कब और किसके कहने पर महात्मा गाँधी भारतीय नोट की पहचान बनें

जैसा की हम सभी जानतें हैं कि भारतीय नोटों पर महात्मा गाँधी का चित्र अंकित होता है, पर क्या कभी आपने सोचा है की ऐसा क्यों होता है| भारत में कई क्रांतिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए हैं परन्तु नोटों पर सिर्फ महात्मा गाँधी का ही चित्र क्यों होता हैं| इस लेख में हम इस बात को जानने की कोशिश करेंगें कि आखिर क्यों भारतीय नोटों पर महात्मा गाँधी का चित्र अंकित होता है|

Nov 29, 2016, 15:50 IST

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था | इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था| भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में गाँधीजी के अमूल्य योगदान के कारण उन्हें 'राष्ट्रपिता' कहा जाता है। उनके अहिंसक विरोध के सिद्धांत की वजह से भारतीय राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में प्रगति हुई और भारत को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई| उन्होंने साबरमती आश्रम का निर्माण किया तथा और नमक सत्याग्रह चलाया था जिसके कारण उन्हें 'साबरमती का संत' भी कहा जाता है|

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जैसा की हम सभी जानतें हैं कि भारत में नोटों पर महात्मा गाँधी का चित्र अंकित होता है, पर क्या कभी आपने सोचा है की ऐसा क्यों होता है|

भारत में कई क्रांतिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए हैं परन्तु नोटों पर सिर्फ महात्मा गाँधी का ही चित्र क्यों होता हैं|

चलिए सबसे पहले देखते हैं कि महात्मा गाँधी की तस्वीर नोटों पर आखिर कहाँ से आई है?

जब गाँधीजी एकबार तत्कालीन भारत और बर्मा के राज्य सचिव के रूप में कार्यरत और20 वीं सदी के पहले दो दशकों के दौरान ग्रेट ब्रिटेन में महिला मताधिकार आंदोलनकरी ब्रिटिश राजनीतिज्ञ फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस से मिले तो उसी समय एक अज्ञात फोटोग्राफर ने उन दोनों की तस्वीर ली थी| आगे चलकर यही तस्वीर भारतीय करेंसी की ट्रेडमार्क बनी| दरअसल यह गाँधीजी की ओरिजनल तस्वीर है नाकि सिर्फ पोट्रेट फोटो है|

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इस तस्वीर का इस्तेमाल आरबीआई द्वारा 1996 में महात्मा गांधी सीरीज के बैंक नोटों पर किया गया।

क्या आप जानतें हैं कि भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के आधार पर मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका निर्धारित हुई है। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जानेवाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेता है भारतीय रिज़र्व बैंक सुरक्षा विशेषताओं सहित बैंकनोटों की रूपरेखा(डिजाइनिंग) तैयार करने में भी भारत सरकार के साथ समन्वय करता है भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्देश्य आम जनता को अच्छी गुणवत्ता के नोट प्रदान करना है।

भारत की करेंसी नोटों का इतिहास और उसका विकास |

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा 1996 में नोटों में परिवर्तन करने का फैसला लिया गया और इसी वजह से हम आज भारतीय नोटों पर गाँधीजी का चित्र देख रहे हैं, जबकि इससे पहले नोटों पर अशोक स्तंभ अंकित हुआ करता था। इस परिवर्तन के अनुसार अशोक स्तंभ की फोटो नोट के बायीं तरफ निचले हिस्से पर अंकित कर दी गई और महात्मा गाँधी की फोटो को अशोक स्तंभ की जगह अंकित कर दी गई| अभी भी 5 रुपए से लेकर 2 हजार तक के नोट में गाँधीजी की फोटो दिखाई देती है| इससे पहले 1987 में जब पहली बार 500 का नोट चलन में आया तो उसमें गांधीजी का वॉटरमार्क इस्तेमाल किया गया था।

