फिर से शुरु हुई महामशीन

Aug 1, 2011, 12:19 IST

ब्रह्मड के बनने की प्रक्रिया को समझने के लिए किया जा रहा महाप्रयोग फिर से शुरू हो गया है।

फिर से शुरु हुई महामशीन

खुलेगा ब्रह्मड की उत्पत्ति का राज:

ब्रह्मड के बनने की प्रक्रिया को समझने के लिए किया जा रहा महाप्रयोग फिर से शुरू हो गया है। यूरोपीय परमाणु शोध संगठन (सर्न) के वैज्ञानिकों ने इसमें प्रयोग में आने वाली मशीन लार्ज हैड्रान कोलाइडर को मरम्मत के बाद फिर से चालू कर दिया है। इसके द्वारा 2008 में प्रयोग किया गया था, लेकिन इसमें  तकनीकी खराबी की वजह से इस प्रयोग को रोकना पड़ा था।
दुनिया की सबसे बड़ी है यह मशीन स्विट्जरलैंड व फ्रांस की सीमा पर अरबों डॉलर लगाकर यह प्रयोगशाला स्थापित की गई है। जमीन से 175 मीटर नीचे 27 किमी. पाइप लाइन बिछाई गई है। इसमें सैकड़ों मीटर लंबे केबल लगे हुए हैं। इसमें एक हजार से ज्यादा बेलनाकार चुंबकों को जोड़ा गया है। इसमें बीच में लार्ज हैड्रान कोलाइडर लगाए गए हैं] जिसके अलग-अलग हिस्से प्रयोग के अलग-अलग परिणामों का विश्लेषण करेंगे। प्रयोग के दौरान घट रही भौतकीय घटनाओं को दर्ज करने के लिए विशालकाय कंप्यूटर ढ़ाचा तैयार किया गया है और एक नेटवर्क से इसे पूरी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के कंप्यूटरों से जोड़ा गया है।

कैसे किया जाएगा यह प्रयोग?

इस प्रयोग के लिए प्रोटानों को प्रकाश की गति से गोलाकार सुरंगों में दो विपरीत दिशाओं से भेजा जाएगा। प्रोटानों के टकराने की घटना से ब्रह्म्ïाांड के बनने के रहस्य खुलने का अनुमान है। वैज्ञानिक कहते हैं कि इस प्रयोग से यह रहस्य खुलने का अनुमान है कि आखिर द्रव्य क्या है और इसमें द्रव्यमान कहाँ से आता है? इस द्रव्य को उस तरह से देखा जा सकेगा जैसा पहले कभी नहीं देखा गया है। इस बारे में लीवरपूल यूनीवर्सिटी के भौतिकशास्त्री डॉ. तारा शियर्स का कहना है कि यह एक सेकेेंड का अरबवाँ भाग रहा होगा जब ब्रह्म्ïाांड का निर्माण हुआ होगा और संभावना है कि हम उस क्षण को देख सकेगे।

वैसे इस प्रयोग का एक उद्देश्य हिग्स बोसॉन कणों को प्राप्त करना है जिसे गॉड्स पार्टिकल भी कहा जाता है। यह एक ऐसा कण है जिसके बारे में वैज्ञानिक सिद्धांत रूप में तो जानते हैं लेकिन इसे अभी तक देखा नहीं गया है। इसकी वजह से ही कणों का द्रव्यमान होता है।

कई देशों के वैज्ञानिक हैं शामिल

इस लार्ज हैड्रान कोलाइडर की सबसे पहले परिकल्पना 1980 में की गई थी और 1996 में इस परियोजना को मंजूरी मिली थी। इस परियोजना में मूल रूप से यूरोपीय संघ के 20 देश और छह गैर सदस्य देश मिलकर काम कर रहे हैं। वैसे इस परियोजना में लगभग 100 देशों के हजारों वैज्ञानिक शामिल हैं।
किसी तरह का खतरा नहीं इस प्रयोग को लेकर पिछली बार कहा गया था कि इससे दुनिया के नष्ट हो जाने का खतरा है। कुछ लोगों का कहना है कि इससे ब्लैक होल पैदा होगा जिसमें पूरी पृथ्वी समा जाएगी। लेकिन वैज्ञानिक इस संभावना को पूरी तरह से खारिज करते है।

Jagran Josh
Jagran Josh

Education Desk

    Your career begins here! At Jagranjosh.com, our vision is to enable the youth to make informed life decisions, and our mission is to create credible and actionable content that answers questions or solves problems for India’s share of Next Billion Users. As India’s leading education and career guidance platform, we connect the dots for students, guiding them through every step of their journey—from excelling in school exams, board exams, and entrance tests to securing competitive jobs and building essential skills for their profession. With our deep expertise in exams and education, along with accurate information, expert insights, and interactive tools, we bridge the gap between education and opportunity, empowering students to confidently achieve their goals.

    ... Read More

    आप जागरण जोश पर भारत, विश्व समाचार, खेल के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए समसामयिक सामान्य ज्ञान, सूची, जीके हिंदी और क्विज प्राप्त कर सकते है. आप यहां से कर्रेंट अफेयर्स ऐप डाउनलोड करें.

    Trending

    Latest Education News