हर साल 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले जयंती मनाई जाती है. यह दिन भारत की पहली महिला शिक्षिका और सामाजिक क्रांति की अग्रदूत सावित्रीबाई फुले को समर्पित है. उनका जीवन महिलाओं और वंचित वर्गों की शिक्षा और समानता के लिए एक मिशाल है.
सावित्रीबाई का जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ। मात्र 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से हुआ था. विवाह के बाद ज्योतिराव ने उन्हें पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया. शिक्षित होने के बाद सावित्रीबाई ने शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में योगदान देना शुरू किया.
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पीएम मोदी ने किया याद:
समाजसेविका सावित्रीबाई फुले जी की जयंती पर पीएम मोदी ने भी उन्हें याद किया उन्होंने एक संदेश में कहा कि ''सावित्रीबाई फुले जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन.वह महिला सशक्तिकरण की प्रतीक और शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अग्रणी हैं.उनके प्रयास हमें प्रेरित करते रहते हैं क्योंकि हम लोगों के लिए जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं.''
महिलाओं की शिक्षा में योगदान:
साल 1848 में, पुणे में सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने पहला बालिका विद्यालय खोला. सावित्रीबाई इस विद्यालय की पहली शिक्षिका बनीं.
वंचित वर्ग के लिए शिक्षा:
सावित्रीबाई ने माज के वंचित वर्गों के लिए भी विद्यालयों की स्थापना करने में मदद की. साथ ही शिक्षा के लिए छात्रवृत्तियां दीं. इसके अतिरिक्त उन्होंने माता-पिता को जागरूक किया.
फ़ातिमा शेख का योगदान:
मुस्लिम समाज की फ़ातिमा शेख और उस्मान शेख ने विद्यालय के लिए स्थान प्रदान किया. फ़ातिमा शेख को भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका माना जाता है. सावित्रीबाई को समाज का विरोध सहना पड़ा। लोग उन पर कीचड़ और पत्थर फेंकते थे, लेकिन उन्होंने हर बाधा को सहन किया.
सामाजिक सुधारों में योगदान:
सावित्रीबाई फुले ने सामाजिक सुधारों में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन दिया और पीड़ित महिलाओं के लिए शरणगृह स्थापित किए. अस्पृश्यता के विरोध में अपने घर का कुआँ सभी के लिए खोला और समानता का संदेश दिया.
- सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन
- बाल विवाह और सती प्रथा का विरोध.
- विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया.
- महिला अधिकार और संगठन
- विधवाओं का सिर मुंडवाने की प्रथा का विरोध.
- पीड़ित महिलाओं के लिए शरणगृह
महामारी के दौरान सेवा:
साल 1897 में प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई ने अपने दत्तक पुत्र के साथ मिलकर एक क्लिनिक खोला। सेवा करते हुए प्लेग से संक्रमित होने के कारण उनका निधन हो गया.
सावित्रीबाई फुले की विरासत और सम्मान:
सावित्रीबाई फुले के सम्मान में साल 1998 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया. वहीं पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय रखा गया. साल 2017 में गूगल ने उनके 186वें जन्मदिन पर डूडल समर्पित किया.
सावित्रीबाई ने दिखाया कि शिक्षा के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है.फुले का जीवन हमें सिखाता है कि शिक्षा और समानता से समाज को बेहतर बनाया जा सकता है. उनकी प्रेरणा हमें हर चुनौती का सामना करते हुए बदलाव लाने की हिम्मत देती है.
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Tributes to Savitribai Phule Ji on her birth anniversary. She is a beacon of women’s empowerment and a pioneer in the field of education and social reform. Her efforts continue to inspire us as we work to ensure a better quality of life for the people. pic.twitter.com/8JbBZCjBvc
— Narendra Modi (@narendramodi) January 3, 2025
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