भारत - चीन: द ग्रेट वाल
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की चीन यात्रा
भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल 27 मई, 2010 को छह दिनों की चीन यात्रा पर राजधानी बीजिंग पहुंची। वहां पहुंचने पर उनका पर्पल लाइट पवेलियन में प्रधानमंत्री बेन जियाबाओ ने स्वागत किया।
सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पर बातचीत
प्रधानमंत्री बेन के साथ बातचीत में राष्ट्रपति पाटिल ने भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महत्वाकांक्षा के बारे में बातचीत की। यही मुद्दा उन्होंने चीनी राष्ट्रपति हू जिनताओ के साथ बातचीत में फिर से उठाया और और सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए चीन का समर्थन मांगा। भारतीय राष्ट्रपति व चीनी प्रधानमंत्री के मध्य कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत हुई जिसमें विशेष रूप से वाणिज्य व व्यापार शामिल थे।
चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और उसके पास किसी भी मुद्दे को वीटो करने का अधिकार है। चीन का कहना है कि वह भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की वकालत करता है, लेकिन जहां तक भारत को स्थाई सदस्यता देने की बात है तो वह इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन के संपूर्ण सुधार के पक्ष में है।
वर्ष 2011-12 के लिए भारत की सुरक्षा परिषद की अस्थयी सदस्यता के लिए चीन के समर्थन की बात स्पष्ट रूप से चीन ने कही।
अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे
राष्ट्रपति पाटिल की यह यात्रा भारत-चीन कूटनीतिक संबंधों की 60वीं सालगिरह के अवसर पर हुई, जिसकी वजह से दोनों देशों के लिए इसका विशेष रूप से महत्व रहा।
दोनों देशों के बीच संबंधों की 60वीं सालगिरह के अवसर पर भारतीय राष्ट्रपति ने चीनी शहर लियोयांग में भारतीय शैली के एक बौद्ध मठ को भारतीय व चीनी जनता के बीच दोस्ती के नाम पर समर्पित किया। उन्होंने कहा कि यह भारतीय जनता का चीनी जनता को उपहार है। यह बौद्ध मठ हेनान राज्य में बनाया गया है जिसे चीनी सभ्यता का पालना माना जाता है।
व्यापारिक असंतुलन पर चिंता
दोनों देशों के राष्ट्रपतियों के बीच व्यावसायिक संबंधों की चर्चा भी हुई। भारतीय राष्ट्रपति ने इस सिलसिले में द्विपक्षीय व्यापार के असंतुलन के प्रति चीनी राष्ट्रपति का ध्यान आकर्षित कराया। गौरतलब है कि पिछले वर्ष 2009 में भारत व चीन के 44 अरब डॉलर के कुल द्विपक्षीय व्यापार में चीन से भारत के आयात लगभग 30 अरब डॉलर के व भारत से चीन को निर्यात 14 अरब डॉलर के ही थे। इस बारे में भारत के फार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्री व आईटी सेवाओं के लिए चीन के मार्केट को खोलने को अपेक्षा भारतीय राष्ट्रपति ने की।
भारत-चीन संबंध: पक्ष व विपक्ष में तर्क
पक्ष में तर्क
1. भारत-चीन दोनों ही सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश हैं और एशिया में स्थिरता के लिए इन दोनों शक्तियों के लिए आपस में सहयोग करना आवश्यक है।
2. कूटनीतिक संबंधों में तमाम तनाव के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध काफी ज्यादा मजबूत हैं।
3. भारत-चीन-रूस का त्रिकोण दुनिया में अमेरिकी प्रभुत्व को काफी हद तक चुनौती देने में सक्षम है।
विपक्ष में तर्क
1. चीन को एक भरोसेमंद देश नहीं माना जा सकता है। उसकी कूटनीति दो कदम आगे और एक कदम पीछे की रणनीति पर आधारित है। चीन का भारत की लगभग 40 हजार वर्ग मील भूमि पर आज भी कब्जा है।
हाल के वर्षों में चीन ने एक बार फिर से सीमा पर कई बार तनाव पैदा करने की कोशिश की है।
2. चीन, भारत के परंपरागत विरोधी पाकिस्तान को नाभिकीय व मिसाइल टेक्नोलॉजी सप्लाई करके उसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता रहता है। उसका यह रवैया दक्षिण एशिया में शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
3. चीन-भारत के बीच व्यापार असंतुलन है, जिसका नुकसान भारत को झेलना पड़ रहा है। चीन अपने कई उत्पादों के लिए भारत को डंपिंग ग्राउंड की तरह प्रयोग कर रहा है। हाल के दिनों में भारत ने इसके खिलाफ कई सख्त कदम भी उठाए हैं।
भारत-चीन: संदेह के घेरे में संबंध
भारत और चीन के बीच संबंध सदैव नर्म-गर्म रहे हैं। भारत से ही चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ था। 1949 में चीन में कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना हुई और दोनों देशों के बीच संबंधों की स्थापना हुई। भारत ने प्रारंभ से ही चीन के प्रति मैत्री व सदभावना का इजहार किया। भारत ऐसा पहला गैर-कम्युनिस्ट देश था जिसने चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता दी थी और संयुक्त राष्ट्र संघ में भी चीन को मान्यता दिलाने का प्रयास किया था। यह वह दौर था जब चीन के स्थान पर ताइवान को संयुक्त राष्ट्र संघ ने मान्यता दे रखी थी। 1954 में चीन और भारत के बीच एक 8 वर्षीय समझौता हुआ जिसके अंतर्गत भारत ने तिब्बत से अपने अतिरिक्त देशीय अधिकारों को चीन को सौंप दिया। इसके आधार पर दोनों देशों के बीच पंचशील सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया।
1957 से दोनों देशों के बीच तिब्बत को लेकर संबंध खराब होने शुरू हो गए। 31 मार्च, 1959 को तिब्बत में चीनी दमन की वजह से वहां के धर्मगुरु दलाई लामा ने भारत में राजनीतिक शरण ली। इसी तनाव की परिणति 1962 में भारत-चीन युद्ध के रूप में हुई। इस युद्ध में चीन ने भारत के बड़े भू-भाग पर कब्जा जमा लिया।
वर्तमान समय में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध तो बखूबी आगे बढ़ रहे हैं और दोनों तरफ से राजनेता एक-दूसरे देश की लगातार यात्रा भी करते रहते हैं। लेकिन चीन का आक्रमक रवैया अक्सर उसकी नियत पर शक पैदा करता है। सीमा विवाद को सुलझाने को लेकर दोनों देश कई दौर की बातचीत कर चुके हैं, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला है। चीन की सेना ने कई बार भारतीय सीमा का उल्लंघन किया है और खुलेआम अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा करार दिया है। चीन, कश्मीर पर राजनीति खेल रहा है। वह कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानता है। यह तमाम बातें चीन की नियत पर शक पैदा करती है और एशिया की दो महान शक्तियों के बीच अच्छे संबंधों की राह में रोड़े का कार्य कर रही हैं।
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