Indian Railways: क्यों बनाए गए थे Platform Tickets, जानें

Indian Railways: भारतीय रेलवे में प्लेटफॉर्म टिकट का चलन है। जब भी हम रेलवे स्टेशन पर अपने किसी परिचित को लेने या छोड़ने जाते हैं, तो हमें प्लेटफॉर्म टिकट लेना होता है। हालांकि, क्या आपको पता है कि प्लेटफॉर्म टिकट क्यों बनाए गए थे और इनका क्या इतिहास है। यदि नहीं, तो हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे।
रेलवे में प्लेटफॉर्म टिकट
रेलवे में प्लेटफॉर्म टिकट

Indian Railways: भारतीय रेलवे में एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा करने के लिए टिकट की आवश्यकता होती है। वहीं, जरूरी नहीं कि जब आप यात्रा करें, तभी टिकट लें। क्योंकि, बिना रेलवे में  बिना यात्रा के भी आपको टिकट खरीदना होता है, जिसे प्लेटफॉर्म टिकट कहा जाता है। हालांकि, क्या आपने कभी सोचा है कि प्लेटफॉर्म टिकट की आवश्यकता क्यों पड़ी थी और इसका क्या इतिहास रहा है। यदि नहीं, तो हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि आखिर कब से प्लेटफॉर्म टिकट चलन में है और इसे क्यों शुरू किया गया था। जानने के लिए यह पूरा लेख पढ़ें। 

 

1893 में शुरू हुई प्लेटफॉर्म टिकट

प्लेटफॉर्म टिकट के इतिहास की बात करें, तो यह साल 1893 में जर्मनी में शुरू हुई थी। इसके बाद से यह दुनिया भर के रेलवे द्वारा अपनाया गया। वहीं, कुछ समय बाद यह भारतीय रेलवे ने भी अपनाया। 

 

रेलवे ने क्यों अपनाया

भारतीय रेलवे में पहले ट्रेन के डिब्बे आंतरिक रूप से नहीं जुड़े थे, यानि ट्रेन के एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में नहीं जाया जा सकता था। ऐसे में ट्रेन टिकट एग्जामिनर यात्रियों की टिकट चेक करने के लिए एक डिब्बे से उतरकर दूसरे डिब्बे में जाते थे। इसके लिए उन्हें रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के रूकने का इंतजार करना पड़ता था। इस वजह से कई बार टीटीई सभी यात्रियों को टिकट चेक नहीं कर पाते थे, जिसके बाद रेलवे ने रेलवे स्टेशनों पर ही यात्रियों की टिकट जांचने की योजना बनाई थी। 

 

अन्य लोगों को हुई परेशानी

टिकट जांच न होने वाली समस्या को देखते हुए रेलवे ने प्लेटफॉर्म पर ही टिकट जांचने की योजना बनाई। ऐसे में रेलवे ने प्लेटफॉर्म पर ही टिकट चेक करना शुरू किया। हालांकि, इस स्थिति में उन लोगों को परेशानी होती थी, जो किसी यात्री को लेने या फिर छोड़ने के लिए पहुंचते थे। टिकट न होने की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता था। 

 

अपनाया गया प्लेटफॉर्म टिकट

भारतीय रेलवे ने टिकट प्लेटफॉर्म की शुरुआत पुणे जंक्शन से की थी। ब्रिटिश काल के समय इसका दाम बहुत कम था, जो कि बाद में बढ़कर कई सालों तक पांच रुपये रहा। हालांकि, साल 2015 में इसके दामों में बढ़ोतरी की गई और यह 10 रुपये कर दिया गया। 

 

कितने समय तक होता है वैध

आपको बता दें कि प्लेटफॉर्म टिकट केवल प्लेटफॉर्म से मिलता है। वहीं, यह टिकट सिर्फ दो घंटे तक वैध होता है। इसके होने से रेलवे में बेवजह आने वाली भीड़ को रोका जा सकता है। क्योंकि, कुछ रेलवे स्टेशनों पर बिना किसी मतलब के लोग वाई-फाई के लिए पहुंच जाते हैं। ऐसे में उन्हें प्लेटफॉर्म पर पहुंचने के लिए रेलवे को 10 रुपये का भुगतान करना होगा। 

 

पढ़ेंः Indian Railways: भारत में कहां है रेलवे का सबसे छोटा रूट, कितना लगता है किराया, जानें

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