ट्रपति को संबोधित एक पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर इस्तीफा दे सकते हैं.
राज्यपाल का कार्यकाल:
राज्यपाल अपने पद ग्रहण करने की तिथि से पाँच वर्षों तक पद पर बने रहेंगे. हालांकि, कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी, राज्यपाल तब तक अपने पद पर बने रहेंगे जब तक कि उनके उत्तराधिकारी ने पदभार ग्रहण नहीं कर लिया हो.
राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच संबंध:
राज्यपाल एक गैर-राजनीतिक प्रमुख के रूप में राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है. अनुच्छेद 163 के अनुसार, "राज्यपाल की सहायता और सलाह के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होगी, सिवाय इसके कि जहां वह इस संविधान के अधीन अपने किसी कार्य को अपने विवेक से करने के लिए बाध्य हो." बता दें कि राज्यपाल का पद संवैधानिक मर्यादाओं में बंधा हुआ होता है, और उनका कामकाज आमतौर पर राज्य की निर्वाचित सरकार की सलाह पर ही चलता है.
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