अंग्रेजों ने भारत में 200 सालों तक राज किया। इस दौरान भारतीयों ने कई बुरी यातनाओं को झेला। आजादी की इस लड़ाई में कई भारतीयों को अपने प्राणों की आहूति भी देनी पड़ी। स्वतंत्रता सेनानियों ने डटकर अंग्रेजों का सामना किया और अंत में 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी पा ली। हालांकि, यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। इसके लिए भारत में कई आंदोलन चले, जिसमें एक आंदोलन ऐसा था, जो चपाती आंदोलन के रूप में काफी प्रसिद्ध हुआ और इस आंदोलन के तहत अंग्रेज भारतीय रोटियों से काफी डरने लगे थे। क्या था यह चपाती आंदोलन, जिससे डरते थे अंग्रेज, जानने के लिए यह लेख पढ़ें।
क्या था चपाती आंदोलन
साल 1857 में चपाती आंदोलन की शुरुआत उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले से हुई थी। इस आंदोलन के तहत आंदोलनकारी बड़ी संख्या में रोटियां बनाते थे। उस समय यह उत्तर भारत के कई गांवों में फैल गया था, जिससे ब्रिटिश की नाक में दम हो गया था।
हर रात 300 किलोमीटर तक का सफर
जब चपाती आंदोलन शुरू हुआ, तो मथुरा के एक मजिस्ट्रेट मॉर्क थॉर्नहिल द्वारा जांच की गई। उन्होंने अपनी जांच में पाया कि बड़ी संख्या में चपातियों को बनाकर 300-300 किलोमीटर तक भेजा जा रहा था। कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि उस समय जंगलों से एक व्यक्ति आता था, वह गांव के चौकीदार को रोटियां देकर और रोटियां बनाने के लिए कहकर चला जाता था। चौकीदार अपनी पगड़ियों में रोटियां छिपाकर रखते थे।
अंग्रेजी अखबार ने की थी पुष्टि
चपाती आंदोलन के दौरान श्रीरामपुर में छपने वाले अंग्रेजी के एक अखबार The Friends of India ने 5 मार्च, 1857 के अपने अंक में कहा था कि जब रोटियां हर किसी थाने में पहुंचती थी, तो ब्रिटिश इसे लेकर दुविधा में पड़ने के साथ डर जाते थे।
आंदोलन को लेकर रहे अलग-अलग मत
चपाती आंदोलन के दौरान इसके मूल स्त्रोत का किसी को भी पता नहीं चल सका। कुछ लोगों का मत था कि इसे अंग्रेजों द्वारा कराया गया था, जबकि कुछ लोगों को यह मानना था कि इन रोटियों में अंग्रेजों के खिलाफ कुछ सीक्रेट नोट्स को छिपाकर एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता था। हालांकि, इसे लेकर कुछ प्रमाण नहीं मिल सके।
ब्रिटिश मेल से भी तेज होती थी रोटियों की सप्लाई
इस आंदोलन के तहत रोटियां बनने के बाद एक ही रात में ब्रिटिश मेल से तेज सप्लाई होती था। इन रोटियों को फरूखाबाद से गुड़गांव वर्तमान का गुरुग्राम और अवध से रोहिलखंड होते हुए दिल्ली भेजा जाता था। कुछ रिपोर्ट की मानें, तो इन रोटियों में कमल का फूल और बकरी का मांस भेजे जाने की भी बात कही गई है। हालांकि, इन रोटियों का भेजने के कारण के पीछे कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं मिले हैं।
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