(जून 1996 में, दस रुपये का नोट जारी किया गया। इसमें सामने की तरफ गांधी जी की तस्वीर और पीछे की तरफ भारत के जीवों की तस्वीर थी जो यहाँ की जैवविविधता का प्रतिनिधत्व करता है।)

अब देखते हैं कि महात्मा गाँधी का चित्र नोटों में क्यों लगाया जाता हैं

जैसा की हम जानतें हैं कि नोटों पर राष्ट्रीय नेताओं के चित्र लगाने की परम्परा दुनिया भर में है। महात्मा गाँधी का चित्र नोटों में क्यों लगाया जाता हैं एक विवादास्पद विषय रहा है| फिर भी ऐसा कहना गलत नही होगा कि वह हमारे देश के सबसे सम्मानित महापुरुषों में एक हैं| हमनें उनके अनगिनत संघर्षों के बारे में काफी सुना और पढ़ा है जिसके कारण से भारत स्वतंत्रता को प्राप्त कर सका है| उन्होंने कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी| अतः उनकी उपलब्धियों को चिह्नित करने के उद्देश्य से उनके चित्र को भारत में करेंसी नोटों पर इस्तेमाल किया जा रहा है। नोटों की वर्तमान सीरीज़ को महात्मा गांधी या एमजी सीरीज़ कहा जाता है। इस सीरीज़ में शुरूआत में 10 और 500 रूपये के नोट आए थे।

अक्टूबर 1997 में 500 रूपये का नोट जारी किया गया था। इसमें सामने की तरफ महात्मा गाँधी और पीछे की तरफ दांडी मार्च यानि नमक सत्याग्रह की तस्वीर थी। इस सत्याग्रह की शुरूआत 12 मार्च, 1930 को गांधीजी ने भारत में अंग्रेजों के नमक वर्चस्व के खिलाफ की थी, जिसे सबसे व्यापक “सविनय अवज्ञा आंदोलन माना जाता है। इस आंदोलन में गाँधीजी और उनके अनुयायियों ने अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से गुजरात के नवसारी स्थित तटीय गांव दांडी तक की पदयात्रा की थी और ब्रिटिश सरकार को कर का भुगतान किए बगैर नमक तैयार किया था। इस तरह गांधी जी ने 5 अप्रैल 1930 को नमककानून तोड़ा था।


कैसे भारतीय करेंसी नोटों पर प्रतीक के बारे में राज्यों में विवाद होनें की संभावना हैं |

हम इस बात को भी अनदेखा नही कर सकते हैं कि हमारा देश विविधताओं का देश है और हर राज्य में होड़ लगी है कि वह अपनी सुविधा के लिए क्षेत्रीय नायकों की तस्वीर को नोटों पर देखना चाहते हैं | चलिए देखतें हैं जिन लोगों के नाम (या तस्वीर) को नोटों पर अंकित करने के संबंध में बहस हो सकती है|

राजस्थान में महाराणा प्रताप, महाराष्ट्र में शिवाजी, सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशकर, बी.आर. अम्बेडकर, तमिलनाडु में रजनीकांत, एम.जी. रामचंद्रन, बिहार में अशोक, जयप्रकाश नारायण, पंजाब एवं हरियाणा में भगत सिंह, गुजरात में सरदार पटेल, उत्तर प्रदेश में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी आदि के नामों पर बहस हो सकती है| दूसरी तरफ सिख गुरूगोविन्द सिंह, गुरू नानक, रणजीत सिंह को, ईसाई मदर टेरेसा को, पारसी दादाभाई नोरोजी को, जैन महावीर को, बौद्ध भगवान बुद्ध को, हिन्दू स्वामी विवेकानंद को, आरएसएस के लोग भगवान राम को, शिवसेना के लोग बाल ठाकरे को नोटों पर देखना चाहेंगे|

अतः अंत में यह कह सकते हैं कि गाँधीजी भारत एवं विदेशों में शायद अब तक के सबसे लोकप्रिय भारतीय हैं और यकीनन नोटों पर उनकी तस्वीर लगाना सबसे उपयुक्त विकल्प है।

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Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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