वित्तीय संघवाद में वित्त आयोग की क्या भूमिका है?

वित्त आयोग की स्थापना भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के प्रावधानों के तहत पांच वर्षों के लिए की जाती है। यह केंद्र सरकार के कुल कर संग्रह में राज्य सरकारों की हिस्सेदारी का फैसला करता है। वर्तमान में 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल चल रहा है। इसके प्रमुख आरबीआई के भूतपूर्व गवर्नर श्री वाई. वी. रेड्डी हैं। 14वें वित्त आयोग की अवधि 2015 से 2020 है।

Jun 29, 2016, 10:36 IST

वित्त आयोग का गठन केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों को परिभाषित करने के लिए किया गया था। इसकी स्थापना भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के प्रावधानों के तहत पांच वर्षों के लिए की जाती है। यह केंद्र सरकार के कुल कर संग्रह में राज्य सरकारों की हिस्सेदारी का फैसला करता है। वर्तमान में 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल चल रहा है। इसके प्रमुख आरबीआई के भूतपूर्व गवर्नर श्री वाई. वी. रेड्डी हैं। 14वें वित्त आयोग की अवधि 2015 से 2020 है।

                            (श्री. वाई. वी. रेड्डीः14वें वित्त आयोग के अध्यक्ष)

राजकोषीय संघवाद को एक संघीय सरकार प्रणाली में सरकार की इकाईयों के बीच वित्तीय संबंधों के रूप में परिभाषित किया गया है। राजकोषीय संघवाद व्यापक सार्वजनिक वित्तीय अनुशासन का हिस्सा है। यह शब्द जर्मनी में पैदा हुए अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड मस्ग्रेव ने 1959 में दिया था। राजकोषीय संघवाद सरकारी कार्यों के विभाजन और सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच वित्तीय संबंधों के बारे में होता है।   

वित्त आयोग क्या है?

यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 280 के प्रावधानों के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा पांच वर्षों के लिए बनाया जाने वाला आयोग है। यह केंद्र सरकार के कुल कर संग्रह में राज्य सरकारों की हिस्सेदारी के बारे में निर्णय लेता है। वर्तमान में 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल चल रहा है। इसके प्रमुख आरबीआई के भूतपूर्व गवर्नर श्री वाई. वी. रेड्डी हैं। 14वें वित्त आयोग की अवधि 2015 से 2020 है।

वित्त आयोग के कार्य क्या हैं?

वित्त आयोग के मुख्य कार्य हैं

(i) केंद्र और राज्यों के बीच साझा किए जाने वाले करों से होने वाली शुद्ध आमदनी का वितरण और राज्यों को ऐसी आमदनी आवंटित करना।

(ii) केंद्र द्वारा राज्यों को अनुदान के भुगतान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत बनाना।

(iii) केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों से संबंधित कोई अन्य मामला।

इसलिए इसका मुख्य कार्य केंद्र सरकार को उसके द्वारा लगाए गए करों को राज्यों के साथ कैसे साझा किया जाए, पर अपनी राय देना है। ये अनुशंसाएं पांच वर्षों की अवधि को कवर करती हैं। द्वारा केंद्र भारत के संचित निधि में से राज्यों को कैसे अनुदान देना चाहिए, के बारे में भी आयोग नियम बनाता है। साथ ही आयोग को राज्यों के संसाधनों को बढ़ाने हेतु उपाय और पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के संसाधनों के पूरक हेतु उपाय सुझाना होता है।  

कौन सा वित्त आयोग काम कर रहा है?

वर्तमान में 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल चल रहा है। इसके प्रमुख आरबीआई के भूतपूर्व गवर्नर श्री वाई. वी. रेड्डी हैं। इस वित्त आयोग ने केंद्र सरकार के कर संग्रह में से राज्यों को 42% हिस्सेदारी दिए जाने की सिफारिश की है।   

वित्त आयोग देश में राजकोषीय संघवाद को कैसे सुनिश्चित करता है?

संविधान में परिकल्पित संघीय ढांचे के तहत, ज्यादातर कराधान शक्तियां केंद्र के पास है लेकिन थोक खर्चे राज्यों द्वारा किए जाते हैं। ऐसे संघीय संरचना में केंद्र, जो आयकर और उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क जैसे अप्रत्यक्ष करों के रूप में कर लगाता और बसूल करता है, से संसाधनों के राज्यों को हस्तांतरित किए जाने की आवश्यकता होती है। इसलिए राज्य की आबादी, राज्य की राजकोषीय स्थिति, राज्य का वन क्षेत्र, आमदनी का अंतर(income disparity) और क्षेत्रफल के आधार पर विभिन्न राज्यों के बीच संसाधनों का उचित आवंटन आवश्यक है। इस प्रकार के उचित आवंटन द्वारा वित्त आयोग राज्यों और केंद्र के बीच टकराव होने से रोक सकता है।

आयोग की अनुशंसाओं की शक्ति क्या है?

संविधान, सरकार पर वित्त आयोग की अनुशंसाओं को बाध्यकारी नहीं बनाता। हालांकि, यह ठोस मिसाल है कि सरकार जहां तक राजस्व के साझा किए जाने का प्रश्न है, आमतौर पर आयोग की अनुशंसाओं को मान लेती है। केंद्रीय करों एवं शुल्कों और अनुदान के वितरण से संबंधित ये अनुशंसाएं सामान्यतया राष्ट्रपति के आदेश से लागू होती है।

14वें वित्त आयोग की प्रमुख अनुशंसाएं (Main Recommendations of 14th finance commission)

  • केंद्र के विभाज्य कर पूल में राज्यों की हिस्सेदारी को वर्तमान के 32% से बढ़ाकर 42% करना।
  • 2016–17 तक राजकोषीय घाटे को कम कर जीडीपी के 3% तक लाना और 2019–20 तक राजस्व घाटे को शून्य करना।
  • बजट प्रस्तावों के राजकोष नीति कार्यान्वयन के मूल्यांकन के लिए स्वतंत्र राजकोष परिषद की स्थापना करना।
  • मौजूदा FRBM अधिनियम के स्थान पर ऋण सीमा और राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून लाना।
  • कर हस्तांतरण उद्देश्यों के लिए विशेष और सामान्य श्रेणी के राज्यों के बीच मतभेद को समाप्त करें लेकिन राजस्व के घाटे वाले 11 राज्यों को अनुदान दें।
  • राज्य सरकारों के राजस्व व्यय में नियोजित और गैर– नियोजित भेदभाव को दूर करें।
  • जीएसटी के लागू होने के बाद यदि राजस्व में घाटा होता है तो तीन वर्षों तक राज्यों को पूर्ण (100%) क्षतिपूर्ति करें।

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