भारतीय इतिहास के पन्नों में कई बड़े शासकों का नाम दर्ज है। इन नामों में शेरशाह सूरी का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। उन्हें प्रशासनिक सुधारों और अनूठी सैन्य रणनीतियों के लिए जाना जाता है। भारत में उन्होंने 1540 से 1545 तक शासन किया और सूर वंश की स्थापना की। वह ऐसे शासक हैं, जिन्होंने चांदी के सिक्के के रूप में रूपया का चलन शुरू किया था।
शेरशाह सूरी का प्रारंभिक जीवन
शेरशाह सूरी का मूल नाम फरीद खां था। उनका जन्म 1472 में हुआ था, जो कि एक पठान अफगानी थे। उनके पिता हसन खान बिहार के सासाराम और खवासपुर परगना के जागीरदार हुआ करते थे। उन्होंने यूपी के जौनपुर में अरबी और फारसी साहित्य का अध्ययन किया। इसके बाद अपनी क्षमता का परिचय देते हुए पिता की जागीर संभाली।
कैसे मिली शेर खान की उपाधि
वह बिहार के मुगल प्रशासक खान लोहानी की सेवा में कार्यरत थे। कथित तौर पर ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अकेले शेर का सामना करते हुए उसे मार गिराया था, जिसके बाद उन्हें शेर खान की उपाधि मिली थी।
कैसे हुई सूर वंश की स्थापना
शेरसाह सूरी ने अपनी सेना के साथ 1538 में बंगाल पर हमला किया। वहीं, 1539 में चौसा के युद्ध में उन्होंने मुगल शासक हुमायूं को हराकर सुल्तान की उपाधि धारण की। साल 1540 में शेरसाह सूरी ने कन्नौज के बिलग्राम में हुमायूं को एक बार फिर से हराया और उत्तर भारत से निष्कासित कर दिया, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली की सत्ता पर कब्जा किया और सूर वंश की स्थापना की।
सूरी द्वारा किये गए सुधार
-शेरशाह सूरी ने भूमि माप के लिए गज-ए-सिकंदरी की शुरुआत की। इसमें 39 इंच का एक एक गज रखा गया।
-भूमि की उपजाऊ क्षमता के हिसाब से इसे उत्तम, मध्यम और निम्न श्रेणियों में बांटा गया।
-भू-राजस्व के रूप में पैदावार का एक तिहाई भाग निर्धारित किया।
-सूरी ने 180 ग्रेन का चांदी का रुपिया सिक्का और 380 ग्रेन का तांबे का दाम जारी किया था। रुपिया सिक्का आज भी मुद्रा में जारी है।
-सूरी ने बंगाल से पेशावर तक ग्रांड ट्रंक रोड का पुनर्निमाण कराया।
-उन्होंने हजारों की संख्या में सरायों का निर्माण कराया, जहां सभी धर्मों के लोग रूक सकते थे। साथ ही, सरायों के आसपास कुओं का भी निर्माण कराया।
-शेरशाह सूरी ने प्रशासन में 'शिकदार-ए-शिकदारन' और 'मुंसिफ-ए-मुंसिफान' अधिकारी नियुक्त किए, जिनका काम कानून व्यवस्था और न्याय सुनिश्चित करना था।
-आपको बता दें कि सूरी ने अलाउद्दीन खिलजी की तरह हुलिया और घोड़ों के लिए दाग प्रथा की शुरुआत की।
-साथ ही, सैनिकों को व्यक्तिगत रूप से वेतन के रूप में नगद राशि का भुगतान किया।
कैसे हुई मृत्यु
शेरशाह का अंतिम अभियान कालिंजर किला था। यहां 1545 में एक तोप का गोला फटने से वह बुरी तरह से घायल हो गए और 22 मई, 1545 को उनकी मृत्यु हो गई।
पढ़ेंः भारत का सबसे अमीर रेलवे स्टेशन, एक साल में करता है इतने हजार करोड़ की कमाई
Comments
All Comments (0)
Join the conversation