चीन इस समय विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन चुका है इसके अलावा उसने राजनीतिक और सैनिक दृष्टि से भी विश्व में अपना कद बहुत बढाया है. यही कारण है कि उसको अब यह कंफ्यूजन हो गया है कि वह दक्षिण एशिया की एक निर्विवाद शक्ति बन चुका है और यहाँ पर जो चाहेगा वह कर लेगा. इसका सीधा उदाहरण है साउथ चाइना सी में बढती चीन की दादागीरी. चीन इस समुद्री इलाके पर इसके पड़ोसी देशों के हितों की अनदेखी किये अपना विस्तार बढ़ाने में लगा हुआ है और उसने साउथ चाइना सी के 7 द्वीपों को मिलिट्री आइलैंड के रूप में बदल दिया है. चीन; साउथ चाइना सी के 90% हिस्से को अपना मानता है.
ज्ञातव्य है कि चीन ‘नाइन डैश लाइन’के ज़रिये साउथ चाइना सी की घेराबंदी कर रखी है. यह लाइन चीन ने द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद 1947 में खींची थी.
आइये इस लेख में जानते हैं कि यह क्षेत्र इतना विवादित क्यों है.
दक्षिण चीन सागर की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है;
साउथ चाइना सी, प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे से लगा हुआ और एशिया के दक्षिण-पूर्व में स्थित है. यह समुद्री इलाका सिंगापुर और मलक्का जलडमरूमध्य से लेकर ताइवन जलडमरूमध्य तक 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है. इसमें स्प्राटल और पार्सल जैसे द्वीप समूह शामिल हैं.
साउथ चाइना सी के आस-पास इंडोनेशिया का मलक्का, करिमाता, फारमोसा जलडमरू मध्य और मलय व सुमात्रा प्रायद्वीप आते हैं जबकि इसके उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के बंका व बैंतुंग द्वीप हैं. साउथ चाइना सी का दक्षिणी इलाका चीनी मुख्यभूमि को छूता है, तो दक्षिण–पूर्वी हिस्से पर ताइवान की दावेदारी है. साउथ चाइना सी के पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया को छूते हैं जबकि इसके पश्चिम में फिलीपींस है.
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साउथ चाइना सी का आर्थिक महत्व
इस समुद्री इलाके पर चीन, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया, फिलीपींस और बुनेई जैसे आसियान देश अपना दावा कर रहे हैं. खासकर पारासेल और स्प्रातली नामक दो बड़े द्वीप समूह विवाद का मुख्य कारण हैं. चीन इन्हें अपना बताता है, जबकि फिलीपींस आदि देशों का कहना है कि ये उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं. पारासेल द्वीपसमूह पर 1974 तक चीन और वियतनाम का कब्जा था. दक्षिण वियतनाम और चीन के बीच हुई झड़प में चीन के सैनिक मारे जाने के बाद उसने पूरे द्वीपसमूह पर कब्जा जमा लिया था.
इस क्षेत्र में विवाद की सबसे बड़ी जड़ यहां सागर के गर्त में मौजूद तेल और गैस के अकूत भंडार हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार स्प्राटल द्वीप की परिधि में करीब 11 अरब बैरल प्राकृतिक गैस और तेल तथा मूंगे के विस्तृत भंडार मौज़ूद हैं. ज्ञातव्य है कि चीन, वियतनाम और ताइवान ने "स्प्राटल द्वीप समूह" पर दावेदारी कर रखी है.
तेल और गैस के अलावा यह क्षेत्र मछली व्यापार में शामिल देशों के लिये भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. शायद यही कारण हैं कि चीन इस क्षेत्र में अपना एकाधिकार चाहता है.
साउथ चाइना सी का भारत के लिए महत्व
भारत का 50 से 55 प्रतिशत समुद्री व्यापार इसी रास्ते से होता है क्योंकि भारत के सबसे बड़े व्यापार साझीदार देश आसियान के देश है. भारत के सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मॉरिशस से आता है. इसके अलावा दुनिया के एक तिहाई व्यापारिक जहाज इस समुद्री इलाके से गुजरते हैं.
आसियान 2017-18 में भारत के दूसरे सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार के रूप में उभरा है. भारत और आसियान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 81.33 बिलियन अमरीकी डॉलर है, जो कि दुनिया के कुल व्यापार का 10.58% हिस्सा है. अब यदि इस क्षेत्र में चीन की दादागीरी चलनी शुरू हो गयी तो वह कभी भी इस क्षेत्र से भारत के समुद्री व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा सकता है जो कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही नुकसानदायक होगा.
ऊपर दिए गए तथ्य इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि इस साउथ चाइना सी में जितने भी देश अपना दावा कर रहे हैं वे सब अपने अपने हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं. लेकिन यह बात बिलकुल सत्य है कि चीन इस क्षेत्र पर अपना एकाधिकार जताकर दक्षिण एशिया में अपना आर्थिक और राजनीतिक कद बढ़ाना चाहता है.
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