क्षारीय मृदा क्या होता है और इसका उपचार जिप्सम के माध्यम से कैसे किया जाता है?

May 24, 2018, 12:42 IST

पृथ्वी ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा या मिट्टी (soil) कहते हैं। क्षारीय मृदा उस प्रकार की मृदा या मिट्टी को कहते हैं जिसमें क्षार तथा लवण विशेष मात्रा में पाए जाते हैं। इस लेख में हमने क्षारीय मृदा को परिभाषित किया है और इसका उपचार जिप्सम के माध्यम से कैसे किया जाता है पर चर्चा की है जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है।

What is Alkaline Soil and How Gypsum helps in the treatment of Alkaline Soil HN
What is Alkaline Soil and How Gypsum helps in the treatment of Alkaline Soil HN

पृथ्वी ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को मृदा या मिट्टी (soil) कहते हैं। यह जीवन सहायक तत्व जैसे जैविक और अजैवी पदार्थ, खनिजों, गैसों, तरल पदार्थ, और जीवों से मिल कर बना है जो जीवन का समर्थन करते हैं। इसकी संरचना और संयोजन जगह-जगह भिन्न होती है।

मृदा के प्रमुख कार्य

1. यह पौधे के विकास के लिए एक माध्यम है।

2. यह जल भंडारण, आपूर्ति और शुद्धिकरण का माध्यम है।

3. यह पृथ्वी के वायुमंडल का एक संशोधक है।

4. यह जीवों के लिए एक आवास है।

क्षारीय मृदा या मिट्टी (Alkaline Soil) क्या है?

क्षारीय मृदा उस प्रकार की मृदा या मिट्टी को कहते हैं जिसमें क्षार तथा लवण विशेष मात्रा में पाए जाते हैं। शुष्क जलवायु वाले स्थानों में यह लवण श्वेत या भूरे-श्वेत रंग के रूप में मृदा या मिट्टी पर जमा हो जाता है। यह मृदा या मिट्टी पूर्णतया अनुपजाऊ एवं ऊसर होती हैं और इसमें शुष्क ऋतु में कुछ लवणप्रिय पौधों के अलावा अन्य किसी प्रकार की वनस्पति नहीं मिलती। इस तरह के मृदा या मिट्टी को उत्तर प्रदेश में 'ऊसर' या 'रेहला', पंजाब में 'ठूर', कल्लर या बारा, मुंबई में चोपन, करल इत्यादि।

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मृदा या मिट्टी क्षारीयता के क्या कारण हैं?

नमक, प्राकृतिक रूप से मृदा या मिट्टी तथा जल में पाया जाता है। मृदा या मिट्टी का लवणीकरण प्राकृतिक प्रक्रिया या मानव निर्मित हो सकता है  जैसे, खनिज अपक्षय (mineral weathering) या समुद्र के क्रमशः दूर जाने से। मृदा या मिट्टी क्षारीयता के कारण की चर्चा नीचे की गयी है:

1. मिट्टी खनिजों की उपस्थिति में खनिज अपक्षय के दौरान सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) और सोडियम बाइकार्बोनेट (NaHCO3) का उत्पादन।

2. सोडियम कार्बोनेट, सोडियम बाइकार्बोनेट (बेकिंग सोडा), सोडियम सल्फेट, सोडियम हाइड्रोक्साइड (कास्टिक सोडा), सोडियम हाइपोक्लोराइट (ब्लीचिंग पाउडर) आदि जैसे औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट, उनकी उत्पादन प्रक्रिया या खपत में पानी की लवणता को भारी मात्र में बढ़ा देती है।

3. कोयला से चलने वाले बॉयलर / बिजली संयंत्र, जब चूना पत्थर में समृद्ध कोयले या लिग्नाइट का उपयोग करते है तो कैशियम ऑक्साइड (CaO) युक्त राख उत्पन्न करते हैं। कैशियम ऑक्साइड (CaO) आसानी से पानी में घूल जाता है फिर रासायनिक प्रक्रिया के कारण स्लाके लाइम यानि Ca (OH)2 का निर्माण करते हैं जो सिचाई या नदियों द्वारा मिट्टी या मृदा तक पहुचती है और इस प्रकार  मृदा या मिट्टी का लवणीकरण हो जाता है।

4. सिंचाई (सतह या भूजल) में नरम पानी (softened water) का उपयोग जिसमें अपेक्षाकृत उच्च मात्रा में सोडियम बाइकार्बोनेट और कम कैल्शियम और मैग्नीशियम होता है।

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जिप्सम क्षारीय मृदा के उपचार में कैसे मदद करता है?

मृदा या मिट्टी को उर्वरक बनाने के लिए ज्यादातर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम का उपयोग किया जाता है लेकिन कैल्शियम एवं सल्फर का उपयोग गौण रखा जाता है। जिससे कैल्शियम एवं सल्फर की कमी की समस्या धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर रही है, इनकी कमी सघन खेती वाली भूमि, हल्की भूमि तथा अपक्षरणीय भूमि में अधिक होती है। कैल्शियम एवं सल्फर  संतुलित पोषक तत्व प्रबन्धन के मुख्य अवयवको में से है जिनकी पूर्ति के अनेक स्त्रोत है इनमें से जिप्सम एक महत्वपूर्ण उर्वरक है।

जिप्सम (Calcium Sulphate, CaSO4.2H2O) एक तलछट खनिज है और क्षारीय मृदा या मिट्टी के उपचार के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण यौगिक माना जाता है। इसमें 23.3 प्रतिशत कैल्शियम एवं 18.5 प्रतिशत सल्फर होता है। जब यह पानी में घुलता है तो कैल्शियम एवं सल्फेट आयन प्रदान करता है तुलनात्मक रूप से कुछ अधिक धनात्मक होने के कारण कैल्शियम के आयन मृदा में विद्यमान विनिमय सोडियम के आयनों को हटाकर उनका स्थान ग्रहण कर लेते है। आयनों का मटियार कणों पर यह परिर्वतन मृदा की रासायनिक एवं भौतिक अवस्था मे सुधार कर देता है तथा मृदा फसलोत्पादन के लिए उपयुक्त हो जाती हैं। साथ ही, जिप्सम भूमि में सूक्ष्म पोषक तत्वों का अनुपात बनाने में सहायता करता है।

जिप्सम का उपयोग करते समय, भूमिगत भूमि के लिए पर्याप्त प्राकृतिक जल निकासी होनी चाहिए, या फिर मिट्टी की रूपरेखा के माध्यम से बारिश और / या सिंचाई के पानी के परिसंचरण द्वारा अतिरिक्त सोडियम के लीचिंग की अनुमति देने के लिए कृत्रिम उप-सतह जल निकासी प्रणाली मौजूद होनी चाहिए। उर्वरकों के उपयोग के अलावा, मिट्टी के क्षारीय को घास के मैदान या नमकीन या बरिला पौधों की खेती करके कम किया जा सकता है।

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