जानें समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्न कौन से थे

Jun 21, 2022, 13:19 IST

हिन्दू धर्म से संबंधित लगभग सभी लोग समुद्र मंथन की कथा को जानते हैं। यह कथा समुद्र से निकले अमृत के प्याले से जुड़ी है जिसे पीने के लिए देवताओं और असुरों में विवाद उत्पन्न हो गया था। जिसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक स्त्री का रूप धारण कर देवताओं को अमृतपान करवाया थाl लेकिन क्या आपको पता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत के अलावा 13 अन्य वस्तुएं भी प्रकट हुई थी? इस लेख में हम समुद्र मंथन की कथा और उससे निकले 14 रत्नों का विवरण दे रहे हैंl

हिन्दू धर्म से संबंधित लगभग सभी लोग समुद्र मंथन की कथा को जानते हैं। यह कथा समुद्र से निकले अमृत के प्याले से जुड़ी है जिसे पीने के लिए देवताओं और असुरों में विवाद उत्पन्न हो गया था। जिसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक स्त्री का रूप धारण कर देवताओं को अमृतपान करवाया थाl लेकिन क्या आपको पता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत के अलावा 13 अन्य वस्तुएं भी प्रकट हुई थी? इस लेख में हम समुद्र मंथन की कथा और उससे निकले 14 रत्नों का विवरण दे रहे हैंl

समुद्र मंथन की कथा

धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन (ऐश्वर्य, धन, वैभव आदि) हो गया था और इन्द्र सहित सारे देवता शक्तिहीन हो गए थेl ऐसे में सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गएl भगवान विष्णु ने देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया और यह भी बताया कि समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी, जिसे पीकर आप सब अमर हो जाएंगेl
यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई तो वह भी अमरत्व प्राप्ति के लोभ में समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। इसके बाद वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथना प्रारंभ किया गया। जिसके परिणामस्वरूप एक-एक करके समुद्र से 14 रत्न निकले जिनका विवरण निम्न हैl

समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्न

1. हलाहल (विष)
Bhagwan Shiv Drinking Poison
Image source: HariBhakt.com
समुद्र मंथन से सबसे पहले जल का हलाहल विष निकला, जिसकी ज्वाला बहुत तीव्र थी। हलाहल विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे और उनकी चमक फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। देवताओं तथा असुरों की प्रार्थना पर महादेव शिव उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये, किन्तु देवी पार्वती ने विष को उनके कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। अतः हलाहल विष के प्रभाव से शिव का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव को "नीलकण्ठ" भी कहा जाता हैl हलाहल विष को पीते समय शिव की हथेली से थोड़ा-सा विष पृथ्वी पर टपक गया, जिसे साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया।

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2. कामधेनु गाय

हलाहल विष के बाद समुद्र मंथन से कामधेनु गाय बाहर निकलीl वह अग्निहोत्र (यज्ञ) की सामग्री उत्पन्न करने वाली थी। इसलिए ब्रह्मवादी ऋषियों ने उसे ग्रहण कर लिया। कामधेनु का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी। यह कामधेनु जिसके पास होती थी, उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। इस गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था। जैसे देवताओं में भगवान विष्णु, सरोवरों में समुद्र, नदियों में गंगा, पर्वतों में हिमालय, भक्तों में नारद, सभी पुरियों में कैलाश, सम्पूर्ण क्षेत्रों में केदार क्षेत्र श्रेष्ठ है, वैसे ही सभी गायों में कामधेनु सर्वश्रेष्ठ हैl

3. उच्चै:श्रवा घोड़ा

समुद्र मंथन के दौरान तीसरे नंबर पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसे देवराज इन्द्र को दे दिया गया था। उच्चैश्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे- जिसका यश ऊँचा हो, जिसके कान ऊँचे हों अथवा जो ऊँचा सुनता हो। इस घोड़े का रंग श्वेत (सफेद) थाl उच्चैश्रवा का पोषण अमृत से होता है और इसे घोड़ों का राजा कहा जाता है।

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4. ऐरावत हाथी
 

समुद्र मंथन के दौरान चौथे नंबर पर ऐरावत हाथी निकला। ऐरावत देवताओं के राजा इन्द्र के हाथी का नाम है। समुद्र मंथन से प्राप्त रत्नों के बँटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया गया था। ऐरावत को शुक्लवर्ण और चार दाँतों वाला बताया गया है। रत्नों के बँटवारे के समय इन्द्र ने इस दिव्य गुणयुक्त हाथी को अपनी सवारी के लिए ले लिया था। इसलिए इसे "इंद्रहस्ति" अथवा "इंद्रकुंजर" भी कहा जाता हैl

