भारत सरकार ने गाँवों की स्थिति में सुधार के लिए सभी सांसदों को आदर्श ग्राम योजना के तहत एक गाँव को गोद लेकर उसे आदर्श गाँव बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल की है| लेकिन भारत में कुछ ऐसे भी गाँव हैं जहाँ के लोगों ने बिना किसी सरकारी मदद या सांसद निधि के स्वंय को आदर्श गाँव के रूप में स्थापित किया है| इस लेख में हम आपको भारत के ऐसे ही 10 गाँवों की जानकारी दे रहे हैं जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रो में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है|
1. पुन्सारी, गुजरात
गुजरात के साबरकांठा जिले का “पुन्सारी” गाँव देश के करीब 6 लाख गाँवों के लिये एक रोल मॉडल बन गया है। इस गाँव में पांच स्कूल हैं जिनमें एसी और सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। साथ ही पूरे गाँव में कैमरे एवं वाई-फाई की सुविधा है| गांव में 120 लाऊडस्पीकर भी लगे हैं, जिनका उपयोग सरपंच द्वारा किसी घोषणा के लिये या फिर भजन के आयोजन में किया जाता है| साथ ही बच्चों का रिजल्ट भी इसी लाऊडस्पीकर के द्वारा घोषित किया जाता है। इसके अलावा गाँव में पक्की सड़कें एवं दूध लाने एवं ले जाने वाली महिलाओं के लिए अटल एक्सप्रेस नामक बस सेवा की भी सुविधा है|
पूरे गांव में पीने के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था है। इसके लिए पंचायत और ग्रामीणों के सहयेाग से एक आरओ प्लांट की स्थापना की गई है। इस प्लांट से पानी को शुद्ध कर घर-घर सप्लाई किया जाता है। गांव के प्रत्येक परिवार को सिर्फ 4 रुपए में 20 लीटर मिनरल वॉटर की बॉटल घर-घर पहुंचाई जाती है| घर-घर तक पानी पहुंचाने के लिए ग्राम पंचायत ने एक ऑटो खरीद रखा है।
गाँव में लायब्रेरी की व्यवस्था के लिए भी पंचायत ने एक ऑटो खरीद रखा है। इस ऑटो में सैकड़ों पुस्तकें होती हैं। गाँव में ऑटो का समयनुसार रूट निश्चित किया गया है। इसके अनुसार ऑटो दिन भर में कई जगह एक तय स्थान पर पहुंचता है, जहां लोग अपनी पसंद की किताब पढ़ सकते हैं।
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2. धरनई, बिहार
बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित “धरनई” एक ऐसा गाँव है जहाँ 2014 में 30 साल बाद बिजली पहुंची थी| पर्यावरण के लिए काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था “ग्रीनपीस” के प्रयासों से गाँव में फिर से बिजली पहुंची है। ग्रीनपीस संस्था धरनई गाँव में सौर ऊर्जा चालित माइकोग्रिड की स्थापना कर सौ किलोवाट बिजली की उत्पादन कर रही है। ग्रीनपीस इंडिया के अक्षय ऊर्जा प्रमुख रमापति कुमार के अनुसार “भारत में माइक्रोग्रिड के जरिए 24 घंटे बिजली पैदा करने का यह पहला सफल प्रयास है। बिहार जैसे गरीब और पिछड़े राज्य के लिए यह बहुत ही सम्मान की बात है| बिजली आने से सबसे ज्यादा असर महिलाओं की सुरक्षा, बच्चों की शिक्षा और स्थानीय व्यवसाय पर पड़ा है। सौर ऊर्जा से मिलने वाली यह बिजली धीरे-धीरे धरनई गाँव को रोशन कर रही है जो पिछले 30 साल से अंधेरे में जी रहा था|”
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3. मौलिंग, मेघालय
“मौलिंग” गाँव भारतीय राज्य मेघालय की राजधानी शिलाँग से 90 किमी की दूरी पर पूर्वी खासी हिल्स जिले में स्थित है। यह गाँव अपनी स्वच्छता के लिए जाना जाता है। ट्रेवल पत्रिका “डिस्कवर इंडिया” ने वर्ष 2003 में इस गाँव को एशिया का और वर्ष 2005 में भारत का सबसे स्वच्छ ग्राम घोषित किया है। यहाँ बेकार सामान को बाँस से बने कचरा पात्रों में डाला जाता है और इसको एक गड्डे में डालकर उसकी खाद तैयार की जाती है। यहाँ आने वाले पर्यटकों का कहना है कि इस गाँव में आपको “सिगरेट” और “प्लास्टिक के बैगों” का नामोनिशान भी नहीं मिलता है| वर्तमान में इस गाँव पर मोयसुनेप किचू का वृत्तचित्र बन रहा है जिसका नाम “एशियाज क्लिनेस्ट विलेज” है।
