पर्यावरणीय कानूनों की समीक्षा के लिए पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में बनी एक उच्च स्तरीय समिति ने 18 नवंबर, 2014 को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति ने देश में विकास परियोजनाओं के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए एक नया कानून तैयार करने की सिफारिश की थी।
समिति के मुख्य सिफारिशें:
- समिति ने नए एनवायरमेंट लॉस मैनेजमेंट एक्ट (ELMA) का प्रस्ताव रखा है।
- समिति ने क्रमश: केंद्रीय और राज्य स्तर पर पूर्णकालिक विशेषज्ञ निकायों, राष्ट्रीय पर्यावरण प्रबंधन प्राधिकरण (NEMA) और राज्य पर्यावरण प्रबंधन प्राधिकरण (SEMA)का गठन किए जाने की की सिफारिश की है।
- एनईएमए और एसईएमए ने परियोजना निकासी (प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता का उपयोग) का मूल्यांकन करने, एक समयबद्ध तरीके से, एकल खिड़की मंजूरी उपलब्ध कराने की सिफारिश की है।
- रैखिक परियोजनाओं के लिए एक फास्ट ट्रैक प्रक्रिया (सड़क, रेलवे और पारेषण लाइनों),बिजली और खनन परियोजनाओं तथा राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं के लिए नई व्यवस्था में निर्धारित की गयी है।
- समिति ने पर्यावरण, वन, वन्य जीवन और तटीय क्षेत्र की मंजूरी से संबंधित सहित लगभग सभी हरे कानूनों (ग्रीन लॉ) में संशोधन का सुझाव दिया है।
- समिति ने यह भी सिफारिश की है कि एक पर्यावरण पुनर्निर्माण लागत के नुकसान के आधार पर प्रत्येक परियोजना के लिए मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
- इस लागत का संचय और परियोजनाओं से बरामद अन्य दंड के लिए एक पर्यावरण पुनर्निर्माण कोष स्थापित किया जाना प्रस्तावित है।
- रिपोर्ट में पर्यावरणीय शासन में उच्च प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग को लाने के लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद की तर्ज पर एक राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान का प्रस्ताव है।
- समिति ने वन कानूनों में किसी भी बड़े बदलाव का सुझाव नहीं किया गया है लेकिन प्रतिपूरक वनीकरण नीति में संशोधन की सिफारिश की है।
- समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि राजस्व भूमि में प्रतिपूरक वनीकरण क्षेत्र वतर्मान के उस एक हेक्टेयर से दोगुना हो जाना चाहिए जो विकास परियोजनाओं के लिए गैर वन उपयोग के लिए लिए अधिकृत है।
- समिति ने पहचान नहीं किये गये वन क्षेत्रों की पहचान करने की भी सिफारिश की है। मुख्य रूप से छत्र 70 फीसदी क्षेत्र को कवर करने के साथ संरक्षित करता है जिस पर असाधारण परिस्थितियों में ही छेड़खानी की जाएगी औऱ इसके लिए पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल से अनुमति लेनी होगी।
- समिति द्वारा वर्तमान (उस समय) स्थिति के अनुसार पांच बार के लिए वनों की भूमि में परिर्वतन के लिए परियोजना समर्थकों द्वारा भुगतान के लिए वन के शुद्ध वर्तमान मूल्य (एनपीवी) में वृद्धि की भी सिफारिश की गयी है।
- समिति ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की शक्ति को कम करने की भी सिफारिश की है। इसमें सुझाव दिया गया है कि पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के बारे में फैसला जिला स्तरीय अदालतें करेंगी।
सुब्रमण्यम समिति:
प्रक्रियाओं, कानूनों और मंत्रालय के अधिनियमों की समीक्षा करने के लिए 29 अगस्त 2014 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा समिति का गठन किया गया था।
समिति का गठन पर्यावरण के मुख्य कानूनों की समीक्षा करने के लिए किया गया था-
- 1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (ईपीए)
- 1980 का वन्य संरक्षण अधिनियम (एफसीए)
- 1972 का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (डबल्यु पी ए)
- 1974 का जल (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) अधिनियम
- 1981 का वायु (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) अधिनियम
- बाद में, 1927 का भारतीय वन अधिनियम (आइएफए), जो देश में वन प्रशासन को नियंत्रित करता है।
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