मसाला बॉन्ड क्या है और भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे क्या फायदे हैं?

Sep 18, 2018, 14:54 IST

विदेशी पूंजी बाजार में निवेश के लिए भारतीय रुपये में जारी किए जाने वाले बॉन्ड को मसाला बॉन्ड कहते हैं. यह एक कॉर्पोरेट बांड होता है जिसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में जारी किया जाता है. मसाला बॉन्ड को भारतीय मसालों के नाम पर मसाला बॉन्ड कहा जाता है.

Masala Bond-Meaning
Masala Bond-Meaning

‘मसाला बांड’ का नाम सुनने में जरा अटपटा लगता है लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब इस तरह के वित्तीय साधन का नाम मसाले के नाम पर रखा गया है. हांगकांग की एक डिस के नाम पर चीन में ‘डिमसम बांड’ का नाम रखा गया है  इसी तरह जापान में "समुराई बांड" है जिसका नाम वहां के लड़ाकू समुराई समुदाय के नाम पर रखा गया है. आइये इस लेख में भारतीय कंपनियों द्वारा जारी किये जाने वाले मसाला बांड के बारे में जानते हैं;

"मसाला बॉन्ड" का इतिहास;

"मसाला बॉन्ड" को नवंबर 10, 2014 में अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में विश्व बैंक समूह के सदस्य इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन (आईएफसी) द्वारा भारत में बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए जारी किया गया था. मसाला बॉन्ड लंदन स्टॉक एक्सचेंज में भी सूचीबद्ध हैं. भारत में मसाला बॉन्ड 2015 से जारी होना शुरू हुए थे. मसाला बॉन्ड नाम का शब्द भी IFC ने ही उछाला था.

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"मसाला बॉन्ड" क्या होता है?

भारतीय कंपनियों (प्राइवेट और सरकारी दोनों) को विदेशों से पूंजी जुटाने के लिए कई तरह के साधनों की अनुमति भारत सरकार और रिजर्व बैंक से मिली हुई है, उन्हीं साधनों में से एक है मसाला बॉन्ड. कंपनियां विदेशों में मसाला बॉन्ड बेचकर अपनी जरूरत की पूंजी जुटाती हैं.

अर्थात विदेशी पूंजी बाजार में निवेश के लिए भारतीय रुपये में जारी किए जाने वाले बॉन्ड को मसाला बॉन्ड कहते हैं. यह एक कॉर्पोरेट बांड होता है जिसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में जारी किया जाता है. मसाला बॉन्ड को भारतीय मसालों के नाम पर मसाला बॉन्ड कहा जाता है. इनकी न्यूनतम परिपक्वता अवधि 3 साल है अप्रैल 2016 तक यह अवधि 5 साल की थी. इसको 3 साल से पहले भुनाया नहीं जा सकता है.

मसाला बांड जारी होने से पहले भारतीय कंपनियां, विदेशी निवेश के लिए डॉलर में बॉन्ड जारी करती थी जिसके मूल्य में अगर उतार-चढ़ाव होता था तो उसका नुकसान भारतीय कंपनियों को उठाना पड़ता था लेकिन मसाला बॉन्ड के मामले में ऐसा नही होता है.

विदेशी निवेशक इस बॉन्ड को इसलिए खरीदते हैं ताकि रुपयों के जारी किये गए बांड्स पर ज्यादा ब्याज कमाया जा सके. इतना ब्याज उन बांड्स पर नही मिलता है जो कि डॉलर में जारी किये जाते हैं.

कंपनियां स्वचालित मार्ग (यानी, पूर्व अनुमोदन के बिना) 50 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष (अप्रैल 2016 तक यह 750 मिलियन अमरीकी डॉलर) के बराबर राशि मसाला बांड्स के माध्यम से उठा सकतीं हैं. यदि वे इस सीमा से अधिक रुपया उधार चाहतीं हैं तो उन्हें रिज़र्व बैंक की अनुमति लेनी होगी.
ध्यान रहे कि मसाला बांड्स के जरिये उधार लिया गया रुपया पूँजी बाजार, रियल एस्टेट और भूमि की खरीद के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

मसाला बॉन्ड को कौन जारी कर सकता है?

सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) ने भारत के आधारभूत संरचना के विकास के लिए नवम्बर 2014 में 1000 करोड़ के मसाला बॉन्ड जारी किये थे. इस बॉन्ड को भारत की प्राइवेट और सरकारी दोनों कम्पनियाँ जारी कर सकतीं हैं. मसाला बांड को भारत की वे कम्पनियाँ जारी करतीं हैं जिनको विदेशी स्रोतों से बिना जोखिम का फंड जुटाने की जरूरत होती है.

इंडियाबुल्स हाउसिंग ने मसाला बॉन्ड के माध्यम से 1,330 करोड़ रुपये जुटाए है. भारतीय रेलवे वित्त निगम, को मसाला बॉन्ड के माध्यम से $ 1 बिलियन जुटाने की मंजूरी दी गयी है. इनके अलावा HDFC बैंक, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और एनटीपीसी द्वारा भी मसाला बॉन्ड के माध्यम से उधार लिया गया है.

कॉर्पोरेट बॉन्ड (मसाला बांड सहित) के लिए वर्तमान में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) की सीमा 2,44,323 करोड़ रुपये है जिसमें केवल 44,001 करोड़ रुपये के मसाला बॉन्ड शामिल हैं. RBI ने 3 अक्टूबर, 2017 से यह नियम बनाया है कि मसाला बॉन्ड अब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का हिस्सा नहीं होगा अब इसे बाहरी वाणिज्यिक उधारों (External Commercial Borrowing) का हिस्सा माना जायेगा. अब यदि कोई कॉर्पोरेट हाउस विदेश में मसाला बांड को बेचना चाहता है तो उसे केवल रिज़र्व बैंक से अनुमति लेनी होगी.

मसाला बांड्स भारत के लिए क्यों फायदेमंद होते हैं?

1. जैसा कि ऊपर बताया गया है कि मसाला बांड भारतीय रुपयों में जारी किये जाते हैं और इनकी परिपक्वता अवधि (maturity period) पूरी होने पर भुगतान डॉलर में नहीं बल्कि भारतीय रुपयों में करना होता है जिससे बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत होती है.

2. मसाला बांड का दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि डॉलर और रुपये के बीच की विमिमय दर में उतार-चढ़ाव से होने वाले घाटे का कोई भी प्रभाव भारत की कंपनी अर्थात मसाला बांड जारी करने वाले के ऊपर नहीं बल्कि इसे लेने वाले के ऊपर पड़ता है. मसाला बांड के शुरू होने से पहले भारत के कॉर्पोरेट हाउस बाहरी वाणिज्यिक उधारों (external commercial borrowings) के रूप में उधार लेते थे जिनका भुगतान विदेशी मुद्रा में करना पड़ता था. इसके साथ ही विनिमय दर में उतार-चढ़ाव से हानि को भी बर्दास्त करना पड़ता था.

3. मसाला बांड्स से भारतीय रूपये को विश्व स्तर पर पहचान मिलती है और एक समय ऐसा भी आएगा जब भारत के रूपये को अमेरिकी डॉलर की तरह हर देश के द्वारा स्वीकार किया जायेगा.

मसाला बॉन्ड, विनिमय दर जोखिम से कॉर्पोरेट बैलेंस शीट को सुरक्षित करने का एक अच्छा विचार है. हालाँकि इसे जारी करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि विदेशी ऋण (भले ही यह रुपयों में हो) पर ज्यादा निर्भर रहना बुद्धिमानी वाला फैसला नहीं है.

उम्मीद की जाती है कि ऊपर दिए गए विस्तृत वर्णन से आप समझ गए होंगे को आखिर मसाला बांड क्या होता है और यह भारत की अर्थवय्वस्था के लिए कितना फायदेमंद है.

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Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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