5. कौस्तुभ मणि


समुद्र मंथन के दौरान पांचवे नंबर पर कौस्तुभ मणि प्रकट हुआ जिसे भगवान विष्णु ने अपने ह्रदय पर धारण कर लियाl यह बहुत ही चमकदार थी और ऐसा माना जाता है कि जहाँ भी यह मणि होती है, वहाँ किसी भी प्रकार की दैवीय आपदा नहीं होती हैl

6. कल्पवृक्ष
 kalp vriksha
Image source: Satish Gupta

समुद्र मंथन के दौरान छठे नंबर पर कल्पवृक्ष प्रकट हुआl हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह वृक्ष सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला वृक्ष थाl देवताओं के द्वारा इसे स्वर्ग में स्थापित कर दिया गयाl कई पौराणिक ग्रंथों में कल्पवृक्ष को "कल्पद्रूम" एवं  "कल्पतरू" के नाम से संबोधित किया गया हैl

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7. रंभा नामक अप्सरा


समुद्र मंथन के दौरान सातवें नंबर पर "रंभा" नामक अप्सरा प्रकट हुईl वह सुंदर वस्त्र व आभूषण पहने हुई थीं और उसकी चाल मन को लुभाने वाली थीl वह स्वंय ही देवताओं के पास चलीं गईl बाद में देवताओं ने रंभा को इन्द्र को सौंप दिया जो उनके सभा की प्रमुख नृत्यांगना बन गईl  

8. देवी लक्ष्मी

समुद्र मंथन के दौरान आठवें नंबर पर देवी लक्ष्मी प्रकट हुईl क्षीरसमुद्र से जब देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं, तब वह खिले हुए श्वेत कमल के आसन पर विराजमान थींl उनके श्री अंगों से दिव्य कान्ति निकल रही थी और उनके हाथ में कमल थाl देवी लक्ष्मी को देखकर असुर, देवता, ऋषि आदि सभी चाहते थे कि लक्ष्मी उन्हें मिल जाएं, लेकिन लक्ष्मी ने स्वंय ही भगवान विष्णु का वरण कर लियाl

9. वारूणी अर्थात मदिरा


समुद्र मंथन के दौरान नौवें नंबर पर वारूणी प्रकट हुईl भगवान विष्णु की अनुमति से इसे दैत्यों ने ले लियाl वास्तव में वारूणी का अर्थ "मदिरा" है और यही कारण है कि दैत्य हमेशा मदिरा में डूबे रहते थेl

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10. चन्द्रमा

समुद्र मंथन के दौरान दसवें नंबर पर "चन्द्रमा" प्रकट हुए जिन्हें भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लियाl

11. पारिजात वृक्ष


समुद्र मंथन से ग्यारहवें नंबर पर "पारिजात वृक्ष" प्रकट हुआl इस वृक्ष की विशेषता यह थी कि इसे छूने से ही थकान मिट जाती थीl यह वृक्ष भी देवताओं के हिस्से में चला गयाl

12. पांचजन्य शंख
panchjanya shankh
Image source: hn.newsbharati.com
समुद्र मंथन के दौरान बारहवें नंबर पर "पांचजन्य शंख" प्रकट हुआl इसे भगवान विष्णु ने अपने पास रख लियाl इस शंख को "विजय का प्रतीक" माना गया है, साथ ही इसकी ध्वनि को भी बहुत ही शुभ माना गया हैl विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अतः यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। इन्हीं कारणों से हिन्दुओं द्वारा पूजा के दौरान शंख को बजाया जाता हैl

13. भगवान धन्वन्तरि

समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में हाथ में अमृतपूर्ण स्वर्ण कलश लिये श्याम वर्ण, चतुर्भुज रूपी भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुएl अमृत-वितरण के पश्चात देवराज इन्द्र की प्रार्थना पर भगवान धन्वन्तरि ने देवों के वैद्य का पद स्वीकार कर लिया और अमरावती उनका निवास स्थान बन गयाl बाद में जब पृथ्वी पर मनुष्य रोगों से अत्यन्त पीड़ित हो गए तो इन्द्र ने धन्वन्तरि जी से प्रार्थना की वह पृथ्वी पर अवतार लेंl इन्द्र की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान धन्वन्तरि ने काशी के राजा दिवोदास के रूप में पृथ्वी पर अवतार धारण कियाl इनके द्वारा रचित "धन्वन्तरि-संहिता" आयुर्वेद का मूल ग्रन्थ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वन्तरि जी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया थाl

14. अमृत


समुद्र मंथन के दौरान प्रकट होने वाला चौदहवां और अंतिम रत्न “अमृत” थाl अमृत का शाब्दिक अर्थ 'अमरता' है। भारतीय ग्रंथों में यह अमरत्व प्रदान करने वाले रसायन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। यह शब्द सबसे पहले ऋग्वेद में आया है जहाँ यह सोम के विभिन्न पर्यायों में से एक है। अमृत को देखकर दानव आपस में लड़ने लगेl तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर छल पूर्वक देवताओं को अमृत पान करवा दियाl  

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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