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4. काठेवाडी, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के नांदेड जिले में स्थित “काठेवाडी” एक छोटा सा गाँव है| पिछले कुछ वर्षों तक इस गाँव के 70 फीसदी लोग “पियक्कड़” (alcohlic) थे जो दिन भर जमकर दारू पीते थे और बीड़ी फूंकते थे| लेकिन “आर्ट ऑफ लिविंग” संस्था के प्रयासों से इस गाँव की कायापलट हो गई है| आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवकों ने गाँव में सर्वप्रथम नवचेतना शिविर लगाया। संस्था ने अपने फाइव एच (हेल्थ, होम, हाइजीन, ह्यूमन वैल्यूस, ह्यूमनिटी इन डाइवर्सिटी) कार्यक्रम के तहत गाँववालों को बदलने का काम शुरू किया। गाँव को सबसे पहले दारू और धूम्रपान से मुक्त कराने की पहल शुरू हुई। आज हालत यह है कि गाँव पूरी तरह दारू और और धूम्रपान से मुक्त है। इसके अलावा इस गाँव के दुकानों पर दुकानदार नहीं होते हैं| ग्राहक स्वतः ही आवश्यक सामान लेते हैं और तिजोरी में पैसे रखते हैं|
गाँव में कुछ साल पहले तक किसी भी घर में शौचालय नहीं था। आज गाँव में हर घर में शौचालय है। आर्ट ऑफ लिविंग ने एक अभियान के तहत 110 शौचायलों का निर्माण कराया है| इस गाँव को राष्ट्रपति “श्रीमती प्रतिभा पाटिल” ने निर्मल गाँव पुरस्कार से सम्मानित किया था| केंद्र सरकार की तरफ से गाँव में विकास कार्य के लिए 50 हजार रुपए का अनुदान दिया गया था| गाँव को पूरी तरह से दारू और तंबाकू से मुक्त होने पर महाराष्ट्र सरकार ने “टंटा मुक्ति अभियान” से सम्मानित किया है| इसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने गाँव को सवा लाख रुपए भेंट किए हैं| आज यह गाँव पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया है। गाँव में कोई दारू-बीड़ी नहीं पीता है और रामराज्य की तरह लोग दुकान से सामान खरीदते हैं, तिजोरी में पैसा डालते हैं और चल देते हैं।
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5. छप्पर, हरियाणा
भारत एक ऐसा देश है जहाँ आज भी बेटे के जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती है और बेटी के जन्म पर मातम छा जाता है| लेकिन हरियाणा के छोटे से गाँव “छप्पर” में बेटी के जन्म पर पूरे गाँव में मिठाईयां बांटी जाती है और इस बात का ख्याल रखा जाता है कि बेटियों को भी बेटों की तरह पढ़ने-लिखने का मौका मिले| इसके अलावा इस गाँव की औरतें घूँघट नहीं डालती है| ये सारे बदलाव इस गाँव की पहली महिला सरपंच “नीलम” के द्वारा लाया गया है| आज यह गाँव पूरे देश के लिए एक मिसाल है|
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6. हिवरे बाजार, महाराष्ट्र
“हिवरे बाजार”, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित भारत का आदर्श गाँव है। यह देश में सबसे अधिक जीडीपी वाला गाँव है| सह्याद्री पर्वत के वृष्टिछाया क्षेत्र में स्थित इस गाँव को 1980 के दशक में भयंकर जल संकट का सामना करना पड़ा था| जिसके कारण अधिकांश किसान आस-पास के शहरों और कस्बों की ओर पलायन कर गए और यहाँ के लोगों का मुख्य कार्य शराब उत्पादन हो गया| जिसके कारण इस गाँव में आपराधिक प्रवृति का बोलबाला हो गया था|
गाँव की हालत में सुधार की इच्छा से प्रेरित होकर “पोपटराव पवार” नामक एक व्यक्ति अहमदनगर से इस गाँव में आया और 1990 में इस गाँव का सरपंच बना| वहां से हिवरे बाजार गाँव में परिवर्तन का दौर शुरू हुआ| पोपटराव पवार ने गाँव की सामाजिक, आर्थिक एवं बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिए मुफ्त श्रमदान,चराई पर प्रतिबंध, पेड़ काटने पर प्रतिबंध, शराब पर प्रतिबंध एवं परिवार नियोजन जैसे पाँच कार्यक्रमों की शुरूआत की| चराई और पेड़ों को कटाई पर प्रतिबंध से घास और वनों में वृद्धि हुई है। परिवार नियोजन कार्यक्रम (एक परिवार एक बच्चा) के कारण, जन्म दर को प्रति हजार 11 से नीचे लाया गया है| साथ ही गाँव में वाटरशेड विकास कार्यक्रम की शुरूआत की गई और गन्ना एवं केले जैसे अधिक पानी की खपत वाले फसलों की खेती पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है|
