Teacher’s Day 2024: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जो राष्ट्रपति के रूप में दान कर देते थे आधे से अधिक वेतन

Teacher’s Day 2024: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक दार्शनिक, लेखक और भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। उनका जन्मदिन पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आइये डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में कुछ रोचक तथ्यों पर नजर डालें।      

Sep 3, 2024, 23:09 IST
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

Teacher’s Day 2024: "शिक्षकों को देश का सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क होना चाहिए।" - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

यह विचार डॉ. राधाकृष्णन द्वारा दिया गया था। साल 1954 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। 1963 में उन्हें ऑर्डर ऑफ मेरिट और 1975 में टेम्पलटन पुरस्कार भी मिला। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले उन्हें सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से संबोधित किया जाता था और स्वतंत्रता के बाद वे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से जाने गए।

कई बार हमने यह प्रसिद्ध कहावत सुनी है कि "जब हम सोचते हैं कि हम जानते हैं, तो हम सीखना बंद कर देते हैं।" इस प्रकार के शब्द हमें जीवन के हर चरण में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं, क्योंकि सीखना एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है। यदि हमारे अंदर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसा उत्कृष्ट शिक्षक है, तो हमारा विद्यार्थी कभी असफल नहीं होगा।

शिक्षक दिवस पर हम अपने शिक्षकों को उन सभी प्रयासों के लिए धन्यवाद देते हैं, जो उन्होंने हमें सफल व्यक्ति बनाने के लिए किये। शिक्षक हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके बिना एक व्यक्ति के रूप में और एक कैरियर में विकास संभव नहीं है। 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्र के प्रति उनके महान योगदान के लिए श्रद्धांजलि देने के लिए हमेशा याद किया जाता है।

शिक्षक दिवस पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में रोचक तथ्य

-सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तानी में हुआ था। उनके पिता और माता सर्वपल्ली वीरस्वामी और सीताम्मा थे। उनकी पत्नी का नाम सिवाकामु था और वे पांच बेटियों और एक बेटे के पिता थे।

-अपने पूरे शैक्षणिक जीवन में उन्हें छात्रवृत्तियां प्रदान की गईं। उन्होंने वेल्लोर के वूरहीस कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन बाद में 17 वर्ष की आयु में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज चले गये। 1906 में उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री पूरी की और प्रोफेसर बन गये।

-1931 में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई और तब से स्वतंत्रता प्राप्ति तक उन्हें सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से संबोधित किया जाता रहा। लेकिन, आजादी के बाद उन्हें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से जाना जाने लगा । 1936 में उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नैतिकता के स्पैलडिंग प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। इसके अलावा, ऑल सोल्स कॉलेज के फेलो के रूप में भी चुने गए।

-वह 1946 में संविधान सभा के लिए चुने गए। उन्होंने यूनेस्को और बाद में मॉस्को में राजदूत के रूप में कार्य किया।

-1952 में वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति बने और 1962 में वे स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने।

-उन्हें 1954 में भारत रत्न और 1961 में जर्मन पुस्तक व्यापार के शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1963 में उन्हें ऑर्डर ऑफ मेरिट और 1975 में टेंपलटन पुरस्कार भी मिला, क्योंकि उन्होंने "ईश्वर की सार्वभौमिक वास्तविकता की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जिसमें सभी लोगों के लिए प्रेम और ज्ञान निहित है।" आश्चर्यजनक बात यह है कि उन्होंने पुरस्कार की पूरी राशि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को दान कर दी थी।

-कलकत्ता विश्वविद्यालय में शामिल होने के लिए डॉ. राधाकृष्णन ने मैसूर विश्वविद्यालय छोड़ दिया था। मैसूर विश्वविद्यालय के छात्र उन्हें फूलों से सजी एक गाड़ी में स्टेशन ले गए थे।

-1931-1936 तक वे आंध्र विश्वविद्यालय में कुलपति रहे तथा 1939-1948 तक वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में कुलपति रहे। वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय में वे 1953-1962 तक कुलाधिपति रहे।

-आपको बता दें कि डॉ. राधाकृष्णन की याद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने राधाकृष्णन शेवनिंग स्कॉलरशिप और राधाकृष्णन मेमोरियल पुरस्कार की शुरुआत की थी।

-उन्होंने हेल्पएज इंडिया की स्थापना की थी, जो बुजुर्गों और वंचित लोगों के लिए एक गैर-लाभकारी संगठन है।

-1962 से भारत में शिक्षक दिवस हर साल 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है।

-एक और बात जो हम उनके बारे में नहीं भूल सकते, वह यह है कि जब वे भारत के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने 10,000 रुपये के वेतन में से केवल 2500 रुपये स्वीकार किए और शेष राशि हर महीने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में दान कर दी।

-17 अप्रैल, 1975 को उनकी मृत्यु हो गई।

"यह शिक्षक ही है जो अंतर लाता है, कक्षा नहीं।" – माइकल मोरपुरगो

हम ऐसे विनम्र व्यक्ति को नहीं भूल सकते, जिन्होंने अपना पूरा जीवन शिक्षा के मूल्य को बढ़ावा देने के लिए समर्पित कर दिया और भारतीय विचारों को पाश्चात्य संदर्भों में सुंदर ढंग से व्याख्यायित करके भारतीयों को सम्मान की एक नई भावना दी।

पढ़ेंः ट्रेन का टिकट खोने या फटने पर क्या करें, यहां पढ़ें

Kishan Kumar
Kishan Kumar

Senior content writer

A seasoned journalist with over 7 years of extensive experience across both print and digital media, skilled in crafting engaging and informative multimedia content for diverse audiences. His expertise lies in transforming complex ideas into clear, compelling narratives that resonate with readers across various platforms. At Jagran Josh, Kishan works as a Senior Content Writer (Multimedia Producer) in the GK section. He can be reached at Kishan.kumar@jagrannewmedia.com
... Read More

आप जागरण जोश पर भारत, विश्व समाचार, खेल के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए समसामयिक सामान्य ज्ञान, सूची, जीके हिंदी और क्विज प्राप्त कर सकते है. आप यहां से कर्रेंट अफेयर्स ऐप डाउनलोड करें.

Trending

Latest Education News