वर्तमान में हिवरे बाजार गाँव के प्रत्येक निवासी की आय देश की अधिकांश ग्रामीण आबादी से लगभग दोगुनी है और वे लोग स्थानीय उपज को बेचने के लिए हिवरे बाजार ब्रांड भी शुरू करने जा रहे हैं|
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7. पोथानिक्कड़, केरल
“पोथानिक्कड़” केरल के एर्नाकुलम जिले में स्थित एक गाँव है| यह भारत में 100% साक्षरता हासिल करने वाला पहला गाँव है। सेंट मैरी हाई स्कूल पोथानिक्कड़ का सबसे पुराना उच्च विद्यालय है जहां समाज के महत्वपूर्ण लोगों और कई स्थानीय नेताओं ने शिक्षा ग्रहण किया है| सेंट जॉन हायर सेकंडरी स्कूल इस गाँव का एक अग्रणी शैक्षिक संस्थान है। इसके अलावा इस गाँव में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल और दो अन्य निजी उच्च माध्यमिक विद्यालय है जिनमे सीबीएसई पाठ्यक्रम के तहत युवाओं को बेहतर शिक्षा प्रदान की जाती है|
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8. बलिया जिले के कुछ गाँव, उत्तरप्रदेश
उत्तर प्रदेश में स्थित “बलिया” जिले के कुछ गाँव में पानी को लेकर कुछ समय पहले तक गंभीर समस्या थी, लेकिन यह समस्या पानी की अतिवृष्टि या अनावृष्टि के कारण नहीं बल्कि पानी में घुले आर्सेनिक की वजह से थी| पानी में आर्सेनिक की मात्रा से गाँव के लोगो में त्वचा से संबंधित गंभीर बीमारियां हो रही थी| विडंबना यह है कि गाँववासियों को यह समस्या सरकार द्वारा पानी की आसान उपलब्धता के लिए क्षेत्र में लगाए गए हैडपंप से सामने आयी थी| लेकिन गाँव के लोगो को जब इस पानी में घुले इस जहर का अहसास हुआ तो उन्होंने सरकारी मदद का इंतजार किये बिना इस जहरीली समस्या का निवारण ढूंढ लिया। वहां के लोगो ने सरकार की किसी बड़ी परियोजना का इंतजार किए बिना गाँव में मौजूद कुंओं को फिर से बहाल किया, जिससे वहां के लोगों को आर्सेनिक मुक्त पानी मिल सका। 95 वर्षीय धनिक राम वर्मा के नेतृत्व मे 12 सदस्यो की टीम के अथक प्रयास से इन गाँवों में आर्सेनिक मुक्त पानी की उपलब्धता संभव हो सकी है|
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9. बेक्किनाकेरी, कर्नाटक
कर्नाटक के “बेक्किनाकेरी” गाँव के लोगों ने खुले में शौचालय के अभिशाप से छुटकारा पाने के लिए एक अनूठी पहल का सहारा लिया है| इस पहल के तहत ग्राम पंचायत के सदस्य, शिक्षक और आंगनवाड़ी के सदस्यों ने खुले में शौच करने जा रहे लोगों और शौच कर रहे लोगों से “गुड मॉर्निंग” कहना शुरु कर दिया| शुरुआत में इस पहल से गाँव का मजाक जरूर बना, लेकिन बाद में जिला पंचायत ने शौचालय जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन कर लोगो को जागरुक किया। इस अनूठी पहल का यह असर हुआ कि आज इस गाँव के 90 फीसदी परिवार में शौचालय है|
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10. कोकरेवैल्लौर, कर्नाटक
कर्नाटक के बैंगलूरू से 85 किलोमीटर दूर “कौकरेवैल्लोर” गाँव में आज भी 21 तरह की पक्षियों की प्रजाति पायी जाती है| इसका कारण यह है कि जहाँ आज देशभर मे रोजाना हजारों लाखों पेड़ काटे जाते हैं, जिससे पशु-पक्षियों की प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है, लेकिन इस गाँव के लोग पक्षियों को अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं और पक्षियों के लिए सभी लोगो ने अपने घर में अलग से जगह दी है। इसके कारण इस गाँव में स्पॉट बेलिकन बिल्स जैसी दुर्लभ प्रजाति के पभी भी मौजूद है। पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियों की उपस्थिति के कारण यह गाँव पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।
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